ग्लॉकोमा (कांच बिंदु या काला मोतिया) आँखों की एक बीमारी है जिसमे आँखों का दबाव बढ़ जाता है और इस वजह से आंखो की नस (ऑप्टिक नर्व) धीरे धीरे कमजोर होने लगती है और मरीज को दिखना कम हो जाता है| सामान्य तौर पर व्यक्ति की आंखो का दबाव 10-20 mmhg होता है और यदि यह लगातार ज्यादा बना रहे तो यह ग्लॉकोमा की ओर संकेत करता है|
भारत में ग्लॉकोमा की स्थिति
WHO के अनुमान के अनुसार इस समय विश्व में ग्लॉकोमा के रोगियों की संख्या लगातार 12 करोड़ है और इसमें से ज्यादातर को इस बीमारी के बारे में पता ही नहीं है| भारत वर्ष में लगातार 1.25 करोड़ व्यक्ति ग्लॉकोमा से पीड़ित है और इससे लगभग 5.5 प्रति हज़ार प्रति वर्ष की दर से वृधि हो रही है|
ग्लॉकोमा के लक्षण
आमतौर पर मरीज को इस बीमारी के कोई लक्षण नहीं होते है व सामान्य नियमित जाँच के दौरान ही इस बीमारी का पता चलता है| कुछ मरीजों में आँखों में दर्द, सर दर्द, आँखों में पानी आना,आँखों के आगे काले धब्बे या रोशनी के चारो ओर इन्द्रधनुषीय घेरे दिखना आदि के लक्षण पाए जाते है|
क्या मुझे यह रोग हो सकता है-: ग्लॉकोमा की बीमारी 40 साल के बाद कभी भी हो सकती है| परन्तु अनुवांशिक कारणों, डायबिटिज, मायोपिक (ज्यादा माइनस नम्बर) या जो मरीज स्टेरॉयड की दवाई का सेवन लगातार कर रहे है उनमे ग्लॉकोमा होने का खतरा ज्यादा होता है|
ग्लॉकोमा की जाँच
ग्लॉकोमा की पहचान रोगी की नियमित जाँच के दौरान होती है जिसमे टोनोमेट्री द्वारा आंखो का दबाव देखा जाता है| 21 mmhg से ज्यादा होने की स्तिथि में विस्तृत जाँच गोनियोस्कोपी, आप्थेलमोस्कोपी, पेरीमीटरी एवं ओ सी टी द्वारा की जाती है|
ग्लॉकोमा का इलाज
विभिन्न जांचो से ग्लॉकोमा के विभिन्न प्रकार (प्राइमरी ओपन एंगल, प्राइमरी नेरो एंगल अथवा सेकेंडरी ग्लॉकोमा) का निर्धारण किया जाता है| उपचार हेतु विभिन्न प्रकार के आई ड्राप, लेज़र अथवा ऑपरेशन के द्वारा इस रोग की रोकथाम की जाती है|
अंत में ग्लॉकोमा के प्रति जागरूकता
ग्लॉकोमा अंधत्व का दूसरा प्रमुख कारण है जिसके शुरुआत में कोंई लक्षण नहीं होते और आँखों की नियमित जांचो के दोरान इसका पता चलता है| यदि ग्लॉकोमा बीमारी द्वारा एक बार नस के ख़राब हो जाए तो उसे दोबारा ठीक नहीं किया जा सकता है, हालाँकि नियमित उपचार द्वारा इस बीमारी से नसों को ओर अधिक ख़राब होने से बचाया जा सकता है|
अतः ग्लॉकोमा के मरीजों को बीमारी को समझना एवं उपचार करवाना अति आवश्यक है साथ ही डाक्टर के बताये अनुसार नियमित जाँच समयानुसार करवाना चाहिए जिसमे ग्लॉकोमा के कारण आंखो की रोशनी ख़राब न हो जाए
ग्लॉकोमा (कांचबिंद) आंखों की ऐसी बीमारी है जिसमें आंखों का प्रेशर बढ़ जाता है । जिससे आंखों की नस धीरे-धीरे कमजोर होने लगती है और मरीज को दिखना कम होने लगता है ।
इस बीमारी के प्रारंभिक अवस्था में कोई लक्षण नहीं होते और मरीज को एडवांस स्टेज पर इसका पता चलता है। ग्लॉकोमा में खराब हुई रोशनी का लौटकर आना संभव नहीं है और पूरा उपचार शेष रोशनी को बचाने के लिए किया जाता है |
पूरे विश्व में लगभग 7 करोड़ से ज्यादा मरीज ग्लॉकोमा से प्रभावित है | भारत में भी इसकी संख्या लगभग 1.2 करोड़ से ज्यादा अनुमानित है और इसमे प्रतिवर्ष वृद्धि हो रही है ।
महत्वपूर्ण तथ्य यह है कि इससे लगभग 90% मरीजों को पता ही नहीं चलता कि उनको ग्लॉकोमा की बीमारी है, इसीलिए प्रतिवर्ष मार्च के महीने में विश्व ग्लॉकोमा सप्ताह मनाया जाता है, जिसका उद्देश्य मरीजों को ग्लॉकोमा के प्रति जागरूक बनाना है ।
भोपाल डिविजन ओप्थेल्मिक सोसायटी द्वारा ग्लॉकोमा जन जागरूकता अभियान का आयोजन
इस वर्ष ग्लॉकोमा सप्ताह 10 से 16 मार्च तक मनाया जा रहा है । इससे तारतम्य में भोपाल डिविजन ओप्थेल्मिक सोसायटी द्वारा ग्लॉकोमा जन जागरूकता अभियान का आयोजन किया जा रहा है जिसमें निम्न गतिविधियों की जाएगी ।
ग्लॉकोमा निशुल्क जांच एवं जागरूकता शिविर : भोपाल के 20 से अधिक आई हॉस्पिटल में 15 से 17 मार्च को प्रातः 10- 12 बजे निशुल्क नेत्र शिविर
ग्लूकोमा रथ: मोबाइल वैन द्वारा भोपाल के विभिन्न क्षेत्रों में ग्लॉकोमा जागरूकता हेतु पंपलेट का वितरण
भोपाल डिविजनल ओप्थेल्मिक सोसाइटी के सदस्यों द्वारा Reel बनाकर विभिन्न सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म पर पोस्ट करना |
सदस्यों द्वारा इलेक्ट्रॉनिक मीडिया/प्रिंट मीडिया/आकाशवाणी/रेडियो में जागरूकता के बारे में आर्टिकल लिखना अथवा, वार्ता करना |
सोसायटी द्वारा नुक्कड़ नाटक का भी होगा आयोजन
डॉ गजेंद्र चावला जो कि भोपाल डिविजनल ऑफ्थेल्मिक सोसाइटी के अध्यक्ष हैं उन्होंने हमें बताया किअध्ययनरत नेत्र विशेषज्ञ (पीजी स्टूडेंट) के लिए स्किल ट्रांसफर कार्यशाला का आयोजन 14 मार्च को गांधी मेडिकल कॉलेज भोपाल में किया जाएगा ।
BDOS सदस्यों द्वारा ग्लॉकोमा बीमारी के नवीनतम उपचार की जानकारी को अपडेट करने हेतु एक दिवसीय सेमिनार (कॉन्फ्रेंस) का आयोजन भी होगा |
समिति के अध्यक्ष डॉ गजेंद्र चावला एवं सचिव डॉ वसुधा दामले ने भोपाल के मरीजों से इस अवसर का अधिकतम संख्या में लाभ लेने की अपील की है ।