नई दिल्ली। दुनियाभर में कोरोना वायरस महामारी अभी कोहराम मचा ही रही है। इसी बीच WHO ने गिनी में मारबर्ग (Marburg Virus) बीमारी के मामले की भी पुष्टि की है। ‘मारबर्ग’ घातक इबोला वायरस से संबंधित है और यह कोविड की तरह ही जानवरों से इंसानों में आया है। इस वायरस के बारे में कहा जाता है कि यह इतना घातक है कि इससे होने वाली बीमारी की मृत्यु दर 88 फीसद है। विश्व स्वास्थ्य संगठन ने बताया कि 2 अगस्त को दक्षिण Gueckedou प्रांत में एक मरीज की हुई मौत के सैंपल में इस वायरस की पुष्टी हुई है।
इस वायरस को शुरूआत में ही रोकना होगा
WHO ने इस वायरस को लेकर कहा है कि इसके फैलने की क्षमता इतनी अधिक है कि अगर इसे शुरूआत में ही नहीं रोका गया, तो आगे चलकर लोगों के जीवन के लिए घातक हो सकता है। अगर इसके इतिहास की बात करें तो जर्मनी और यूगोस्वालिया वो देश हैं जहां पहली बार ये महामारी फैली थी, जब संक्रमित हरे बंदरों को यहां लाया गया था। इसके बाद सबसे भयानक महामारी 2005 में अंगोली में फैली थी, जहां इस बीमारी की चपेट में 252 लोग आ गए थे और उस दौरान मृत्यु दर 90 फीसद रही थी।
ऐसे फैली थी ये महामारी
साल 2005 में ये महामारी बच्चों के वार्ड में संक्रमित ट्रांसफ्यूजन उपकरण के दोबारा इस्तेमाल किये जाने से फैली थी। वहीं साल 2009 में युगांडा में दो पर्यटकों में इस बीमारी के होने की खबर मिली थी जो यहां गुफाओं में घूमने आए थे। गुफा में घूमने के दौरान एक डच महिला पर चमगादड़ ने हमला कर दिया था। हमले के बाद उस महिला की मौत हो गई थी। दूसरी महिला कोलोराडो की थी जिन्हें ज्वर ने जकड़ लिया था और युगांडा से लौटने के बाद उसकी हालत खराब हो गई थी।
WHO इसके बारे में क्या कहता है?
शुरूआत में विशेषज्ञों ने इस चीज का मूल्यांकन नहीं किया, लेकिन बाद में जब उस डच महिला के बारे में विशेषज्ञों को पता चला तो उन्होंने जांच के लिए कहा। इस जांच में ही गुफा में जाने के बाद मारबर्ग होने की पुष्टि हुई थी। WHO के मुताबिक एक बार जब इंसान इसकी पकड़ में आ जाता है तो उसके शारीरिक संपर्क, व्यक्ति के द्रव या संक्रमित सहत और दूसरी सामग्रियों से फैलने लगता है।
अब तक 12 बार फैल चुका है ‘मारबर्ग’
साल 1967 के बाद से अभी तक मारबर्ग बड़े स्तर पर 12 बार फैल चुका है। इस संक्रमण का अभी तक ज्यादातर प्रभाव दक्षिण और पूर्वी अफ्रीका में हुआ है। मारबर्ग में लोगों को सरदर्द, खून की उल्टी, मांसपेशियों में दर्द और शरीर में पाए जाने वाले विभिन्न छिद्रों से खून बहने लगता है। सात दिनों के भीतर गंभीर रक्तस्राव से कई रोगियों की मृत्यु हो जाती है।