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भोपाल। मध्य प्रदेश की राजनीति और खास कर बीजेपी की कहानी बिना सुंदरलाल पटवा के नहीं लिखी जा सकती है। हालांकि पटवा अब इस दुनिया में नहीं हैं। लेकिन उन्होने जिन सिद्धान्तों के साथ राजनीति की, वो शायद ही कोई दूसरा नेता कर पाए। उन्होंने अपने राजनीतिक करियर में कई ऐसे काम किए जो आज किस्से बन गए हैं। उन्हीं किस्सों में से एक किस्सा है नेता प्रतिपक्ष रहते हुए पत्रकारों के लिए अवाज उठाना और सरकार को इस बात पर मजबुर कर देना कि उनके लिए न्यायिक जांच की घोषणा करें।
सवालों के बौछार से बैकफुट पर आ गए थे अर्जुन सिंह
दरअसल, साल 1981 में किसी खबर को लेकर एक जिले के कलेक्टर ने पत्रकारों को परेशान कर रखा था। वो जिले के सारे पत्रकारों को खबर का स्रोत बताने के लिए दवाब बनाने लगा। लेकिन कुछ पत्रकार इस बात पर अड़ गए कि मैं तो स्रोत नहीं बताउंगा। मालूम हो कि पत्रकारिता में अपने स्रोत को किसी से बताना अपराध के समान माना जाता है। ऐसे उन पत्रकारों को जान से मारने की धमकी मिलने लगी। इसके बाद सारे पत्रकार एक साथ हो गए और उन्होंने भोपाल कूच करने का फैसला किया। उस दौरान प्रदेश के मुख्यमंत्री थे अर्जुन सिंह। उन्होंने पत्रकारों को ज्यादा तवज्जो नहीं दिया। ये बात जैसे ही प्रतिपक्ष के नेता सुंदर लाल पटवा को पता चला। वो पत्रकारों के पास पहुंच गए। उन्होंने 2 घंटों तक उनकी बातों को सुना और उसके बाद विधानसभा में एक दिन तक बस इसी बात पे बहस हुई कि पत्रकारों को जो धमकियां दी जा रही है उसके लिए न्यायिक जांच की जाए। उनके सवालों के बौछार से अर्जुन सिंह सरकार बैकफुट पे आ गई और उन्हें मजबूरत न्यायिक जांच की घोषणा करनी पड़ी।
जांच कमेटी ने आरोपों को सही पाया था
तब ये मामला देश में काफी हाई फाई हो गया था। क्योंकि आजादी के बाद पत्रकारों के उत्पीड़न का यह पहला मामला था, जिसकी न्यायिक जांच हुई थी। जांच आयोग ने तब पत्रकारों के उपर हो रहे उत्पीड़न को सही पाया। प्रेस काउंसिल ने भी अपने जांच में पत्रकारों द्वारा लगाए जा रहे आरोपों को सही पाया था। ये सुंदर लाल पटवा ही थे जिनके कारण अर्जुन सिंह सरकार इस मामले पर जांच के लिए तैयार हुई थी। क्योकि पटवा उस दौरान मध्यप्रदेश बीजेपी के सबसे जिद्दी, गुस्सैल और ताकतवर नेता माने जाते थे। वो जब भी सदन में कोई सवाल उठाते थे। उससे पहले वो कई दिनों तक उस सवाल पर रिसर्च करते थे। ताकि उनके सवालों को कोई काट ना सके। अर्जुन सिंह भी इस बात को जानते थे कि जब सुंदर लाल पटवा ने सवाल खड़ा किया है तो जांच करवानी ही पड़ेगी।