उगते और डुबते हुए सूरज देखना किसे पंसद नही होता। दिनभर पीली सुनहरी आभा के साथ चमकने वाले सूरज को जब हम सुबह जल्दी देखते हैं या शाम को डूबते हुए देखते हैं तो ये रोज ही लाल रंग में बदला हुआ दीखता है। कई बार इस दौरान आसमान कई रंगों में नजर आता है, जिसमें लाल, नारंगी, नीला, पीला और बैंगनी रंग आसमान में फैलते दीखने लगते हैं। आखिर ऐसा क्यों होता है। क्यों सूरज इस तरह रंग बदलता है।
ये नजारा बेहद ख़ूबसूरत और रूमानी होता है। ऐसे समय आसमान भी तेजी से कई रंग बदलता हुआ लगता है। तेजी से रंग बदलने के बीच सूरज लगातार लाल ही दीखता है। इसका कारण पूरी तरह वैज्ञानिक है। इसका जवाब रेली स्कैटरिंग (प्रकाश का प्रकीर्णन) में छिपा है। इस बात को करीब सौ साल पहले ब्रिटिश भौतिक विज्ञानी लॉर्ड रेली ने समझाया था। वह पहले शख्स थे जिन्होंने प्रकाश के प्रकीर्णन की घटना की व्याख्या की थी।
प्रकाश का प्रकीर्णन यानि रैली स्कैटरिंग वो प्रक्रिया होती है, जिसमें जब सूर्य का प्रकाश सूर्य से बाहर निकलकर वायुमंडल में प्रवेश करता है और इसको फैलाने में मदद करते हैं धूल और मिट्टी के कण, जिनसे टकराकर ये चारों तरफ फैल जाता है।
खूबसूरत समय लेकिन
ये समय होता तो बहुत खूबसूरत है लेकिन चेतावनी दी जाती है कि इस खूबसूरत नजारे के बीच सूरज को सीधी आंखों से नहीं देखें। ना ही इसके लिए दूरबीन का इस्तेमाल करें। इससे आपकी आंखों को नुक़सान पहुंच सकता है या आप अंधे हो सकते हैं।
प्रकाश की किरण कितने रंगों में टूटती है
ये तो हम सभी को मालूम है कि प्रकाश की सफेद किरण जब टूटती है तो मुख्य तौर पर सात रंग सामने आते हैं, जो लाल, नारंगी, पीला, हरा, नीला, गहरा नीला और बैंगनी होता है। इन्हें इंद्रधनुषी रंग कहते हैं। प्रिज्म से जब प्रकाश की किरण को गुजारा जाता है तो प्रकाश को हम सीधे तौर पर सात रंगों में बंटते हुए देखते हैं।
इसमें हर रंग की अपनी वेवलैंथ होती है। जिसके हर रंगा वैसा ही दीखता है, जैसा वो होता है। इसमें बैंगनी रंग की वेवलेंथ सबसे छोटी होती हैं तो लाल रंग की सबसे बड़ी।
क्या है इसका साइंस
अब जानते हैं कि वातावरण में क्या होता है। विभिन्न गैसों की वो परतें, जो हमारे ग्रह में फैली हैं, जो हमें ज़िंदा रखती हैं। इसमें ऑक्सीजन भी शामिल है,जिससे हम सांस ले पाते हैं।
जैसे-जैसे सूरज की रोशनी अलग-अलग हवा की परतों से गुज़रती है, इन परतों से गुजरते हुए रोशनी दिशा बदलती है और बंट भी जाती है।वातावरण में कुछ कण भी होते हैं, जो विभाजित रोशनी में उछाल लाते हैं या उसे प्रतिबिंबित करते हैं। जब सूरज डूबता या उगता है, इसकी किरणें वातावरण की सबसे ऊपर की परत से एक निश्चित कोण से टकराती हैं और यहीं पर ये ‘जादू’ शुरू होता है।
जब सूरज की किरणें इस ऊपरी परत से होकर गुज़रती हैं, तो नीली वेवलेंथ बंट जाती है। अवशोषित होने की वजह से प्रतिबिंबित होने लगती है।जब क्षितिज पर सूर्य का ताप कम होता है, तो प्रकाश की नीले और हरे रंग की तरंगें बिखर जाती हैं और ऐसी स्थिति में हमें बचे प्रकाश की नारंगी और लाल तरंगें ही दिखाई देती हैं।
बैंगनी और नीले रंग की किरणें अपनी छोटी वेवलेंथ के कारण ज़्यादा लंबी दूरी तक नहीं जा पातीं। ज़्यादा बिखर जाती हैं। जबकि संतरी और लाल रंग की किरणें लंबी दूरी तय करती हैं। ऐसे में आसमान पर लालिमा या लालिमा लिए कई रंगों का ख़ूबसूरत मंज़र बन जाता है।
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