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2 June Ki Roti
2 June Ki Roti Meaning: जून का महीना शुरू होते ही एक कहावत बार-बार सुनने को मिलती है-"दो जून की रोटी"। ये सिर्फ शब्द नहीं, बल्कि भारत के करोड़ों लोगों की जमीनी हकीकत है। अक्सर कहा जाता है, “हर किसी के नसीब में दो जून की रोटी नहीं होती।” पर क्या आप जानते हैं इस कहावत की जड़ें कहां हैं और आज भी यह कितनी प्रासंगिक है?
कहावत का मतलब
“दो जून की रोटी” का शाब्दिक अर्थ है – सुबह और शाम का भोजन। यह कहावत अवधी भाषा से ली गई है, जहां "जून" का अर्थ होता है “वक्त” या “समय”। इसीलिए पुराने समय में बुज़ुर्ग दिन में दो बार खाने को “दो जून की रोटी” कहकर संबोधित करते थे।
आज भी लाखों लोगों को नहीं मिलती दो वक्त की रोटी
हालांकि यह एक सामान्य सी बात लग सकती है, लेकिन सच्चाई ये है कि भारत समेत दुनिया के कई देशों में करोड़ों लोग दो वक्त का भरपेट खाना नहीं खा पाते। SOFI 2023 रिपोर्ट के अनुसार, दुनिया के 42% लोग ऐसा आहार नहीं ले पाते जो उनके स्वास्थ्य के लिए जरूरी है। यूनिसेफ की रिपोर्ट बताती है कि दुनिया में 1 अरब महिलाएं और लड़कियां कुपोषण का शिकार हैं।
भारत में भी स्थिति चिंताजनक
भारत सरकार के नेशनल फैमिली हेल्थ सर्वे 2017 के मुताबिक, देश में लगभग 19 करोड़ लोग ऐसे हैं जिन्हें पर्याप्त भोजन नहीं मिल पाता। यही कारण है कि लाखों लोग हर रात भूखे पेट सोने को मजबूर हैं।
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सरकार की योजनाएं और प्रयास
सरकार ने इस संकट को देखते हुए प्रधानमंत्री गरीब कल्याण अन्न योजना (PMGKY) शुरू की, जो कोविड-19 के दौरान लागू की गई थी। इस योजना के तहत लगभग 80 करोड़ लोगों को हर महीने 5 किलो अनाज मुफ्त दिया जा रहा है।
जून महीने से क्यों जुड़ती है ये कहावत
हालांकि यह कहावत हर महीने लागू होती है, लेकिन जून का महीना यानी अंग्रेजी कैलेंडर का सबसे गर्म समय होने के कारण इसमें भोजन और पानी की आवश्यकता और अधिक बढ़ जाती है। यही कारण है कि “2 जून की रोटी” की चर्चा इस महीने में अधिक होती है।
ऐतिहासिक संदर्भ और साहित्यिक महत्व
“दो जून की रोटी” सिर्फ कहावत नहीं, बल्कि भारतीय साहित्य का हिस्सा बन चुकी है। प्रेमचंद, जयशंकर प्रसाद जैसे साहित्यकारों ने भी अपनी रचनाओं में इसका जिक्र किया है। कहा जाता है कि यह कहावत 600 साल पुरानी है और पीढ़ियों से चली आ रही है।
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