2 June ki Roti: शनिवार से जून का महीना शुरू हो जाएगा। इसके बाद शनिवार को आएगी एक खास तारीख, दो जून 2024 (2 June 2024)। इस तारीख को लेकर एक कहावत सालों से चली आ रही है जो खास कहावत है 2 जून की रोटी(2 June ki Roti Kyon kahte hain)।
पर क्या आप जानते हैं आखिर क्यों कहते हैं, यदि नहीं तो चलिए आज हम आपको बताते हैं कि आखिर दो जून की रोटी से क्या मतलब (Meaning of 2 June ki Roti) है। इसका कुछ शाब्दिक अर्थ है या ऐसे ही कहा जाता है दो जून की रोटी।
क्यों कहते हैं दो जून की रोटी
दरअसल दो जून एक कहावत है। पर ये एक अवधी भाषा (Avadhi me 2 June) का शब्द है। अवधि भाषा में जून का अर्थ (Meanig of 2 June ki Roti) होता है वक्त यानी समय। यानी दोनों समय का भोजन। इसलिए पुराने जमाने में बुजूर्ग सुबह शाम के भोजन को दो जून की रोटी के साथ संबोधित करते थे।
हर किसी के नसीब में नहीं होती दो जून की रोटी
कहते हैं हर किसी के नसीब में दो जून की रोटी नहीं होती है। ऐसा इसलिए क्योंकि आज के समय में बेरोजगारी, भ्रष्टाचार इतना बढ़ गया है कि गरीबों को दो जून की रोटी नसीब नहीं होती है।
दो जून की रोटी के लिए सरकार की योजनाएं
गरीबों को दो जून की रोटी यानी भोजन मिलता रहे इसके लिए सरकार कई योजनाएं भी चला रही है। आपको बता दें प्रधानमंत्री गरीब कल्याण अन्न योजना यानी पीएमजीकेएवाई (PMGKY) एक ऐसी योजना है जो भारत में गरीब लोगों को मुफ्त खाद्यान्न देती है।
इस योजना का शुभारंभ चार साल पहले अप्रैल 2020 में COVID-19 महामारी के दौरान लोगों की मदद के लिए किया गया था। इसमें हर लाभार्थी को हर महीने 05 किलो मुफ्त अनाज दिया जाता है। ये योजना सब्सिडी के साथ दिए जाने वाले राशन के अलावा है।
2 जून की रोटी का असली मतलब
दरअसल, 2 जून की रोटी एक कहावत है और इसका मतलब 2 वक्त के खाने से होता है। अवधि भाषा में जून का मतलब वक्त यानी समय से होता है।
साल 2017 में आए नेशनल फैमिली हेल्थ सर्वे के अनुसार, देश में 19 करोड़ लोग ऐसे हैं, जिन्हें सही तरीके से भोजन नहीं मिल पा रहा है. इसका मतलब यह हुआ कि करोड़ों लोगों को आज भी भूखे पेट ही सोना पड़ता है. हालांकि, सभी लोगों को दो जून की रोटी नसीब हो सके, इसके लिए केंद्र सरकार कोरोनाकाल से ही मुफ्त में राशन मुहैया करवा रही है, जिसका 80 करोड़ जनता को सीधा फायदा मिल रहा है.
जून से ही क्यों जोड़ते हैं दो जून की रोटी
वैसे तो दो जून का मतलब दो समय की रोटी से होता है। लेकिन ये कहावत जून के महीने में ज्यादा ट्रेंडिंग में आ जाती है। इसके पीछे मान्यता है कि अंग्रेजी कैलेंडर का जून और हिन्दी का ज्येष्ठ का महीना सबसे गर्म माना जाता है।
ऐसे में सभी इंसानों को भोजन और पानी की सबसे ज्यादा जरूरत होती है। शायद यही कारण है कि जून के महीने में 2 जून की रोटी वाली कहावत ज्यादा चलन में आ जाती है। ऐसा माना जाता है कि ये कहावत आज से नहीं बल्कि 600 सालों पहले से चली आ रही है।
कितने साल पुरानी है दो जून की रोटी कहावत
दो जून की रोटी कहावत का जिक्र सालों से चला आ रहा है। इसे लेकर कई इतिहासकारों ने इसका जिक्र अपनी रचनाओं में भी किया है। इसमें प्रेमचंद से लेकर जयशंकर प्रसाद तक की अपनी कहानियों में शामिल किया।
दो जून की रोटी के लिए अन्नदाता को धन्यवाद
दो जून की रोटी को लेकर जो सबसे बड़ा प्रथम चरण होता है जिसे हमें धन्यवाद देना चाहिए वो हैं हमारे किसान भाई। इसलिए दो जून की रोटी के लिए किसान भाई दिन रात मेहनत करके एक बीज से पौधा बनने तक साल भर मेहनत करते हैं। तब कहीं जाकर हमें दो जून की रोटी के लिए अनाज मिलता है।
दुनिया भर में कितने लोग भूख से मर रहे हैं
दुनिया भर में भोजन की कमी या खाने का खर्चा न उठा पाने को लेकर कुछ आंकड़े जारी किए गए हैं। विश्व में खाद्य सुरक्षा और पोषण की स्थिति (एसओएफआई) रिपोर्ट 2022 द स्टेट ऑफ फूड सिक्योरिटी एंड न्यूट्रिशन इन द वर्ल्ड
SOFI 2023 की रिपोर्ट के अनुसार
विश्व में खाद्य सुरक्षा और पोषण की स्थिति (एसओएफआई) की रिपोर्ट 2022 यानी द स्टेट ऑफ फूड सिक्योरिटी एंड न्यूट्रिशन इन द वर्ल्ड के अनुसार वैश्विक स्तर पर 42 फीसदी लोग स्वस्थ आहार का खर्च वहन नहीं कर पाते। यानी 42 प्रतिशत लोग ऐसे हैं तो जिन्हें पोषण युक्त आहार नहीं मिल पाता है।
यूनिसेफ (Unisef) के 2023 के आंकड़ों की बात करें तो इसके अनुसार वैश्विक स्तर पर 1 अरब लड़कियों और महिलाओं को अल्पपोषण का सामना करना पड़ता है।
इसमें 5 साल से कम उम्र के बच्चों की बात करें तो 149 मिलियन बच्चे ऐसे हैं जो अविकसित हैं।
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