Ghulam Nabi Azad : गुलाम नबी आजाद के कांग्रेस से इस्तीफा देने के बाद घाटी में नए सियासी समीकरण बन रहे हैं। वे अगले महीने सितंबर में जम्मू कश्मीर जा सकते हैं। जहां संभावना है कि आजाद नई पार्टी के गठन की घोषणा कर कर दें। ऐसा होता है तो इसका सबसे अधिक प्रभाव कश्मीर आधारित पार्टियों पर दिखाई देगा। मुस्लिम वोट बैंक पर सियासत करने वाली बीजेपी, पीडीपी, अपनी पार्टी को अपना वोट बैंक खिसकता नजर आ रहा है। तो वहीं इस पूरे सियासी समीकरण में जम्मू कश्मीर में बीजेपी को फायदा मिलने की उम्मीद है। यह कह सकते हैं कि आजाद बीजेपी के लिए जम्मू कश्मीर के ओवैसी हो सकते है। क्योंकि ओवैसी की पार्टी मुस्लिम वोटों का धुव्रीकरण करती है। जिसका लाभ चुनावों में बीजेपी उठाती रही है। आजाद के पार्टी छोड़ने से कांग्रेस को नुकसान तो है। वे नई पार्टी बनाते हैं तो इससे उसे सबसे बड़ा झटका लगेगा। आजाद समर्थकों ने कांग्रेस से दूरी बनाना शुरु कर दी है। आजाद समर्थकों ने नई रणनीति बनाना भी शुरु कर दिया है। गुलाम नबी आजाद के जम्मू मश्मीर पहुंचने पर जगह जगह सभाएं व बैठकें आयोजित कर पार्टी के स्वरूप पर रायशुमारी की जाएगी। बता दें आजाद समर्थक पूर्व मंत्री और डोडा की इंद्रवाल सीट से विधायक रहे जीएम सरूरी समेत छह पूर्व विधायक दिल्ली में कैंप कर रहे हैं। राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि आजाद यदि नई पार्टी बनाते हैं तो मुस्लिम मतों का धुव्रीकरण होगा। इसका असर न केवल प्रदेश के विधानसभा चुनाव पर पड़ेगा साथ ही लोकसभा चुनाव में भी दिखेगाई देगा।
बीजेपी को मिलेगा लाभ
मुस्लिम वोट बैंक में सेंधमारी हुई तो इसका सीधा फायदा बीजेपी को मिलेगा। क्योंकि जितना मुस्लिम वोट बंटेगा उतनी ही बीजेपी की स्थिति मजबूत होगी। राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि आजाद की नई पार्टी को सीटें भले ही कम मिलेंए लेकिन वोट मिलेगा। जम्मू संभाग की 30 से 31 सीटों पर बीजेपी का प्रभाव हो सकता है। इसके बाद उसे मुस्लिम वोटों के बंटने का फायदा मिल सकता है। हिंदू बाहुल्य मतदाता वाली सीटों पर जीत का अंतर बड़ा हो सकता है। उनका मानना है कि डोडा , रामबन , किश्तवाड़ , पुंछ , राजोरी और घाटी की कुछ सीटों पर आजाद का असर दिख सकता है।
कांग्रेस ने किया डैमेज कंट्रोल शुरु
आजाद के कांग्रेस छोड़ते ही पार्टी नेता डैमेज कंट्रोल में जुट गए हैं। पार्टी से आजाद के इस्तीफे के तत्काल बाद जम्मू स्थित पार्टी मुख्यालय में हुई। जिसमें ताजा हालात पर चर्चा की गई। सूत्रों की माने तो आजाद समर्थकों की गतिविधियों पर पैनी नजर रखने और उनके बीच जाकर माहौल को सहज बनाने पर रणनीति पर मथन किया गया इस दौरान कहा गया कि उन सभी लोगों से ज्यादा से ज्यादा संपर्क बनाया जाए जो आजाद के समर्थकों में शामिल हें। खासकर चिनाब वैली , राजोरी, पुंछ और कश्मीर में आजाद समर्थकों से संपर्क कर पार्टी से जुडे़ रहने की बात कही जाए।
ओवैसी ने दी की आजाद को कभी कांग्रेस छोड़ने की सलाह
