MP Employees Additional Salary Hike: मध्य प्रदेश हाईकोर्ट ने बड़ा फैसला सुनाया है। कोर्ट ने प्रदेश के 2005 से पहले नियुक्त 2 लाख कर्मचारियों और 1.50 लाख पेंशनरों को 5वें वेतनमान में वेतनवृद्धि का लाभ दिए जाने का आदेश दिया है। कोर्ट ने सरकार को 4 हफ्ते में वेतनवृद्धि करने और 6वें वेतनमान में वेतन निर्धारण करने का आदेश दिया है। एडवोकेट जनरल को इसका पालन सुनिश्चित करने की जिम्मेदारी सौंपी गई है। एमपी हाईकोर्ट की डबल बेंच ने इस मामले की सुनवाई की।
चीफ जस्टिस सुनील कुमार कैत ने सरकार को लगाई फटकार
जबलपुर हाईकोर्ट में 5 अक्टूबर को एसोसिएशन ने एक रिट पिटिशन दायर की थी, जिसका फैसला शुक्रवार को आया। कोर्ट ने सरकार को फटकार लगाते हुए कहा कि याचिकाकर्ताओं के वकील ने कोर्ट को बताया कि राज्य सरकार ने पहले ही फिक्सेशन कर दी थी, लेकिन कर्मचारियों को लाभ नहीं दिया गया। इसके जवाब में कोर्ट ने सरकार को निर्धारित समय में लाभ देने का आदेश दिया। एसोसिएशन के संरक्षक गणेश दत्त जोशी और प्रदेश अध्यक्ष आमोद सक्सेना ने बताया कि मध्य प्रदेश वेतन पुनरीक्षण नियम 2009 के नियम 9 के अनुसार, वेतनवृद्धि एक समान (1 जुलाई) करने की वजह से कर्मचारियों को 6वें वेतनमान में 13 से 18 महीने बाद वार्षिक वेतनवृद्धि का लाभ मिला है।
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19 मार्च 2012 को केंद्र ने किया था संसोधन
इस मामले के सामने आने के बाद केंद्र सरकार ने 19 मार्च 2012 को 6वें वेतनमान के नियम में संशोधन किया। इसमें कहा गया कि जिन कर्मचारियों की वेतनवृद्धि 2005 में 1 जनवरी से 1 जुलाई के बीच हुई, उन्हें 5वें वेतनमान में एक वेतनवृद्धि देकर 6वें वेतनमान में वेतन निर्धारण करते हुए 1 जुलाई 2006 को वार्षिक वेतनवृद्धि दी जाएगी। एसोसिएशन के संरक्षक गणेश दत्त जोशी और प्रदेश अध्यक्ष आमोद सक्सेना का कहना है कि हमने याचिका में इसी मुद्दे को उठाया है। उन्होंने बताया सरकार कोर्ट के आदेश के अनुसार निराकरण करेगी तो 1500 से 2000 तक का लाभ मिलेगा।
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एमपी ने नहीं माने केंद्र के निर्देश
आमोद सक्सेना बताते हैं कि उत्तर प्रदेश और छत्तीसगढ़ सरकारों ने केंद्र सरकार के निर्देशों का पालन करते हुए अपने कर्मचारियों का वेतन निर्धारण किया, लेकिन मध्य प्रदेश सरकार ने इसे मानने से इनकार कर दिया। जोशी का कहना है कि उन्होंने 22 मार्च 2012 को केंद्र सरकार के निर्देशों का हवाला देते हुए वेतनवृद्धि में सुधार के लिए एक ज्ञापन प्रस्तुत किया था, जिसे तत्कालीन वित्त मंत्री, प्रमुख सचिव वित्त और मुख्य सचिव ने अनुमोदित किया, लेकिन फिर भी आदेश जारी नहीं हुए। इसके बाद एसोसिएशन के अध्यक्ष आमोद सक्सेना इस मामले को लेकर हाईकोर्ट गए।