हाइलाइट्स
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आचार्य श्री के उपदेश सिखाते हैं जीवन जीने का तरीका।
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मनुष्य जीवन में लाते हैं सुधार, दिखाते हैं सही राह।
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देते हैं अच्छी सीख, जागृत करते हैं मानवता की ओर।
Jain Muni Acharya Vidyasagar: वैसे तो आचार्य श्री विद्यासागर जी महाराज के ढेरों उपदेश हैं, जो मानव जीवन में अपनी अहम भूमिका निभाते हुए अच्छाई की ओर ले जाते हैं। इन्हीं उपदेशों में से हम आपको 7 ऐसे मुख्य उपदेश (अमृत वचन) के बारे में बताएंगे जो हमें जीवन जीने का तरीका और सही सलीका सिखाते हैं।
01 जीव दया ही परम धर्म है
जीव दया ही परम धर्म है, यानि मानव को इस संसार के हर एक जीव पर दया करनी चाहिए। हरे-भरे पेड़ों को नहीं काटने चाहिए, यही सच्चा मानव धर्म है।
सेवा में जो सुख मिलता है, वो कहीं ओर नहीं। नर में ही नारायण का वास होता है। अगर व्यक्ति किसी जरूरतमंद, गरीब या असहाय की सेवा या उसकी मदद करता है, तो वह ईश्वर की सेवा सामान होती है।
हमें इस संसार में औपचारिकता छोड़ कर हकीकत में ही सेवा कार्य करना चाहिए। यही सच्चा मानव धर्म होता है।
02 – अच्छे लोग दूसरों के लिए जीते हैं जबकि दुष्ट लोग दूसरों पर जीते हैं
इस उपदेश समझाता है कि जो लोग अच्छे होते हैं, वे दूसरों के लिए जीते हैं, दूसरों की खुशियों में उन्हें आनंद आता है। दूसरों की खुशी में अपनी खुशी मानते हैं।
जबकि जो लोग दुष्ट होते हैं, वे सिर्फ और सिर्फ अपने लिए जीते हैं। साथ ही दूसरों का शोषण करते हैं, दूसरों पर निर्भर होते हैं। दुष्ट लोगों को दूसरों को दुख में देखकर बहुत खुशी होती है। दूसरों की परेशानी देखने उनको आनंद मिलता है।
03 – नम्रता से देवता भी मनुष्य के वश में हो जाते हैं
आचार्य श्री विद्यासागर जी महाराज जी द्वारा दिया गया यह उपदेश बहुत ही महत्वपूर्ण है। उपदेश में कहा गया है, कि अगर मानव नम्रता रखे तो देवता भी मनुष्य के वश में हो जाते हैं।
हमेशा नम्रता रखनी चाहिए। क्योंकि नम्रता से काम बिगड़ते नहीं है, बल्कि बिगड़ने वाले काम भी आसानी से बन जाते हैं।
04 – क्रोध मूर्खता से शुरू होता है और पश्चताप पर खत्म होता है
क्रोध आना स्वाभाविक है। लेकिन क्रोध हमेशा मूर्खता से शुरु होता है और पश्चाताप पर खत्म होता है। हालांकि क्रोध कभी भी बिना कारण के नहीं होता है, लेकिन हमेशा ही यह कारण सार्थक होता है।
गुस्सा से शुरू होने वाली हर एक बात, लज्जा पर खत्म होती है। क्रोध एक तेजाब है, जो उस बर्तन का अधिक अनिष्ट कर सकता है, जिसमें वह भरा होता है न कि उसका जिस पर वह डाला जाता है।
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05 – श्रद्धा के बिना पूजा-पाठ व्यर्थ है
श्रद्धा और भावना के बिना पूजा-पाठ करना व्यर्थ है। जब तक श्रद्धा मनुष्य के अंदर नहीं है, तो उसका पूजा-पाठ करना व्यर्थ है। क्योंकि जबरन की पूजा करना या पाठ करना लाभकारी नहीं होता।
06 – जो नमता है वो परमात्मा को जमता है
जीवन में नम्रता का होना बहुत जरूरी है। बगैर नम्रता के जीवन बेकार है। जिस मनुष्य में नम्रता होती है, उसे परमात्मा बहुत पसंद करते हैं। नम्रता वाला व्यक्ति ईश्वर का प्यारा होता है।
नम्रता व्यक्ति की पहचान होती है, जो नम्रता से बड़े-बड़े काम बन जाते हैं। लोगों का लगाव बढ़ता है। जीवन में नम्रता का होना बहुत जरूरी है।
07 – शुभ-अशुभ कर्मों का फल जरूर मिलता है
कर्म का सिद्धांत बहुत कठोर है। जहां अच्छे कर्म व्यक्ति के जीवन को प्रगति की दिशा में बढ़ाते हैं और सफलता हासिल करवा देते हैं, तो वहीं बुरे कर्म व्यक्ति को बर्बादी की ओर ले जाते हैं।
धर्मग्रंथों के अनुसार, मनुष्य को किए हुए शुभ या अशुभ कर्मों का फल जरूर भोगना पड़ता है। चाहे वह जाने में किए हों या अनजाने में। सभी को अपने कर्मों का फल मिलना तो तय है।