Arvind Kejriwal: जेल से छूटते ही अरविंद केजरीवाल के दिल्ली के मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा देने के ऐलान के बाद अब सबसे ज्यादा चर्चा इसी बात की है कि आखिरकार उन्होंने ऐसा क्यों किया? हालांकि, वे इस्तीफा दो दिन बाद देने वाले हैं अभी सिर्फ घोषणा की है।
बता दें अरविंद केजरीवाल (Arvind Kejriwal) ने रविवार को लुटियंस दिल्ली के 1 रविशंकर शुक्ला लेन स्थित आप मुख्यालय में कहा कि मैंने इस्तीफा देने का फैसला किया है। अब चुनाव होने तक दिल्ली को नया मुख्यमंत्री मिलेगा।
केजरीवाल 177 दिन जेल में रहे और बाहर आते ही ऐसा ऐलान कर दिया जो सियासी हलकों में जबरदस्त चर्चा का विषय बन गया है। सब यही सवाल कर रहे हैं आप के मुखिया अरविंद केजरीवाल जेल से बाहर आते ही मुख्यमंत्री की कुर्सी क्यों छोड़ रहे हैं।
कोर्ट की शर्तों से केजरीवाल उलझे
दिल्ली के सीएम अरविंद केजरीवाल (Arvind Kejriwal) को शराब घोटाला मामले में जमानत देते हुए सुप्रीम कोर्ट ने कई शर्तें लगाई हैं। इनमें 2 शर्तें प्रमुख हैं। पहला, अरविंद केजरीवाल सीएम ऑफिस नहीं जा सकेंगे। दूसरा मुख्यमंत्री होने के नाते किसी फाइल पर साइन नहीं कर सकेंगे। माना जा रहा है कि इस्तीफा देने की सबसे बड़ कारण यही है।
सुप्रीम कोर्ट के इन 2 शर्तों की वजह से आप की सरकार राजनीतिक और संवैधानिक संकट में फंस सकती थी, इसी संकट से निकालने के केजरीवाल (Arvind Kejriwal) ने इस्तीफा देने की चाल खेली है।
जानें, जमानत देते हुए केजरीवाल पर सुप्रीम कोर्ट ने क्या शर्ते लगाईं-
पहले संवैधानिक संकट समझिए
दिल्ली विधानसभा का सत्र आखिरी बार 8 अप्रैल को बुलाया गया था। 6 महीने बाद 8 अक्टूबर 2024 तक सत्र बुलाना आवश्यक है वरना सरकार को विधानसभा भंग करनी पड़ती। विधानसभा भंग होने की स्थिति में राष्ट्रपति का शासन लग जाता है।
अरविंद केजरीवाल को जमानत देते हुए सुप्रीम कोर्ट ने जो शर्तें लगाई थी, उसमें विधानसभा का सत्र बुलाना आसान नहीं है। संविधान के अनुच्छेद -174 में राज्यपाल /उपराज्यपाल को सत्र बुलाने और विघटित करने की शक्ति दी गई है।
गर्वनर यह काम कैबिनेट की सिफारिश पर करते हैं। कैबिनेट की मीटिंग को मुख्यमंत्री ही लीड कर सकते हैं, लेकिन वर्तमान में केजरीवाल पर लगे जमानत की शर्तों से यह आसान नहीं है। यानी केजरीवाल कैबिनेट बैठक की अनुशंसा उपराज्यपाल को नहीं भेज सकते हैं।
दो फॉर्मूले पर हुई चर्चा, लेकिन राह आसान नहीं। आप से जुड़े सूत्रों के मुताबिक विधानसभा सत्र बुलाने के लिए दो फॉर्मूले पर चर्चा हुई। पहला फॉर्मूला शर्तें हटाने के लिए कोर्ट का रूख है। इसके तहत कोर्ट से यह अपील की जाती कि सीएम फाइलों पर साइन नहीं करेंगे तो काम-काज कैसे होगा? कहा जा रहा है कि इसमें दो दिक्कतें थी।
- 8 अक्टूबर से पहले इस पर कोर्ट का फैसला आ जाए, यह मुश्किल है। इसके अलावा कोर्ट ने सुनवाई के दौरान अगर कोई सख्त टिप्पणी कर दी तो पार्टी और केजरीवाल की किरकिरी हो जाती।
- दूसरा फॉर्मूला सीनियर मंत्री से सिफारिश कराकर कैबिनेट की बैठक बुलाने की थी, लेकिन इसमें उपराज्यपाल कानूनी प्रावधान को हथियार बना सकते थे।
अब राजनीतिक संकट समझिए
- यदि 8 अक्टूबर को राष्ट्रपति शासन लग जाता तो दिल्ली में चुनाव की तारीखें भी बढ़ सकती थी। अभी फरवरी 2025 में विधानसभा के चुनाव प्रस्तावित हैं। जम्मू कश्मीर में विधानसभा भंग होने के 6 साल बाद विधानसभा के चुनाव हुए हैं।
- यदि विधानसभा का चुनाव टलता है तो यह आम आदमी पार्टी के लिए एक झटका साबित होता। आप दिल्ली में ही सबसे मजबूत स्थिति में है। केजरीवाल (Arvind Kejriwal) के इस्तीफे का यह भी एक बड़ा कारण है।
- केजरीवाल (Arvind Kejriwal) किसी और को सीएम बनाकर यह सुनिश्चित करना चाहते हैं कि दिल्ली विधानसभा का चुनाव समय पर ही हो। उन्होंने कहा भी है कि अब जो चुनाव होंगे, तब सरकार बनेगी और मैं मुख्यमंत्री बनूंगा।
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