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नई दिल्ली। दिल्ली में पानी की जरूरतों को पूरा करने के लिए बड़े पैमाने पर भूजल का दोहन किया जाता है, अब धीरे-धीरे यह स्थिति पूरे क्षेत्र के लिए खतरनाक होती जा रही है। जमीन धंसने के कारणों पर किए गए एक शोध से पता चला है कि दिल्ली-एनसीआर में दो प्रमुख इलाके जमीन धंसने की घटनाओं का सामना कर रहे हैं।
इनमें द्वारका, पालम, राज नगर (डीपीआर) और कापसहेड़ा गुरुग्राम (केजी) क्षेत्र शामिल हैं। शोध अध्ययन के नतीजे बुलेटिन ऑफ इंजीनियरिंग जियोलॉजी एंड द एनवायरनमेंट में प्रकाशित हुए हैं।
अध्ययन के अनुसार, इन क्षेत्रों में जमीन धंसने का पहला मामला 2005-6 में द्वारका-पालम,राज नगर (डीपीआर) में सामने आया था। इसके बाद कापसहेड़ा गुरुग्राम (केजी) में 2008 के दौरान भी ऐसी ही घटना दर्ज की गई थी। शोधकर्ताओं के अनुसार 2005 से उपग्रहों से प्राप्त तस्वीरों और जमीनी अवलोकनों का उपयोग कर किए गए इस शोध से पता चला है कि शुरुआत में 2005-06 के दौरान द्वारका, पालम और राज नगर में भू-धंसाव की दर करीब तीन सेंटीमीटर प्रति वर्ष थी जो 2010-11 में बढ़कर नौ सेंटीमीटर प्रति वर्ष पर पहुंच गई थी।
इसी तरह कापसहेड़ा गुरुग्राम क्षेत्र में 2008-09 में यह दर पांच सेंटीमीटर प्रति वर्ष दर्ज की गई। जो 2010-11 में बढ़कर करीब आठ सेंटीमीटर प्रति वर्ष तक पहुंच गई थी। शोध के दौरान इन क्षेत्रों में भूजल के बड़े पैमाने पर हो रहे दोहन के संकेत मिले हैं। हालांकि, 2014 के बाद से डीपीआर क्षेत्र में जमीन धंसने की दर में कमी आई है, जबकि कापसहेड़ा गुरुग्राम क्षेत्र में इसमें होने वाली वृद्धि अभी भी जारी है।
यह बढ़कर 10 से 13 सेंटीमीटर प्रति वर्ष पर पहुंच गई है। इसका कारण तेजी से हो रहा भूजल का दोहन है। इसके अलावा शोधकर्ताओं ने 2014 और 2019 के बीच डीआईएनएसएआर का उपयोग करके भू-धंसाव के नए क्षेत्रों की पहचान की है।
इन जगहों पर है ज्यादा खतरा
शोधकर्ताओं को महिपालपुर, बिजवासन, कुतुब विहार, द्वारका के पश्चिमी हिस्से, गुरुग्राम, फरीदाबाद और अंतराष्ट्रीय हवाई अड्डे के आसपास उन क्षेत्रों का पता चला है जहां जमीन धंस रही है। अध्ययनकर्ताओं के अनुसार दिल्ली के इन हिस्सों में जमीन धंसने की घटनाएं भूजल में लगातार आ रही कमी से भी संबंधित हैं।
इसका कारण समझने के लिए अध्ययनकर्ताओं ने दिल्ली-एनसीआर क्षेत्र में लम्बे समय के भूजल से जुड़े आंकड़ों और उपग्रहों से प्राप्त भूगणितीय अवलोकनों का उपयोग किया है। शोध के दौरान 2005 से 2020 के बीच दक्षिण पश्चिमी और दक्षिण दिल्ली के कुछ हिस्सों में भूजल के स्तर और भूमि धंसाव के कारणों पर अध्ययन को केंद्रित किया गया है। भूमि धंसाव तब होता है जब कुछ प्रकार की चट्टानों और भूमिगत मिट्टी से बड़ी मात्रा में भूजल निकाला जाता है।
