हिंदू धर्म में सोलह संस्कारों का वर्णन किया गया। जिनमें से आखिरी संस्कार को अंमित संस्कार करते है। इस आखिरी संस्कार को इंसान की मृत्यू के बाद किया जाता है। इस संस्कार को संपन्न कराने के लिए कुछ नियम भी बनाए गए है। जैसे कि सूर्यास्त के बाद अंतिम संस्कार नहीं करना। दाह संस्कार के समय छेद युक्त मटकी फोड़ना, शव की परिक्रमा करना, जैसे कई नियम बनाए गए है। लेकिन क्या आपको पता है कि दाह संस्कार के दौरान मटकी को क्यों फोड़ा जाता है?
यह है मटकी फोड़ने का वैज्ञानिक कारण
दाह संस्कार के दौरान मटकी फोड़ने का रिवाज आज भी है। धार्मिक जानकारों का मानना है कि अंतिम संस्कार के दौरान एक छेद युक्त मटके को कंधे पर रखकर परिक्रमा करने के बाद फोड़ने को आत्मा का शरीर के प्रति मोहभंग करना होता है। लेकिन इसका एक वैज्ञानिक कारण भी है। दरअसल, कई सालों पहले जब श्मशान घाट नहीं हुआ करते थे तो उस दौरान लोग दाह संस्कार खेतों में करते थें। खेतों में दाह संस्कार के दौरान मुखग्निी देने वाला अपने कंधे पर एक मिट्टी का घड़ा रखता था जिसमें पानी भरा होता था और उसमें एक छोटा सा छेद होता था। मुखाग्निी देने वाला शव के चारों ओर परिक्रमा करता था। वो इसलिए किया जाता था ताकि शव के चारों ओर पानी के गिरने से गिला हो जाए। यह इसलिए किया जाता था क्योंकि जब शव को जलाया जाए तो खेतों में आग ना फैले। इसलिए दाह संस्कार से पहले मटकी फोड़ी जाती थी।
दाह संस्कार क्यों डालते है छोटी-छोटी लकड़ियां
आपने देखा होगा कि जब शव को जलाया जाता है तो आखिरी में मौजूद लोग छोटी-छोटी लकड़ी जलती चिता में डालते है। लेकिन ऐसा क्यों करते है इसके पीछे भी एक बड़ा कारण है। यह इसलिए किया जाता है क्योंकि जब सालों पहले गांवों में किसी की मृत्यू होती थी तो गांव के लोग अपने-अपने घर से पांच-पांच लकड़ी लेकर जाते थे। क्योंकि उस समय श्मशान घाट नहीं हुआ करते थें इसलिए लकड़ी का इंतजाम नहीं होता था। और जिस इंसान की मृत्यू होती थी उसे परिवार पर लकड़ी का वर्णन न पड़े। इसलिए लोग अपने अपने घर से लकड़ी लेकर जाते थें। यह एक तरह से अंतिम संस्कार में लकड़ी का दान माना जाता था। लेकिन आजकल श्मशान घाटों में लकड़ी उपलब्ध हो जाती है। इसलिए जब शव को जलाया जाता है तो लोग छोटी-छोटी लकड़ियां डालकर इस प्रथा को निभाने लगे है।
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