Patiala House Court: दिल्ली की एक कोर्ट को ‘पटियाला हाउस कोर्ट’ क्यों कहा जाता है? वैसे तो कोर्ट का नाम उस राज्य या शहर के नाम या स्थान पर होता है लेकिन दिल्ली की कोर्ट का पटियाला नाम कई लोगों के लिए समझ से परे है, क्योंकि पटियाला पंजाब में स्थित है.
बता दें कि ‘पटियाला हाउस कोर्ट’ को एक अंग्रेज आर्किटेक्ट ने तैयार किया था. लेकिन कोर्ट बनने से पहले यह कभी हिमाचल प्रदेश के महाराजा का महल हुआ करता था.
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महल पटियाला के महाराजा द्वारा उन्हें पट्टे पर दिया गया था और इसलिए यह पटियाला हाउस के नाम से जाना जाने लगा. साल 1947 में देश की आजादी के बाद, रियासतों का भारतीय संघ में विलय हो गया था.
भारत को दुनिया के नक्शे पर एक लोकतांत्रिक प्रणाली यानी Democratic Country के रूप में रखा गया था. प्रिवी पर्स अर्थात वार्षिकी उन राजघरानों को दी जाती थी जिन्होंने अपने राज्य को त्याग कर देश की नई लोकतांत्रिक शासन प्रणाली को स्वीकार कर लिया था.
इस दौरान शासक के निजी खर्च के लिए सरकारी खजाने से दी जाने वाली विशिष्ट राशि को वार्षिकी कहा जाता है.
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मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक, साल 1970 में तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने पटियाला हाउस को बंद कर दिया था. जिसके बाद शाही परिवार ने पटियाला हाउस को सरकार को बेच दिया था.
फिर यहां दिल्ली ‘पटियाला हाउस कोर्ट’ की शुरुआत हुई. सबसे पहले साल 1978 में जिला कोर्ट की शुरुआत की गई. इसे लेकर पटियाला कोर्ट द्वारा समय-समय पर कई कानूनी पैंतरे भी दिए गए.
फिर भी साफ तौर पर यह कह सकते हैं कि पटियाला हाउस कोर्ट एक विरासत है इसलिए इसे संरक्षित बनाए रखा जाना चाहिए, जो फिलहाल होता नहीं दिख रहा है.
पटियाला हाउस कोर्ट में शेड, कैंटीन और कार्यालय भी बनाए गए हैं. ऐसे में कोर्ट परिसर को दूसरी जगह स्थानांतरित करने की मांग भी उठ रही है लेकिन वकीलों द्वारा इसका विरोध किया जा रहा है.
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