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Ramayan: रामायण को हम आज तक क्यों नहीं भूलें, पढ़िए ये रोचक आध्यात्मिक कथाएं

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Preeti Dwivedi
Ramayan: रामायण को हम आज तक क्यों नहीं भूलें, पढ़िए ये रोचक आध्यात्मिक कथाएं

Ramayan:  जीवन में कई ऐसे पढ़ाव आते हैं जब हम परेशानियों और कठिनाइयों का सामना करते हैं। ऐसे में हमारे हिन्दू धर्म में कई ग्रंथ और कथाएं ऐसी हैं जो आज भी हमारे जीवन की प्रेरणा बनी हैं।

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आज हम बात करेंगे रामायण (Ramayan Prasang) के एक ऐसे ही प्रसंग की। जो हमारे जीवन को सीख देती हैं क्योंकि ‘रामायण’ हमारे समक्ष प्रेम, त्याग, समर्पण का एक ऐसा आदर्श प्रस्तुत करते है। जिसको सुनने के बाद उसका एक-एक पात्र हमें जीवन में अनेकों सीख दे जाता है।

ज्योतिषाचार्य पंडित मुकेश त्रिवेदी से आइए आज एक ऐसा ही वृतान्त जानते और समझते हैं।

जब मूर्छित हुए थे लक्ष्मण

मेघनाद से युद्ध करते हुए जब लक्ष्मण जी को शक्ति लग जाती है और श्री हनुमानजी उनके लिये संजीवनी का पहाड़ (Sanjeevni) लेकर लौट रहे होते हैं,

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तो बीच में अयोध्या में भरत उन्हें राक्षस समझकर बाण मारते हैं और हनुमान जी गिर जाते हैं। तब हनुमान जी सारा वृत्तांत सुनाते हैं, कि माता-सीता को रावण हर ले गया है और लक्ष्मण वहाँ शक्ति लगने से मूर्छित पड़े हैं।

यह बात जब कौशल्या माता को ज्ञात होती है, तो वो कहती हैं कि श्रीराम को कहना कि लक्ष्मण के बिना अयोध्या में पैर भी मत रखें, राम वन में ही रहें।
माता सुमित्रा कहती हैं, कि राम से कहना, कि कोई बात नहीं अभी शत्रुघ्न हैं, मैं उसे भेज दूंगी। मेरे दोनों पुत्र राम सेवा के लिये ही तो जन्मे हैं।

माताओं का प्रेम देखकर श्री हनुमान जी की आँखों से अश्रुधारा बह निकली। परन्तु जब उन्होंने उर्मिला जी को देखा तो वे सोचने लगे, कि यह क्यों एकदम शांत और प्रसन्न खड़ी हैं? क्या इन्हें अपनी पति के प्राणों की कोई चिंता नहीं?

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हनुमान जी ने उनके समक्ष हाथ जोड़े और पूछा-हे देवी,क्या मै आपकी इस प्रसन्नता का कारण जान सकता हूँ?

आपके पति के प्राण संकट में हैं। सूर्य उदित होते ही ‘सूर्य कुल’ का दीपक बुझ जाएगा। यह सुनकर उर्मिला जी ने जो उत्तर दिया उसे सुनकर तीनों लोकों का कोई भी प्राणी उनकी वंदना किये बिना नहीं रह सकता।

उर्मिला जी बोलीं- “मेरा दीपक संकट में नहीं है, वो बुझ ही नहीं सकता। रही सूर्योदय की बात तो आप चाहें तो कुछ दिन अयोध्या में विश्राम कर लीजिये, क्योंकि आपके वहां पहुंचे बिना सूर्य उदित हो ही नहीं सकता।

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आपने कहा कि प्रभु श्रीराम मेरे पति को अपनी गोद में लेकर बैठे हैं। जो योगेश्वर राम की गोदी में लेटा हो, काल उसे छू भी नहीं सकता।

यह तो वो दोनों लीला कर रहे हैं। मेरे पति जब से वन गये हैं, तब से वे सोए नहीं हैं।

उन्होंने बड़े भैया की सेवा और रक्षा के लिए एक क्षण भी न सोने का प्रण लिया था।

इसलिए वे थोड़ी देर बस विश्राम कर रहे हैं और जब स्वयं भगवान की गोद मिल गई हो तो विश्राम थोड़ा दीर्घ हो गया। वे उठ जाएंगे।

और हाँ! शक्ति तो मेरे पति को लगी ही नहीं, शक्ति तो रामजी को लगी है।

मेरे स्वामी की तो हर श्वास में राम हैं, हर धड़कन में राम, उनके रोम-रोम में राम हैं, उनके रक्त की बूंद-बूंद में राम हैं, और जब उनके शरीर और आत्मा में सिर्फ राम ही हैं, तो शक्ति राम जी को ही लगी, दर्द राम जी को ही हो रहा होगा।

इसलिये हनुमान जी आप निश्चिन्त होके जाएँ। सूर्य उदित नहीं होगा।”

जय श्री सीताराम
“ये रामायण है पुण्य कथा श्री राम की ”

पंडित मुकेश त्रिवेदी, ज्योतिषाचार्य 

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