नई दिल्ली। रविवार का दिन किसे पसंद नहीं है। सब लोग इस दिन का बेसब्री से इंतजार करते हैं। खासकर सरकारी कर्मचारी और स्कूली बच्चे तो इस दिन का इंतजार करते ही हैं। रविवार का दिन भारत के लोगों के लिए बहुत अहम माना जाता है। लेकिन ज्यादातर लोग ये नहीं जानते होंगे कि रविवार को ही छुट्टी का दिन क्यों तय हुआ और ये कब हुआ? अगर आप भी नहीं जानते, तो चलिए आज हम आपको इसके इतिहास से रूबरू कराते हैं।
लगभग सभी देशों में रविवार को छुट्टी मनाई जाती है
बतादें कि कुछ देशों को छोड़कर रविवार की छुट्टी लगभग सभी देशों में मनाई जाती है। इस दिन के लिए कई लोगों ने बड़ा संघर्ष किया है। आज जब हम रविवार के दिन छुट्टी मनाते हैं तो उसका पूरा श्रेय ‘नारायण मेघाजी लोखंडे’ (Narayan Meghaji Lokhande) को जाता है। उन्होंने ही सबसे पहले छुट्टी को लेकर लड़ाई लड़ी थी।
मजदूरों के नेता थे नारायण मेघाजी लोखंडे
यह बात है उस दौर की जब भारत पर अंग्रेजो का शासन हुआ करता था। उस समय मजदूरों को सप्ताह के सातों दिन काम करना पड़ता था। इस वजह से कोई भी मजदूर अपने परिवार के साथ ज्यादा समय नहीं बिता पाता था। न ही मजदूर अपने शरीर को आराम दे पाते थे। ब्रिटिश शासन के समय मजदूरों के नेता रहे नारायण मेघाजी लोखंडे ने ब्रिटिश सरकार के सामने यह समस्या रखी और सप्ताह के एक दिन छुट्टी रखने का निवेदन किया।
7 साल बाद रंग लाया संघर्ष
हालांकि तब ब्रिटिश हुकूमत ने नारायण मेघाजी लोखंडे के इस निवेदन को ठुकरा दिया। उनका यह फैसला नारायण मेघाजी लोखंडे को पसंद नहीं आया और उन्होंने मजदूरों के साथ मिलकर इसका खूब विरोध किया। नारायण मेघाजी लोखंडे और मजदूरों का संघर्ष आखिरकार 7 साल बाद रंग लाया और ब्रिटिश सरकार ने 10 जून 1890 को आदेश जारी किया। इस आदेश के जारी होने के बाद सप्ताह के किसी एक दिन यानी रविवार को छुट्टी होने का निर्णय लिया गया।
धीरे-धीरे नीयमों में बदलाव
इसके साथ ही हर दिन दोपहर को आधे घंटे की छुट्टी का आदेश जारी हुआ। धीरे-धीरे इस दिन छुट्टी के नीयमों में बदलाव आए और फिर पूरे दिन के लिए ही छुट्टी रखने की व्यवस्था लागू की गई। इसलिए रविवार सरकारी छुट्टी के दिनों में गिना जाता है।