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Shivpuri News: 40 जाटव परिवारों ने सनातन छोड़ अपनाया बौद्ध धर्म, बताया चौकानें वाला कारण

Shivpuri News: मध्यप्रदेश के शिवपुरी में 31 जनवरी के करैरा के ग्राम बहगवां में 40 जाटव परिवारों ने सनातन छोड़ बौद्ध धर्म में अपनाया.

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Manya Jain
Shivpuri News: 40 जाटव परिवारों ने सनातन छोड़ अपनाया बौद्ध धर्म, बताया चौकानें वाला कारण

हाइलाइट्स

  • 40 जाटव परिवारों ने अपनाया बौद्ध धर्म
  • सनातन धर्म छोड़ने की बताई बड़ी वजह
  • परिवार गांव में छुआछूत से थे परेशान
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Shivpuri News: मध्यप्रदेश के शिवपुरी में 40 जाटव परिवारों ने सनातन धर्म को छोड़ बौद्ध धर्म में चले गए.जानकारी के मुताबिक में 31 जनवरी को शिवपुरी जिले के करैरा के ग्राम बहगवां में श्रीमद भगवत गीता आयोजन के आयोजन में जाटव समाज के 40 परिवारों ने गाँव में छुआछूत के चलते बौद्ध धर्म अपनाने का फैसला किया है. जिसका वीडियो 2 फरवरी को सामने आया है.

https://twitter.com/BansalNewsMPCG/status/1753730246275158527?s=20

   सनातन छोड़ने की चौकानें वाली वजह 

जिन भी परिवारों ने बौद्ध धर्म अपनाया है. उन्होंने सनातन छोड़ने की चौकानें वाली वजह बताई है. परिवारों कहना है कि शिवपुरी (Shivpuri News) के करैरा के ग्राम बहगवां में 31 जनवरी को श्रीमद भगवत गीता का आयोजन किया गया था. जिसमें भंडारे के लिए जाटव समाज के लोगों को झूठी पत्तल उठाने का काम सौंपा गया था. जिसके कारण भंडारे से एक दिन पहले 40 जाटव परिवारों ने सनातन धर्म को छोड़ बौद्ध धर्म अपना लिया.

   भीम आर्मी के सदस्य ने के क्या कहा 

इस मामले में भीम आर्मी के प्रदेश कार्यसमिति सदस्य महेंद्र बौद्ध ने परिवारों के बौद्ध धर्म अपनाने की वजह बताई. उन्होंने कहा कि जाटव समाज के लोगों से गांव के भादरे में पत्तल परोसने और झूठी पत्तल उठाने का काम सौंपा जाता है. लेकिन गाँव के एक रहवासी ने कहा कि जाटव समाज के लोगों से खाना परोसवाने से पत्तल खराब हो जाएँगी. इसलिए केवल इनसे झूठी पत्तल ही उठवाना चाहिए. साथ ही इन लोगों से कहा गया कि पत्तल उठाना हिया तो उठाओ नहीं तो खाना खाकर अपने घर चले जाओ. इस बुरे व्यवहार और छुआछूत के कारण जाटव समाज ने अपना धर्म परिवर्तित कर लिया.

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   सरपंच ने निराधार बताए आरोप 

बता दें शिवपुरी (Shivpuri News) के करैरा के ग्राम बहगवां के सरपंच गजेन्द्र रावत को गलत बताया है. उन्होंने बताया कि एक दिन पहले जाटव समाज के लोगों ने प्रसाद बंटवाया था. जिसे  पूरे गाँव वालों ने लिया और ग्रहण भी किया. लेकिन गाँव में आए बौद्ध भिक्षु ने परिवारों को बहला-फुसलाकर धर्म परिवर्तन करवाया है. साथ ही उन्होंने कहा कि भंडारे का काम किसी विशेष समाज के लोगों नहीं सौंपा गया था. सभी के साथ मिल-जुलकर का हुआ है और समाज के किसी भी व्यक्ति के साथ कोई भेदभाव व छुआछूत नहीं किया गया है.

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