कांग्रेस पार्टी में नेतृत्व के मुद्दे पर चल रहे आंतरिक घमासान के बीच ऑल इंडिया मजलिस ए इत्तेहादुल मुस्लिमीन यानी एआईएमआईएम के अध्यक्ष असदुद्दीन ओवैसी ने 30 अगस्त 2020 को हैदराबाद में एक रैली में गुलाम नबी आजाद को कांग्रेस छोड़ने के लिए कहा था। ओवैसी ने आजाद के लिए कहा था यदि आपमें आत्मसम्मान है तो आप तत्काल पार्टी छोड़ दें। ओवैसी ने जलसा शहादत ए इमाम हुसैन के मौके पर आयोजित ऑनलाइन रैली को संबोधित करते हुए कहा आजाद ने एआईएमआईएम को भारतीय जनता पार्टी की बी टीम कहा था। आज उनकी पार्टी के लोग खुद उन्हें ही भाजपा की कठपुतली बता रहे हैं। उन्होंने आरोप लगाया कि कांग्रेस वर्किंग कमेटी की बैठक के दौरान कांग्रेस की एक वरिष्ठ महिला नेता ने आजाद से पूछा कि जब जम्मू कश्मीर के सभी पूर्व मुख्यमंत्रियों को मोदी सरकार ने नजरबंद कर दिया था, आपको क्यों नहीं टच किया गया। कथित रूप से कहा गया कि यह कांग्रेस पार्टी है। जिसने आजाद को बड़ा नेता बनाया। ओवैसी ने आजाद को कांग्रेस से किनारा कर लेने की सलाह दी थी।
बेटे के साथ खड़ी करेंगे नई पार्टी
जम्मू कश्मीर के सियासी हालात पर नजर रखने वाले राजनीतिक विश्लेषकों की माने तो गुलाम नबी आजाद अपने बेटे सद्दाम के साथ नई पार्टी खड़ी कर सकते हैं और वे आने वाले चुनावों में जम्मू कश्मीर में सभी विधानसभा सीटों पर अपने प्रत्याशी उतार सकते हैं। आजाद के बीजेपी में शमिल न होने के बयान के बाद जम्मू कश्मीर के राजनीतिक गलियारों में भी इसी बात की हलचल तेज हो गई है। राजनीतिक विश्लेषक की माने तो जिस तरीके से गुलाम नबी आजाद का बीते कुछ समय से जम्मू कश्मीर के स्थानीय नेताओं से न सिर्फ संपर्क कर रहे थे बीमारी के दौरान जम्मू कश्मीर की स्थानीय आवाम का दिल्ली आवास पर मिलना जुलना बढ़ गया था। उससे इस बात के कयास लगाए जाने लगे थे कि आने वाले चुनावों में गुलाम नबी आजाद की भूमिका जम्मू कश्मीर में बड़ी होंगी। हालांकि यह तय नहीं था यह भूमिका कांग्रेस पार्टी की ओर से होगी या उनकी खुद की अपनी व्यक्तिगत राजनीतिक पारी की ओर से इस को शुरू किया जाएगा। माना जाता है कि जम्मू कश्मीर में गुलाम नबी आजाद स्वतंत्र रूप से पार्टी बनाकर चुनावी क्षेत्र में उतरे तो उन्हें लंबे राजनैतिक अनुभव का फायदा मिल सकता है।
भाजपा के करीबी आजाद?
कांग्रेस छोडने के बाद गुलाम नबी आजाद ने कहा था कि वे जम्मू कश्मीर की ओर रुख कर रहे हैं। इसके बाद सियासी गलियारों में चर्चा गर्म हो गई थी कि क्या गुलाम नबी आजाद की नई राजनीतिक पारी से जम्मू कश्मीर में बीजेपी को कितना फायदा हो सकता है। राजनीतिक विश्लेषक कहते हैं कि जिस तरीके से बीजपी ने गुलाम नबी आजाद पर पहले से ही डोरे डाल रही थी। केन्द्र की मोदी सरकार ने उन्हें पद्मभूषण जैसा बड़ा सम्मान दिया। तभी से बीजेपी और गुलाम नबी आजाद के बीच में दूरी कम होने लगी थी। अब इन चर्चाओं को बल मिलने लगा है कि गुलाम नबी आजाद बीजेपी के साथ मिलकर कुछ बड़ा कर सकते हैं। इस बात के भी कयास लगाए जा रहे हैं कि पंजाब के पूर्व मुख्यमंत्री कैप्टन अमरिंदर सिंह ने पंजाब में पार्टी से अलग होकर जिस तरह से अपनी एक नई राजनीतिक पार्टी बनाई। उसी तरीके से गुलाम नबी आजाद भी जम्मू कश्मीर में नई पार्टी बना सकते हैं।