फरीदाबाद भी जद में
इसी तरह फरीदाबाद में जहां 2014 से 16 के बीच जमीन धंसने की जो रफ्तार 2.15 सेमी प्रति वर्ष थी वह 2018 के अंत तक बढ़कर 5.3 सेमी प्रति वर्ष और 2018-19 के बीच बढ़कर 7.83 सेंटीमीटर प्रति वर्ष पर पहुंच गई थी। शोधकर्ताओं ने इस बढ़ते भूधंसाव के लिए भी तेजी से गिरते भूजल स्तर को जिम्मेदार माना।
भविष्य में खतरा बन सकती हैं घटनाएं
शोधकर्ताओं को प्राप्त आंकड़ों से पता चला है कि जिस तरह दिल्ली और उसके आसपास के इलाकों में भूजल को निचोड़ा जा रहा है, उसके जमीन धंसने का खतरा लगातार बढ़ता जा रहा है। दिल्ली के अंतरराष्ट्रीय हवाई अड्डे से महज 800 मीटर की दूरी पर सामने आया था। दूसरी घटना महिपालपुर में हवाई अड्डे से सिर्फ 500 मीटर की दूरी पर हुई थी, जहां 2014 से 16 के बीच प्रति वर्ष 15 मिलीमीटर, 2016 से 17 के बीच 30 मिलीमीटर प्रति वर्ष और 2018 से 19 के बीच 50 मिमी प्रति वर्ष की दर से जमीन का धंसाव हुआ था। ऐसी ही एक अन्य घटना द्वारका में सामने आई थी। 2014 से 16 के बीच जमीन धंसने की दर 3.5 सेंटीमीटर प्रति वर्ष थी जो 2016 से 2018 के बीच घटकर 0.5 सेंटीमीटर और 2018-2019 के बीच वापस 1.2 सेंटीमीटर प्रति वर्ष पर पहुंच गई थी।
एनजीटी ने यमुना में गिर रहे नालों पर मांगी रिपोर्ट
यमुना नदी में गिर रहे नालों पर एनजीटी ने केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (सीपीसीबी) से रिपोर्ट मांगी है। आदेश में एनजीटी ने कहा कि दिल्ली और हरियाणा की सरकार के अधिकारियों की तरफ से आई रिपोर्ट का सत्यापन कराएं। इसमें देखें कि सीवर के ट्रीटमेंट के लिए बने नेटवर्क की क्या स्थिति है। एसटीपी पर निस्तारण की स्थिति को भी देखने के लिए कहा गया है।
जो रिपोर्ट एनजीटी को दी गई है उसमें भी खामियां 17 अक्तूबर के आदेश में अभिकरण के चेयरपर्सन जस्टिस प्रशांत श्रीवास्तव, सदस्य जस्टिस सुधीर अग्रवाल, डॉ. ए सेंथिल वेल की बेंच ने बताई हैं। रिपोर्ट में यह नहीं बताया गया कि मुख्य नाले से कौन सी वैध और अवैध काॅलोनियों को लिंक किया गया है। सभी काॅलोनियों को लिंक करने के लिए कोई समय सीमा भी नहीं बताई गई। इस मामले की सुनवाई अब एनजीटी सात दिसंबर को करेगा।
पराली जलाने पर पंजाब व सीपीसीबी को नोटिस
दिल्ली-एनसीआर में प्रदूषण का कारण बनने वाली पराली जलाने की गतिविधियों को देखते हुए एनजीटी ने पंजाब के मुख्य सचिव और केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के सदस्य सचिव को नोटिस जारी किया। एनजीटी ने पंजाब में पराली जलाने की घटनाओं में वृद्धि की खबरों पर स्वत:संज्ञान लेते हुए कदम उठाया।
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