दिल्ली। ‘याहू इंक ने बढ़ती हुई चुनौतीपूर्ण स्थितियों का हवाला देते हुए मंगलवार को चीन में अपनी सेवाएं बंद करने का ऐलान किया। यह फैसला काफी हद तक प्रतीकात्मक है क्योंकि कम्पनी की कई सेवाओं को चीन की ‘डिजिटल सेंसरशिप’ द्वारा पहले ही बंद कर दिया गया था। हाल में चीन सरकार ने घरेलू बड़ी कम्पनियों सहित कई प्रौद्योगिकी कम्पनियों पर अपने नियंत्रण का विस्तार करने के लिए कदम उठाए हैं। ऐसा माना जा रहा है कि संभवत ‘याहू’ ने इसी वजह से यह फैसला किया है।
कंपनी ने इसलिए उठाया कदम
कंपनी ने एक बयान में कहा चीन में व्यापार करने और कानूनी संबंधी पहलुओं के तेजी से चुनौतीपूर्ण होने के कारण एक नवंबर से याहू की सेवाएं चीन में उपलब्ध नहीं होंगी। कंपनी ने कहा कि वह उपयोगकर्ताओं के अधिकारों और एक स्वतंत्र एवं मुक्त इंटरनेट सेवाओं के लिए प्रतिबद्ध है। अमेरिका और चीन सरकार के बीच प्रौद्योगिकी तथा व्यापार को लेकर जारी गतिरोध के बीच कम्पनी ने यह कदम उठाया है।
गौरतलब है कि ‘गूगल’ ने कई साल पहले चीन में अपनी सेवाएं बंद कर दी थीं जबकि ‘माइक्रोसॉफ्ट’ के पेशेवर नेटवर्किंग मंच ‘लिंक्डइन’ ने पिछले महीने कहा था कि वह अपनी चीन की साइट को बंद कर देगा, इसकी जगह एक ‘जॉब बोर्ड’ स्थापित करेगा। ‘याहू’, एक अमेरिकी एवं वैश्विक इंटरनेट सेवा कम्पनी है। याहू का चीन से जाने का फैसला ऐसे वक्त में आया है जब चीन में निजी सूचना संरक्षण कानून लागू हो गया है। चीन का यह कानून निर्धारित करता है कि देश में काम करने वाली कंपनियों को अधिकारियों के अनुरोध पर निश्चित रूप से डाटा सौंपना होगा, जिससे पश्चिमी कम्पनियों के लिए चीन में काम करना मुश्किल हो गया क्योंकि उन्हें चीन की मांगों को पूरा करने के लिए दबाव का सामना करना पड़ सकता है।
याहू को 2007 में अमेरिका के सांसदों से कड़ी आलोचना झेलनी पड़ी थी जब उसने चीन में विरोध की आवाज बुलंद करने वाले दो चीनी असंतुष्टों का डाटा सौंप दिया था, जो अंततः उनके कारावास का कारण बना।