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Dowry System: एक रानी ने जारी किया 200 साल पहले दहेज प्रथा रोकने का शाही फरमान, जानें पूरी कहानी

Dowry System: दहेज प्रथा से जुड़ा ये शाही फरमान केरल राज्य अभिलेखागार में रखा है। फरमान में दण्डित करने का भी प्रावधान था।

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Rahul Sharma
Dowry System: एक रानी ने जारी किया 200 साल पहले दहेज प्रथा रोकने का शाही फरमान, जानें पूरी कहानी

   हाइलाइट्स

  • वर्ष 1823 में महारानी गौरी पार्वती बाई ने जारी किया शाही फरमान
  • दहेज प्रथा से जुड़ा ये शाही फरमान केरल राज्य अभिलेखागार में रखा है
  • फरमान में था दण्डित करने का भी प्रावधान
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Dowry System: दहेज के नाम पर महिलाओं से क्रूर व्यवहार करने और उन्हें प्रताड़ना देने के बारे में सुनने से सालों पहले दक्षिण भारत के त्रावणकोर में एक दूरदर्शी रानी ऐसी भी थी, जिसने दहेज (Dowry System) की समस्या पर लगाम लगाने के लिए पहल की थी।

प्राचीन अभिलेखों से इस बात की जानकारी मिली है। महारानी गौरी पार्वती बाई ने ब्राह्मण समुदाय में महिलाओं से शादी करने के लिए अत्याधिक 'वरदक्षिणा' (कुछ समुदायों में दहेज के लिए इस्तेमाल किया जाने वाला शब्द) मांगने की प्रथा पर सवाल उठाया और वर्ष 1823 में इसकी राशि को सीमित करने का एक फरमान जारी किया।

यह क्रांतिकारी फैसला वर्ष 1815 से 1829 की अवधि के दौरान त्रावणकोर (वर्तमान दक्षिणी केरल) पर शासन करने वाली रानी ने लिया था।

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   इतिहासकार इसलिए फैसले को मानते हैं महत्वपूर्ण

इतिहासकार बताते हैं कि यह फैसला इसलिए भी अपने आप में अधिक महत्व रखता था क्योंकि महारानी ने उस समय एक मौजूदा सामाजिक प्रथा में हस्तक्षेप किया और अपने देश की महिलाओं के पक्ष में निर्णय लिया।

भले ही उन्होंने दहेज (Dowry System) पर पूरी तरह से प्रतिबंध नहीं लगाया था। हाल के वर्षों में जिस तरह से देश भर में महिलाओं पर क्रूर हमलों और दहेज से संबंधित आत्महत्याओं की बढ़ती घटनाएं सामने आ रही है, ऐसे में दो शताब्दी से अधिक पुराना शाही फरमान अब भी महत्व रखता है।

   केरल राज्य के अभिलेखागार में रखा है शाही फरमान

महारानी का 19वीं शताब्दी का दहेज प्रथा (Dowry System) से जुड़ा ये शाही फरमान अब भी केरल राज्य अभिलेखागार में उपलब्ध है और इस बात का संकेत देता है कि यह खतरा दो शताब्दी पहले भी देश के इस हिस्से में गहराई तक जड़ें जमा चुका था।

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   आदेश में महिलाओं की दुर्दशा की ओर इशारा

रानी पार्वती बाई ने अपने ऐतिहासिक आदेश में 19वीं शताब्दी के दौरान ब्राह्मण समुदाय के 'नंबूथिरी' और 'पोट्टी' वर्गों में महिलाओं की दुर्दशा की ओर इशारा किया।

तत्कालीन सामाजिक प्रथाओं की ओर इशारा करते हुए उन्होंने अपने आदेश में कहा कि रियासत में प्रचलित व्यवस्था के अनुसार समुदाय की लड़कियों की शादी 10-14 वर्ष की आयु के भीतर कर दी जानी चाहिए।

   रानी ने यह दिया आदेश

रानी पार्वती बाई ने कहा था कि समुदाय के कई परिवार अपनी लड़कियों की शादी करने में असमर्थ थे क्योंकि दूल्हे द्वारा वरदक्षिणा (Dowry System) के रूप में एक हजार से दो हजार फणम (एक प्रकार का पैसा) की मांग की जाती थी।

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उन्होंने 'वरदक्षिणा' के रूप में 700 'कलियान फणम' (एक प्रकार का धन) से अधिक न देने या फिर मांग करने को लेकर सख्त चेतावनी जारी की थी।

समुदाय के सभी लोगों से शाही प्रशासन के फैसले का पालन करने का आग्रह करते हुए महारानी ने यह भी कहा था कि जो लोग इसका उल्लंघन करेंगे उन्हें अदालत को सौंप दिया जाएगा और देश के कानून के अनुसार दंडित किया जाएगा।

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