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Metro Rail Vs Pollution: कोच्चि और आसपास के 10 छोटे द्वीपों और तटीय स्थानों को जोड़ने के लिए आज मंगलवार को प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने ‘भारत की पहली वाटर मेट्रो’ सेवा की शुरुआत की। देश में कई शहरों में पहले से जमीनी मेट्रो ट्रेन की सेवाएं सुचारू रूप से काम कर रही हैं।
दुनिया के हरेक देश ने मेट्रो ट्रेन सेवा की शुरुआत दो प्रमुख उद्देश्य से की है। पहला, पैसेंजर नियत स्थान पर नियत समय से पहुंचे और दूसरा, पर्यावरण प्रदूषण-मुक्त रहे। पहले उद्देश्य में लगभग शत-प्रतिशत सफलता मिली है। लेकिन आइए जानते हैं, क्या मेट्रो रेल के विकास से भारत में प्रदूषण कम हो पाया है (Metro Rail Vs Pollution) और क्या यह हो भी पाएगा?
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टेक्नोलॉजी एक दोधारी तलवार है
आज पर्यावरण पूरी दुनिया के लिए चिंता का विषय है। बढ़ते प्रदूषण के कारण न केवल आबो-हवा दूषित हुई, बल्कि मौसम के मिजाज में भारी बदलाव आया है। बेतहाशा बढती गर्मी, बेमौसम बारिश, ओला, आंधी, दावानल (जंगल की आग) और भीषण बाढ़ से आज केवल भारत ही नहीं बल्कि अमेरिका जैसे विकसित देश भी जूझ रहे हैं।
बढ़ते वैश्विक प्रदूषण के लिए टेक्नोलॉजी एक दोधारी तलवार की तरह है। क्योंकि माना जाता है, टेक्नोलॉजी के विकास ने औद्योगिक क्रांति को जन्म दिया था। जहां से मशीन की दुनिया ने हमारी प्राकृतिक दुनिया को धीमे-धीमे बदलना शुरू किया।
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सडकों पर इंसान कम गाड़ियां अधिक
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पहले कोयला और बाद में पेट्रोलियम चालित फैक्ट्रियों, मशीनों और वाहनों से निकले उत्सर्जित पदार्थों ने पर्यावरण के संतुलन को बिगाड़ने में कोई कसर बाकी नहीं रखी। लेकिन, अब टेक्नोलॉजी के विकास को ही इसका समाधान भी बताया जा रहा है।
मेट्रो रेल का विकास इसी समाधान की दिशा में हमारा आधुनिक और लेटेस्ट प्रयास है। बढ़ती आबादी और लोगों की बढ़ी हुई आय ने वाहनों की संख्या को इतना अधिक बढ़ा दिया है कि अब शहरों की सडकों और हाईवे पर इंसान कम गाड़ियां अधिक नजर आती है। जैविक ईंधन की बेतहाशा खपत ने प्रदूषण में भी बेतहाशा इजाफा किया है। यही कारण है कि वाहनों की संख्या में कमी लाने और प्रदूषण के बढ़ते स्तर को घटाने के लिए मेट्रो रेल की संकल्पना को पूरी दुनिया में साकार किया गया है।
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मेट्रो रेल विकास और प्रदूषण स्तर
लेकिन सवाल अब भी वही है कि क्या मेट्रो रेल के विकास से प्रदूषण के स्तर में कमी (Metro Rail Vs Pollution) आ पाएगी? इस सवाल के जवाब में कई सकारात्मक और नकारात्मक तर्क दिए जा सकते हैं। लेकिन इसमें कोई शक नहीं है कि ये अत्याधुनिक प्रद्यौगिकी बढ़ती जनसंख्या के आवागमन के लिए एक प्रदूषण-मुक्त परिवहन है।
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गाड़ियों और मेट्रो का शहर दिल्ली
आंकड़े बताते हैं कि साल 2005 में भारत में 1.44 मिलियन वाहनों की बिक्री हुई थी, जो 2021 में बढ़ कर 3.76 हो गई। भारत सरकार की एक रिपोर्ट के मुताबिक़, दिल्ली की सडकों पर 2019-20 में लगभग 11.4 मिलियन रजिस्टर्ड वाहन थे। जबकि 2009 में इस शहर में लगभग 63.02 लाख रजिस्टर्ड वाहन ही हुआ करते थे। यह आंकड़ा उजागर करता है कि मेट्रो रेल के शुरू होने के बाद भी दिल्ली में वाहनों की बिक्री में गिरावट नहीं आई है, बल्कि और अधिक इजाफा ही हुआ है। यह इस शहर के बढ़ते प्रदूषण का सबसे बड़ा कारण है।
जबकि इसी अवधि में मेट्रो रेल से सफ़र करने वाले यात्रियों की संख्या में भी लगभग छः गुना बढ़ोतरी हुई है। साल 2009 में दिल्ली मेट्रो से सफ़र करने वाले यात्रियों की कुल संख्या लगभग 33.54 मिलियन थीं, जो 2019 में बढ़ कर 1.79 बिलियन हो गई।
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2009 से 2019 के बीच दिल्ली में प्रदूषण-स्तर
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जहां तक दिल्ली के प्रदूषण स्तर की है, वो दुनिया के अन्य शहरों के मुकाबले बहुत ज्यादा है। मेट्रो रेल के विकास के पीछे यही तर्क था कि इससे प्रदूषण के लेवल में कमी आएगी। दिल्लीवासी स्वच्छ आबोहवा में चैन की सांस लेंगे।
आंकड़े कुछ बताते हैं। मेट्रो रेल ने लोगों के आवागमन को आसान जरुर बनाया है। लेकिन दिल्ली में सांस लेना पहले से दूभर हो गया है। साल 2009 में वायु प्रदूषण की एक ईकाई PM10 (पार्टिकुलेट मैटर 10PM, जो इंसान सांस के जरिए खींचता है) का स्तर 259 था। यह 2019 में बढ़ कर 337 तक पहुंच गया था।
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मेट्रो ने जीवन आसान किया सांस लेना नहीं
ये आंकडें सरकारी और विश्वसनीय एजेंसियों के हैं। ये उजागर करते हैं कि मेट्रो रेल से लोगों का जीवन आसान हुआ है। लेकिन, जीना और सांस लेना मुश्किल हो गया है। आबोहवा की स्वच्छता में मेट्रो के विकास से कोई फर्क पड़ा हो, ऐसा नहीं दीखता है।
आपको बता दें, हाल के वर्षों में दिल्ली की आबोहवा तनिक सुधार आया है, तो उसकी वजह मेट्रो नहीं है। बल्कि, दिल्ली सरकार की परिवहन नीति है, जिसके तहत 15 वर्ष से अधिक पुरानी गाडियों का परिचालन बंद करवा दिया गया है। प्रदूषण नीति के पालन के लिए लोगों को बाध्य किया गया है। हरित पेट्रोल ईंधन के उपयोग को बढ़ावा दिया गया है।
Metro Rail Vs Pollution
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