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Effects of Heart Medicines: हार्ट से जुड़ी दवाओं का भारतीय सहित एशियाई लोगों पर क्यों पड़ता है कम असर, जानें इस रिर्सच में

एमा फोर्टन मेगेवर्न क्वीन मैरी यूनिवर्सिटी ऑफ लंदन ने एक शोध किया है। जो हार्ट संबंधी दवाएं के इस्तेमाल को लेकर अपने दावे प्रस्तृत करता है।

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Agnesh Parashar
Effects of Heart Medicines: हार्ट से जुड़ी दवाओं का भारतीय सहित एशियाई लोगों पर क्यों पड़ता है कम असर, जानें इस रिर्सच में

लंदन। एमा फोर्टन मेगेवर्न क्वीन मैरी यूनिवर्सिटी ऑफ लंदन ने एक शोध किया है। जो हार्ट संबंधी दवाएं के इस्तेमाल को लेकर अपने दावे प्रस्तृत करता है। इसमें बताया गया है कि कैसे एशियाई देशों के लोगों पर हार्ट की दवाओं का कम प्रभाव होता हैं। तो इसके पीछे क्या कारण मौजूद हैं। इस अध्ययन में यह सिलसिलेवार तरीके से बताया गया है। आइए जानते हैं इसके बारे में।

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हार्ट की बीमारी में इस दवा इस्तेमाल

लोगों को पहली बार दिल का दौरा पड़ने पर आम तौर पर क्लोपिडोग्रेल दवा दी जाती है जो दोबारा हृदयाघात के जोखिम को कम कर देती है। एक ओर यह दवा दोबारा दिल का दौरा पड़ने को रोकने में काफी कारगर है तो दूसरी ओर यह केवल तभी काम कर सकती है जब शरीर का सीवाईपी2सी19 एंजाइम इसे सक्रिय कर चुका हो।

अध्ययन में आनुवंशिक विविधताएं आई सामने

शरीर में कुछ आनुवंशिक विविधताएं हैं तो इसका अर्थ यह है कि शरीर क्लोपिडोग्रेल को सक्रिय नहीं कर सकता। क्लोपिडोग्रेल को सक्रिय नहीं कर पाना वास्तव में काफी आम होता है। अनुमान है कि यूरोपीय वंश के तीन में से एक व्यक्ति में इन आनुवंशिक विविधताओं में से एक पाई जाती है- और कुछ जातीय समूहों में यह काफी ज्यादा आम होती हैं।

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इसे इस तरह से समझे

उदाहरण के लिए प्रशांत द्वीप समूह के प्रत्येक दस मूल निवासियों में से नौ से अधिक में अनुवांशिक विविधता होती है। इसलिए अगर क्लोपिडोग्रेल दवा दी जाए तो उन्हें बाद में दिल का दौरा पड़ने का खतरा अधिक होता है। हमारे नए अध्ययन से यह भी पता चला है कि क्लोपिडोग्रेल कई ब्रिटिश दक्षिण एशियाई लोगों के लिए प्रभावी नहीं हो सकती।

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यूके में हार्ट मरीजों की संख्या है ज्यादा

यह महत्वपूर्ण है क्योंकि यूनाइटेड किंगडम (यूके) में दक्षिण एशियाई लोगों के हृदय रोग से पीड़ित होने की दर उच्च है। हमने अपना अध्ययन 44396 प्रतिभागियों के डेटा का विश्लेषण करके शुरू किया जिन्होंने ब्रिटिश-पाकिस्तानी और ब्रिटिश-बांग्लादेशी लोगों पर किए गए अध्ययन जीन एंड हेल्थ में भाग लिया था। इस अध्ययन में स्वास्थ्य समस्याओं और दवाओं के राष्ट्रीय रिकॉर्ड को अनुवांशिक आंकड़ों से जोड़कर देखा गया था।

आनुवांशिक विविधता की दर इस प्रकार है

हमने पाया कि हर दस में से लगभग छह लोगों (57 प्रतिशत) में आनुवांशिक विविधता थी जिसका मतलब है कि उनके शरीर क्लोपिडोग्रेल को अच्छी तरह से सक्रिय नहीं कर पाएंगे। ये आनुवांशिक विविधता यूरोपीय वंश के लोगों की तुलना में कहीं अधिक थी। यूरोप के 30 से 35 प्रतिशत लोगों में ये अनुवांशिक विविधता देखी गई थी।

अध्ययन में यह बात आई सामने

फिर हमने इस समूह को सीवाईपी 2 सी 19 जीन प्रकार के आधार पर वर्गीकृत किया और उन प्रतिभागियों पर ध्यान दिया जिन्हें बार-बार दिल का दौरा पड़ा था। हमने पाया कि जिन प्रतिभागियों को एक से ज्यादा बार दिल का दौरा पड़ा था उनमें अन्य लोगों की तुलना में दो क्लोपिडोग्रेल-प्रतिरोध जीन होने की संभावना तीन गुना से अधिक थी।

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क्लोपिडोग्रेल प्रभावकारिता में कमी हो रही

हमारा अध्ययन यह सुझाव देने वाला पहला अध्ययन नहीं है कि क्लोपिडोग्रेल विभिन्न जातीय समूहों के लोगों के लिए उतनी प्रभावी नहीं हो सकती लेकिन यह पश्चिमी दक्षिण एशियाई लोगों के बीच बार-बार पड़ने वाले दिल के दौरे और क्लोपिडोग्रेल प्रभावकारिता में कमी के आनुवंशिक जोखिम को जोड़कर देखने वाला पहला अध्ययन है।

परीक्षण मुख्य रूप से यूरोपीय वंश के लोगों पर हुआ

ये परिणाम कई अलग-अलग जातीय पृष्ठभूमि के लोगों पर दवाओं के परीक्षण के महत्व को दोहराते हैं। इस अध्ययन के दौरान क्लोपिडोग्रेल का परीक्षण मुख्य रूप से यूरोपीय वंश के लोगों पर किया गया था। इस अध्ययन ने विशेष रूप से कुछ जातीय समूहों के लिए क्लोपिडोग्रेल की प्रभावशीलता के बारे में एक विषम दृष्टिकोण पेश किया।

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