नई दिल्ली। देश की आजादी में कई लोगों ने अपना बलिदान दिया। लेकिन कुछ लोग ऐसे भी थे जिनका योगदान इतिहास के पन्नों से पूरी तरह बाहर नहीं आ सका। उनमें से एक थे वीर सावरकर। सावरकर को वह सम्मान नहीं मिला जिसके वो हकदार थे। आज के समय में कुछ लोग वीर सावरकर का समर्थन करने करते हैं, तो कुछ लोग ऐसे भी हैं जो सावरकर को वीर नहीं मानते। हालांकि हम कुछ भी माने लेकिन इतिहास में सावरकर के अस्तित्व को नकार नहीं सकते। उनका जन्म आज ही के दिन 28 मई 1883 को महाराष्ट्र के एक छोटे से गांव में हुआ था। उनके पिता का नाम दामोदर पंथ था और उनकी माता का नाम राधाबाई था।
9 साल की उम्र में मां की मौत
सावरकर जब 9 वर्ष की आयु में थे तब हैजे की बीमारी से उनकी मां का देहांत हो गया। मां की मौत के 7 साल बाद पिता भी इस दुनिया को छोड़ कर चले गए। माता-पिता की मृत्यु के बाद घर की सारी जिम्मेदारी वीर सावरकर के बड़े भाई के ऊपर आ गई। बड़े भाई ने कम उम्र से ही परिवार के पालन- पोषण का भार उठा लिया। बड़े भाई की कठनाईयों और संघर्ष को देख कर वीर सावरकर के व्यक्तित्व पर इसका गहरा असर पड़ा। बड़े भाई आर्थिक संकट के बावजूद सावरकर को पढ़ने के लिए प्रेरित करते थे। हालांकि वो उन्हें उच्च शिक्षा नहीं दिला सकते थे।
कम उम्र में ही हो गई थी शादी
ऐसे में सावरकर की शादी कम उम्र में ही यमुना बाई के साथ कर दी गई। शादी के बाद सावरकर ने ससुराल में उच्च शिक्षा के लिए इच्छा जताई। जिसके बाद उनके ससुर ने शिक्षा का भार उठाया। उन्होंने मैट्रिक की पढ़ाई पूरी करने के बाद फर्ग्यूसन कॉलेज, पुणे से बीएए तक की पढ़ाई पूरी की। और इसके बाद लॉ की पढ़ाई करने के लिए वे लंदन चले गए।
आजीवन कारावास की सजा दुहरी सजा
सावरकर की पहचान क्रांतिकारी, कवि, समाजसेवी, भाषाविद के तौर पर भी होती है। 1857 के प्रथम स्वतंत्रता आंदोलन को उन्होंने अपनी कलम से सूचीबद्ध किया था। वे अपने जीवनकाल में कई बार जेल गए। इनमें सबसे ज्यादा लंबा समय 1911 से 1921 तक अंडमान की सेल्युलर जेल में रहा। उन्हें काले पानी की सजा सुनाई गई थी। सावरकर देश के अकेले ऐसे व्यक्ति है रहे हैं जिन्हें आजीवन कारावास की दुहरी सजा सुनाई गई थी। जब वे अंडमान के जेल में बंद थे तो उन्होंने पत्थरों से जेल की दीवरों पर 10 हजार से ज्यादा कविताएं लिखीं थीं।
हिंदु महासभा के छह बार राष्ट्रीय अध्यक्ष चुने गए
जैसा की मैंने पहले बताया कि उन्होंने बैरिस्टर की डिग्री इंग्लैंड से ली थी। इस कारण से जब वे भारत में अंग्रेजी राज का विरोध करने लगे तो उन्हें अपनी डिग्री से हाथ धोना पड़ा। सावरकर को उस दौर का सबसे बड़ा हिंदूवादी नेता माना जाता है। सावरकर अखिल भारतीय हिंदू महासभा के छह बार राष्ट्रीय अध्यक्ष चुने गए। सावरकर जीवनभर हिंदुत्व का झंडा थामकर संघर्ष करते रहे। हालांकि हिंदुत्व के प्रति उनका यह प्रेम कुछ लोगों को रास नहीं आया। सावरकर आजादी के बाद उन लोगों में से थे जिन्होंने भारत विभाजन का विरोध किया था। वे इस विभाजन के लिए गांधी जी को जिम्मेदार ठहराते थे।
गांधी जी की हत्या का आरोप लगा
यही कारण है कि जब 1948 में गांधी जी की हत्या हुई तो इसका आरोप भी सावरकर पर लगा। उनके खिलाफ मुकदमा भी चला, लेकिन दोष साबित नहीं हो सका और कोर्ट ने उन्हें बाइज्जत बरी कर दिया। 26 फरवरी 1966 के दिन मुंबई में सावरकर का निधन हो गया। जिसके बाद सरकार ने इनकी याद में डाक टिकट भी जारी किया था।