नई दिल्ली। आपने अक्सर फिल्मों में या आम जीवन में भी सुना होगा कि कोर्ट में गीता पर हाथ रखकर कसम खाई जाती थी। लेकिन क्या आप जानते हैं कि ऐसा क्यों किया जाता था? कम ही ऐसे लोग हैं जो इस चीज को जानते हैं। तो चलिए आज हम इस मजेदार सवाल का जवाब तलाशने की कोशिश करते हैं।
मुगलों ने शुरू की यह प्रथा
एक स्टडी के अनुसार भारत में मुगल शासकों ने धार्मिक किताबों पर हाथ रखकर थपथ लेने की प्रथा शुरू की थी। तब यह प्रक्रिया एक दरबारी प्रथा थी इसके लिए कोई कानून नहीं था। लेकिन अंग्रोजों ने इस प्रथा को कानून बना दिया और इंडियन ओथ्स एक्ट, 1873 को पास किया और सभी अदालतों में लागू कर दिया। इस एक्ट के तहत हिंदू संप्रदाय के लोग गीता पर और मुस्लिम संप्रदाय के लोग कुरान पर हाथ रखकर कसम खाते थे। जबकि ईसाइयों के लिए बाइबिल सुनिश्चित की गई थी।
इस प्रथा को समाप्त कर दिया गया
आजादी के बाद भी कसम खाने की यह प्रथा जारी रही । लेकिन 1969 में किताब पर हाथ रखकर कसम खाने की यह प्रथा समाप्त हो गई। जब लॉ कमीशन ने अपनी 28वीं रिपोर्ट सौंपी तो देश में भारतीय ओथ अधिनियम, 1873 में सुधार का सुझाव दिया गया और इसके जहह पर ओथ्स एक्ट 1969 को पास किया गया। इस एक्ट के हत पूरे देश में एक समान शपथ कानून को लागू किया गया।
प्रथा के स्वरूप में बदलाव किया गया
इस कानून के पास होने से भारत की अदालतों में शपथ लेने की प्रथा के स्वरुप में बदलाव किया गया है और अब शपथ एक सिर्फ एक सर्वशक्तिमान भगवान के नाम पर दिलाई जाती है। अर्थात अब शपथ को सेक्युलर बना दिया गया है। हिन्दू, मुस्लिम, सिख, पारसी और इसाई के लिए अब अलग-अलग किताबों और शपथों को बंद कर दिया गया है। अब सभी के लिए इस प्रकार की शपथ है:- “मैं ईश्वर के नाम पर कसम खाता हूं / ईमानदारी से पुष्टि करता हूं कि जो मैं कहूंगा वह सत्य, संपूर्ण सत्य और सत्य के अलावा कुछ भी नहीं कहूँगा।”
बच्चे भगवान का रूप होते हैं
बतादें कि नए ओथ एक्ट,1969′ में यह भी प्रावधान है कि यदि गवाह, 12 साल से कम उम्र का है तो उसे किसी प्रकार की शपथ नहीं लेनी होगी क्योंकि ऐसा माना जाता है कि बच्चे स्वयं भगवान के रूप होते हैं।
शपथ लेते दौरान झूठ बोलने पर सजा का प्रावधान
वर्तमान में कोर्ट में दो प्रकार की शपथ ली जाती है। पहला जज के सामने मौखिक रूप से और दूसरा शपथ पत्र पेश करके लिया जाता है। ऐसे में अगर कोई व्यक्ति शपथ लेने के दौरान झूठ बोलता है तो इंडियन पैनल कोड के सेक्शन 193 के तहत यह कानून अपराध है और झूठ बोलने वाले को 7 साल की सजा दी जाती है। इतना ही नहीं इस सेक्शन में यह प्रावधान है कि जो कोई भी गवाह किसी न्यायिक कार्यवाही के किसी मामले में झूठा प्रमाण या साक्ष्य देगा य किसी न्यायिक कार्यवाही के किसी प्रक्रम में उपयोग किये जाने हेतू झूठा साक्ष्य बनाएगा तो उसे 7 वर्ष के कारावास और जुर्माने से भी दण्डित किया जायेगा। यह अपराध तभी दर्ज किया जा सकता है जब गवाह ने सत्य वचन की शपथ ली हो। यदि वह शपथ नहीं देगा तो शपथ भंग का अपराधी भी नहीं कहलाएगा।
आखिर गीता को ही शपथ के लिए क्यों चुना गया?
दरअसल, गीता को हिंदु धर्म में एक ऐसा ग्रंथ माना गया है जिसमें जीवन के लिए मार्गदर्शन उपलब्ध कराया गया है। जबकि रामायण लोगों को आदर्श जीवन के लिए प्ररित करती है। हिंदू धर्म में गीता, इस्लाम में कुरान और क्रिश्चियन में बाइबल को समान रूप से मानव जीवन को मार्गदर्शन करने वाले धर्म ग्रंथ के रूप में माना गया है।