भोपाल। रबीन्द्रनाथ टैगोर विश्वविद्यालय में 18 से 24 अक्टूबर तक आयोजित टैगोर नेशनल आर्टिस्ट कैम्प का समापन कथा सभागार में प्रख्यात भीली लोक चित्रकार पद्मश्री भूरीबाई की उपस्थिति में हुआ। इस अवसर पर रबीन्द्रनाथ टैगोर विश्वविद्यालय के कुलाधिपति संतोष चौबे, विख्यात कला चिंतक अशोक भौमिक मौजूद थे। प्रारंभ में कल शिविर में भाग ले रही देश की प्रसिद्ध 15 चित्रकारों के चित्रों की प्रदर्शनी का अतिथियों द्वारा शुभारंभ एवं अवलोकन किया। इस मौके पर अतिथियों ने समकालीन चित्रकला में नारी परिप्रेक्ष्य पुस्तक का लोकार्पण किया।
बोलियां हमारी भाषा को रस और जीवन प्रदान करती हैं
पद्मश्री भूरीबाई ने शिविर के लिये विश्वविद्यालय और चित्रकारों को बधाई दी। उन्होंने महिला चित्रकारों के चित्रों को देख कर कहा कि उनके चित्रों में नई चीजें रेखांकित हुई हैं। उन्होंने कहा कि सभी चित्रकार भविष्य में और अधिक ऊंचाइयों को हासिल करेंगे। विश्वविद्यालय के कुलाधिपति संतोष चौबे ने सभी को इस सफल कैम्प की बधाई दी और कहा कि इस शिविर में चित्रकारों ने लोक, नागर, विकास और विकास की समस्याओं, दार्शनिक पहलुओं को कैनवास पर उतारा है। उन्होंने इस अवसर पर देश के प्रख्यात चित्रकार स्व. प्रभु जोशी को भी याद किया। उन्होंने विश्वरंग की मूल अवधारणा को बताते हुए कहा कि हिन्दी और भारतीय भाषाओं के सामने आज वैश्विक होने की पूरी संभावना है। बोलियां हमारी भाषा को रस और जीवन प्रदान करती हैं।
बोलियों और भाषा के अंतरसंबंध को और मजबूत करने की आवश्यकता है। वैचारिक सीमा, साहित्य की सीमा और कलाओं की सीमा को खुला होने की जरुरत है। टेक्नोलाजी ने ये संभव किया कि आज विश्वरंग के साथ 26 देष जुड़े हुए हैं। कार्यक्रम में उपस्थित अशोक भौमिक ने कहा कि चित्रकला को आम जनता से जोड़ने की आवश्यकता है। चित्रकला में जीवन के सभी पहलुओं को शामिल होना चाहिए।
अतिथियों को प्रमाणपत्र और स्मृति चिन्ह भेंट
चित्रकार राखी कुमार ने कहा कि मैंने लगभग 20 से 25 कैम्प में भागीदार की पर विश्वविद्यालय में आयोजित इस अनूठे कैम्प से मुझे पारिवारिक और भावनात्मक लगाव हो गया है। संतोष चौबे ने विश्वरंग के स्वप्न को देखा और इसे साकार करने में वे लगातार जुटे हुए हैं। उन्होंने कहा कि विश्वविद्यालय में युवाओं से लेकर कलाकारों को जो मार्गदर्शन मिलता है वो सही मायनों में राष्ट्र निर्माण में अपनी भागीदारी दे पाता है। वहीं बांसवाड़ा राजस्थान से आई तसलीम जमाल ने कहा कि इस कला शिविर से मुझे काफी कुछ नया सीखने को मिला। मैंने आदिवासियों के जीवन को देखा, आदिवासियों और पशुओं को देखा और वे अपने आप कैनवास पर उतर जाता है। उन्होंने कहा कि कला मेरी पूजा है इबादत है नमाज है। चित्रकला मेरी सांसे हैं। मैं इसे बनाती नहीं जीती हूं। चित्रकला के प्रतिभागियों को अतिथियों द्वारा प्रमाणपत्र और स्मृति चिन्ह भेंट किया गया।