नई दिल्ली। अक्सर आपने देखा होगा की आरोपी (Accused) को कोर्ट (Court) में पेश करने के दौरान या मीडिया के सामने लाने से पहले उसका चेहरा काले कपड़े से ढक दिया जाता है (Why Do Faces Of Thieves Covered With Black Cloth) । लेकिन क्या आप जानते हैं कि ऐसा क्यों किया जाता है? हम में से ज्यादातर लोग कई चीजों को सामने से देखते तो जरूर हैं लेकिन उन चीजों के बारे में ज्यादा जानते नहीं हैं।
आरोपी को तब तक दोषी नहीं माना जाता
गौरतलब है कि कोई भी आरोपी जब तक कि उसपर आरोप सिद्ध नहीं हो जाता तब तक उसे दोषी नहीं माना जाता है। ऐसे में आरोप लगने के बाद से आरोप सिद्ध होने तक उसके पास कई अधिकार होते हैं। उन्हीं अधिकारों में से एक अधिकार है कि जब तक उसपर कोई आरोपी सिद्ध नहीं हो जाता तब तक उसका चेहरा सबके सामने नहीं लाया जा सकता, चाहे वो शख्स अपराधी ही क्यों न हो।
किसी की जिंदगी बर्बाद हो सकती है
क्योंकि कई मामलों में किसी व्यक्ति पर आरोप तो लगा दिए जाते हैं लेकिन उस शख्स पर बाद में अपराध सिद्ध नहीं होता। ऐसे में अगर किसी शख्स के चेहरे को पब्लिक कर दिया जाता है तो बाद में अपराध मुक्त होने के बाद उसकी जिंदगी बर्बाद हो सकती है। हम सब को गौर करना चाहिए कि कोई भी आरोपी, दोषी नहीं होता, जब तक कि कोर्ट उसे दोषी करार न दे दे। ऐसी स्थिती में उसे अपराधी भी नहीं माना जाता। इसलिए उस शख्स को बदनामी से बचाने के लिए कोर्ट में चेहरा ढक कर ले जाया जाता है।
भारतीय कानून कहता है कि 100 दोषी व्यक्ति नर्दोष हो जाएं, लेकिन किसी भी एक निर्दोष को किसी अपराध के लिए दंडित नहीं किया जा सकता। ऐसे में आरोपी व्यक्ति के अधिकार को ना केवल भारत के संविधान के तहत बल्कि समय-समय पर विभिन्न कानूनों के तहत भी संरक्षित किया गया है।
ये अधिकार भी होते हैं आरोपियों के पास
अगर पुलिस किसी को आरोपी मानकर गिरफ्तार करती है तो उसे उसका अपराध और गिरफ्तारी का आधार बताना होता है। इतना ही नहीं पुलिस को ये भी बताना होता है कि आरोपी को जमानत पर छोड़ा जा सकता है या नहीं। अगर किसी व्यक्ति को गिरफ्तार किया जा रहा है, तो उसके पास यह अधिकार है कि वो पुलिस से वकील की मदद लेने की इजाजत मांग सकता है। गिरफ्तारी के बाद थाने में उससे मिलने उसके मित्र संबंधी भी जा सकते हैं।
पुलिस उससे दुर्व्यवहार नहीं कर सकती
अगर आरोपी व्यक्ति गिरफ्तारी का विरोध नहीं कर रहा हो तो पुलिस उसके साथ दुर्व्यवहार नहीं कर सकती और न ही मारपीट कर सकती है। अगर वह व्यक्ति आदतन अपराधी नहीं है और गिरफ्तार होने के बाद उसके भागने का खतरा भी नहीं है, तो इस स्थिति में उसे हथकड़ी भी नहीं लगाया जा सकता। हालांकि ज्यादातर मामलों में पुलिस इन चीजों को फॉलो नहीं करती है।
महिला पुलिस होनी चाहिए
अगर आरोपी महिला है तो उसे गिरफ्तार करते समय महिला पुलिस भी होनी चाहिए। पुरुष सिपाही उसे छू भी नहीं सकता। गिरफ्तारी के बाद व्यक्ति को तुरंत थाना प्रभारी अथवा मजिस्ट्रेट के पास लाया जाना चाहिए। उसे 24 घंटे में मजिस्ट्रेट के समक्ष पेशी जरूरी है। अगर हिरासत में कोई पुलिसकर्मी सताता या यातना देता है तो वह व्यक्ति उसकी पहचान कर आपराधिक आरोप दर्ज करा सकता है। अगर हिरासत में महिला के साथ दुष्कर्म या दुर्व्यवहार होता है तो उसे तुरंत डॉक्टर से जांच की मांग करनी चाहिए। गिरफ्तार व्यक्ति को यह अधिकार है कि वह अपनी गिरफ्तारी की सूचना अपने मित्र या परिवार को दे सके। पुलिस इसमें मदद करे।
पुलिस अधिकारी का नाम स्पष्ट रूप से दिखाई देना चाहिए
इतना ही नहीं, सुप्रीम कोर्ट के निर्देश के अनुसार जब पुलिस गिरफ्तार व्यक्ति से पूछताछ कर रही हो तो उसके नाम की पट्टी, पद स्पष्ट रूप से व्यक्ति को दिखाई देने चाहिए। जब गिरफ्तार व्यक्ति के बारे में सूचना का ‘मेमो’ तैयार कर लिया गया हो तो कम से कम एक गवाह जो कि उसके परिवार का व्यक्ति हो या उस क्षेत्र का जाना-माना व्यक्ति हो, के हस्ताक्षर होने चाहिए। साथ ही उस मेमो पर गिरफ्तार व्यक्ति के भी हस्ताक्षर होना जरूरी है।
ऐसा न करने पर दोषी ठहराए जा सकते हैं
पूछताछ करने वाले अधिकारी के हस्ताक्षर भी होने चाहिए और गिरफ्तार व्यक्ति को उसकी एक प्रति मिलना चाहिए। प्रत्येक 48 घंटे में डॉक्टरों का पैनल गिरफ्तार व्यक्ति की मेडिकल जांच करे। प्रत्येक दस्तावेज या मेमो को मजिस्ट्रेट को रेकॉर्ड स्वरूप भेजा जाना चाहिए। 12 घंटे में जिले के पुलिस कंट्रोल रूम को गिरफ्तार व्यक्ति के बारे में सूचना देनी चाहिए। इन निर्देशों का अगर पुलिस पालन नहीं करती है तो संबंधित लोगों पर विभागीय कार्यवाही हो सकती है और उनको कोर्ट की अवमानना का दोषी भी ठहराया जा सकता है।