Kargil Vijay Diwas 2023: कारगिल युद्ध में भारतीय सेना का लोहा पूरी दुनिया ने माना था। 24 साल पहले बर्फीली और दुर्गम पहाड़ियों में हुई इस जंग में भारतीय जवानों ने अपने अदम्य साहस और शौर्य का परिचय दिया था। इस युद्ध में भारत के सामने पाकिस्तान
को घुटने टेकने पड़े थे। हाड़ जमा देने वाली ठंड में 84 दिनों तक ये लड़ाई लड़ी गई थी। जिस इलाके में ये युद्ध लड़ा गया था वहां सर्दियों में पारा माइनस 50 डिग्री तक चला जाता है। लड़ाई 26 जुलाई 1999 को खत्म हुई थी। जीत को याद करते हुए हर साल 26 जुलाई को
‘विजय दिवस’ के तौर पर मनाया जाता है।
पीएम ने दी श्रद्धांजलि
वहीं पीएम मोदी ने भी ट्वीट कर शहीद जवानों को श्रद्धांजलि दी। पीएम ने लिखा कारगिल विजय दिवस भारत के उन अद्भुत पराक्रमियों की शौर्यगाथा को सामने लाता है, जो देशवासियों के लिए सदैव प्रेरणाशक्ति बने रहेंगे। इस विशेष दिवस पर मैं उनका हृदय से नमन और वंदन करता हूं। जय हिंद!
कारगिल विजय दिवस भारत के उन अद्भुत पराक्रमियों की शौर्यगाथा को सामने लाता है, जो देशवासियों के लिए सदैव प्रेरणाशक्ति बने रहेंगे। इस विशेष दिवस पर मैं उनका हृदय से नमन और वंदन करता हूं। जय हिंद!
— Narendra Modi (@narendramodi) July 26, 2023
सियाचिन पर थी पाकिस्तान की नजर
पाकिस्तान की नजर सियाचिन पर थी और वो यहां काबिज होना चाहता था। पाकिस्तान ने इसी को ध्यान में रखते हुए कारगिल की चोटियों पर कब्जा करना चाहा था लेकिन भारतीय जवानों के पराक्रम के सामने उसकी एक ना चली। शुरुआत में कारगिल की जंग भारत के लिए मुश्किल साबित हो रही थी, लेकिन बोफोर्स गन यहां गेम चेंजर साबित हुई थी।
तोलोलिंग चोटी
इस दौरान द्रास सेक्टर की जिम्मेदारी लेफ्टिनेंट जनरल मोहिंद्र पुरी को सौंपी गई थी। भारतीय सेना द्वारा तोलोलिंग चोटी पर कब्जा करने की कोशिश असफल हो रही थी। इसके बाद दो राजपूताना राइफल्स को इसकी जिम्मेदारी सौंपी गई। 9 जून को जब भारतीय सेना ने
बाल्टिक क्षेत्र में कब्जा किया तो इधर के सैनिकों का जज्बा भी बढ़ गया। इसके बाद 13 जून को तोलोलिंग चोटी पर भारतीय तिरंगा लहरा रहा था। इस चोटी पर फतह हासिल करने के दौरान अपने सीने पर 5 गोलियां खाते हुए कोबरा दिगेंद्र सिंह ने अकेले 48 घुसपैठियों को
मौत की नींद सुलाया था।
सबसे अहम जीत टाइगर हिल
सब से ऊंची चोटी टाइगर हिल पर कब्जा करने के लिए भारतीय सैनिकों ने 11 घंटे की लड़ाई लड़ी थी। इस जीत में सूबेदार महेंद्र सिंह का अहम योगदान रहा क्योंकि उन्होंने 15 गोलियां लगने के बावजूद भी पाकिस्तानियों की तरफ ग्रेनेड फेंका था। जिससे उन्हें लगा कि
बैकअप आ चुका है और वो डर गए। टाइगर हिल पर जीत हासिल करने के लिए 18 ग्रेनेडियर टीम को भेजा गया था। इस जीत के लिए लेफ्टिनेंट बलवंत सिंह को महावीर चक्र से सम्मानित किया गया था।
कैप्टन विक्रम बत्रा का दिल मांगे मोर
20 जून को कैप्टन बत्रा और उनकी टीम ने प्वाइंट 5140 को दुश्मनों के कब्जे से मुक्त करवाया था। इस चोटी पर जीत हासिल करने के बाद उन्होंने दिल मांगे मोर का उद्घोष किया और अगली चोटी 4875 को फतह करने के लिए आगे बढ़े। जहां उन्होंने पांच पाकिस्तानी
दुश्मनों को मार गिराया। इस बीच उनके एक जवान को गोली लग गई थी जिसे बचाने के लिए वो आगे पहुंचे तभी उन्हें गोली लग गई। इस शहादत के लिए उन्हें सर्वोच्च वीरता पुरस्कार परमवीर चक्र से सम्मानित किया गया था।
बटालिक का जुबर हिल
