Bhagoria Festival: भागोरिया एक ऐसा उत्सव है जो उमंगों के रंग और गुलाल को खुद में समेटे हुए है। ये एक ऐसा उत्सव है जो आदिवासियों के जीवन में उत्साह ले कर आता है, एमपी (MP) के आदिवासी बाहुल्य इलाकों में भगोरिया की धूम तो है। जगह-जगह पर भगोरिया मेला भी लगता है लेकिन, इस उत्सव का कनेक्शन सिर्फ एमपी (MP) से ही नहीं देश के कई इलाकों से भी है।
होली के रंगों की तरह, उत्साह के कई रंग भगोरिया (Bhagoria Festival) में देखने को मिलते हैं, ऐसे में जानते हैं, क्यों मनाया जाता है भगोरिया उत्सव और क्या है इस बार खास, आज के इस आर्टिकल में आप ये भी पढ़ेंगें की भारत में भगोरिया उत्सव कहां- कहां मनाया जाता है।
कब मनाया जाता है भगोरिया फेस्टिवल (Bhagoria Festival)
भगोरिया मेले में आदिवासी लोकसंस्कृति के रंग चरम पर नजर आते हैं। पर्व की तारीखों की घोषणा के साथ ही जगह-जगह पर भगोरिया हाट को लेकर तैयारियां शुरू हो जाती है। इस मेले में आदिवासी संस्कृति और आधुनिकता की झलक देखने को मिलती है।
कहा जाता है कि आदिवासियों के जीवन में ये उल्लास के पर्व के रूप में मनाया जाता है। भगोरिया उत्सव (Bhagoria Festival) के लिए बाहर से आदिवासी अपने घर आते हैं।
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उल्लास का पर्व भगोरिया
होली के सात दिन पहले भगोरिया का त्यौहार मनाया जाता है। इन सात दिनों में आदिवासी समाज के लोग अपनी जिंदगी को अलग ढंग से जीते हैं। मान्यता है कि भले ही देश के किसी भी कोने में आदिवासी समुदाय के लोग रह रहे हो लेकिन भगोरिया पर अपने गांव लौट आते हैं।
भगोरिया मेलों में पूरे दिन कार्यक्रम आयोजित होते रहते हैं। इसलिए भगोरिया (Bhagoria festival) को उल्लास का पर्व भी कहा जाता है।
कहां होता है मेले का आयोजन
पश्चिमी मध्य प्रदेश के आदिवासी अंचल झाबुआ, अलीराजपुर, धार, खरगोन और बड़वानी में भगोरिया (Bhagoria festival) का आगाज हो गया है। इस त्यौहार को होली से एक हफ्ते पहले आयोजित किया जाता है। लेकिन, इस त्यौहार में जहां रंग है उत्साह है तो, इससे जुड़े हुए कई मिथक भी हैं।
क्या हैं मिथक
जहां भगोरिया को लोक भाषा में भोंगरिया भी कहते हैं तो इस उल्लास के पर्व को लेकर कई तरह के मिथक भी हैं, कई तरीके के भ्रामक जानकारियां सोशल मीडिया पर मौजूद है। किताबों में मौजूद हैं। लेकिन, सच इन सब मिथ्या से अलग है।
क्या है भगोरिया मेले का इतिहास
भगोरिया को लेकर दो अवधारणाएं हैं जब आप झाबुआ जिले में आते हैं तो झाबुआ जिले में लोग कहते हैं कि भगोरिया की शुरुआत भगोर गांव से हुई थी। जो कि जिला मुख्यालय झाबुआ से 121 किलोमीटर की दूरी पर है। लेकिन, भगोरिया पर लिखी कुछ किताबों के अनुसार भगोरिया राजा भोज के समय लगने वाले हाटों को कहा जाता था।
इस समय दो भील राजाओं कासूमार और बालून ने अपनी राजधानी भागोर में विशाल हाट का आयोजन करना शुरू किया। धीरे-धीरे आस-पास के भील राजाओं ने भी इन्हीं का अनुसरण करना शुरू किया जिससे हाट और मेलों को भगोरिया कहना शुरू हुआ।
कैसे हुई थी भगोरिया मेले की शुरुआत
एक लोक कथा के अनुसार आज से करीब कई सौ साल पुराने समय में, झाबुआ जिले के भगोर गांव में एक सघन बस्ती थी। जहां प्राकृतिक आपदा आई, अकाल पड़ा जमीन सूख गई पानी की किल्लत हो गई, कोई ना घास थी, ना कोई पेड़ पौधे।
ऐसी स्थिति में लोगों ने देवताओं को पूजना शुरू कर दिया। तब पानी की फुआर होने लगी और फसल की पैदावार हो गई। तब से फसल की पैदावार की खुशी में इस मेले का आयोजन किया जाता है।
युवा ढूंढते है अपना जीवनसाथी
भगोरिया मेला दुनिया का ऐसा मेला है, जहां संगीत की धुन तो होती ही हैं। उस पर थिरकते युवा भी अपने जीवनसाथी की तलाश में निकलते हैं और अपना रिश्ता भी तय करके आते हैं। मेले में आने वाले युवा एक दूसरे को वहीं पसंद कर लेते हैं।
गुलाल लगा कर करते हैं इजहार
इस मेले में युवा गुलाल लगा कर अपने प्यार का इजहार करते हैं। परिजनों की रजामंदी से रिश्ते को पुख्ता करने के लिए एक-दूसरे को पान खिलाया जाता हैं। रंग-बिरंगे परिधानों में सजी युवतियां और उनके आस-पास आदिवासी युवक रहते हैं। जो वहां मौजूद युवतियों को रिझाने के लिए उनके आगे पीछे मंडराते हैं।
क्या है भगोरिया का देश से कनेक्शन
भगोरिया एक तरह का हरवेस्टिंग फेस्टिवल है। यानी ये एक ऐसा फेस्टिवल है जो फसल कटाई के दौरान होता है। भारत में ऐसी कई जनजातीय है जो इस तरह के फेस्टिवल मानती आई हैं।
ये जनजातीय देश के कई इलाकों में रहती है। मध्य प्रदेश के अलावा महाराष्ट्र कर्नाटक और तेलंगाना के इलाके में भी ये फेस्टिवल मनाया जाता है।
बदली परंपरा
भगोरिया एक तरह का कल्चरल फेस्टिवल है जहां आदिवासियों के अनूठे लिबास और उत्साह का रंग देखने को मिलते हैं। आदिवासी भगोरिया फेस्टिवल के लिए उत्साहित रहते हैं। लेकिन, जैसे-जैसे समय बदल रहा है भगोरिया उत्सव परंपराओं से अलग मौज-मस्ती का पर्व बनता जा रहा है।
भगोरिया फेस्टिवल आदिवासियों के जीवन में उत्साह और उल्लास के रंग तो भरत ही है, लोगों को रोजगार के अवसर भी देता है। मध्य प्रदेश की सांस्कृतिक विरासत भगोरिया दुनिया भर में मशहूर है।