टाइगर हिल पर जीत हासिल करने के बाद भारतीय जवानों ने बटालिक क्षेत्र की जुबर हिल पर कब्जा किया था। इस हिल पर कबसे के दौरान मेजर सरवनन शहीद हो गए थे। अपनी प्लाटून का नेतृत्व करते हुए उन्होंने 29 मई को दुश्मनों के दो बंकरों को कब्जे में ले लिया था।
चार दुश्मनों को मार गिराने के बाद वो शहीद हुए थे।
युद्ध की पूरी टाइमलाइन
कारगिल युद्ध की शुरुआत वैसे तो 3 मई को ही हो गई थी। इसी दिन भारतीय सेना को घुसपैठ की सूचना मिली थी। भारत-पाकिस्तान के बीच असल युद्ध 60 दिनों तक चला, जिसे ‘ऑपरेशन विजय’ के नाम से जाना जाता है। तो चलिए आपको बताते हैं कि जंग में कब-कब क्या-क्या हुआ।
3 मई 1999: कारगिल के पहाड़ी क्षेत्र में स्थानीय चरवाहों ने कई हथियारबंद पाकिस्तानी सैनिकों और आतंकियों को देखा। चरवाहों ने इसकी सूचना भारतीय सेना को दी।
5 मई 1999: कारगिल के इलाके में घुसपैठ की खबर मिलने के बाद भारतीय सेना एक्टिव हुई और जवानों को पेट्रोलिंग पर भेजा गया। पेट्रोलिंग पार्टी जब घुसपैठ वाले इलाके में पहुंची तो पाकिस्तान सेना ने पांच जवानों को शहीद कर दिया। शहीद जवानों के शवों के साथ बर्बरता भी की गई।
9 मई 1999: पाकिस्तानी सैनिक कारगिल में मजबूत स्थिति में पहुंच चुके थे। कारगिल में भारतीय सेना के गोला-बारूद डिपो को निशाना बनाते हुए पाकिस्तानी सेना ने भारी गोलाबारी की।
10 मई 1999: पाकिस्तानी सेना के जवानों ने LOC के पार द्रास और काकसर सेक्टरों सहित जम्मू-कश्मीर के अन्य हिस्सों में घुसपैठ की।
10 मई 1999: इस दिन दोपहर के समय भारतीय सेना ने ‘ऑपरेशन विजय’ की शुरुआत की। घुसपैठ की कोशिशों को रोकने के लिए कश्मीर घाटी से अधिक संख्या में सैनिकों को कारगिल जिले में ले जाया गया।
26 मई 1999: भारतीय वायुसेना ने जवाबी कार्रवाई के तहत हवाई हमले शुरू किए। इन हवाई हमलों से भारत को जंग में खासी बढ़त मिली।
1 जून 1999: पाकिस्तानी सेना ने हमलों की रफ्तार को तेज कर दिया और नेशनल हाइवे-1 को निशाना बनाया। फ्रांस और अमेरिका ने भारत के खिलाफ जंग छेड़ने के लिए पाकिस्तान को जिम्मेदार ठहराया।
5 जून 1999: भारत ने दस्तावेज जारी किए जो पाकिस्तानी सेना हमले में हाथ होने का खुलासा कर रहे थे।
9 जून 1999: भारतीय सेना के जवानों ने पराक्रम दिखाते हुए जम्मू-कश्मीर के बटालिक सेक्टर में दो प्रमुख पॉजिशन्स पर दोबारा कब्जा किया.
13 जून 1999: पाकिस्तान को एक बड़ा झटका तब लगा जब भारतीय सेना ने तोलोलिंग चोटी पर फिर से कब्जा कर लिया।
20 जून 1999: भारतीय सेना ने टाइगर हिल के पास अहम इलाकों पर फिर से कब्जा कर लिया।
4 जुलाई 1999: भारतीय सेना ने टाइगर हिल पर कब्जा किया।
5 जुलाई 1999: पाकिस्तान के प्रधानमंत्री ने अंतरराष्ट्रीय दबाव के बाद कारगिल से पाकिस्तानी सेना के वापस लौटने का ऐलान कर दिया।
12 जुलाई 1999: पाकिस्तानी सैनिकों को पीछे हटने के लिए मजबूर किया गया।
14 जुलाई 1999: भारतीय प्रधानमंत्री ने सेना के ‘ऑपरेशन विजय’ को सफलतापूर्वक पूरा होने का ऐलान किया।
26 जुलाई 1999: पाकिस्तानी सेना के कब्जे वाले सभी पॉजिशन्स को फिर से अपने कब्जे में लेकर भारत ने जंग जीत ली। कारगिल युद्ध 2 महीने तीन हफ्ते से अधिक वक्त तक चला।
मातृभूमि की रक्षा करते हुए 500 से अधिक भारतीय सैनिकों ने अपना सर्वोच्च बलिदान दिया। 18 हजार फीट से अधिक की ऊंचाई और बर्फीले पहाड़ों पर लड़ा गया ये युद्ध भारतीय सेनाओं के पराक्रम की गाथा कहता है।
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