Samay Sagar Ji Maharaj: मध्यप्रदेश के दमोह जिले के कुंडलपुर में कल 16 अप्रैल को जेष्ठ,श्रेष्ठ प्रथम निर्यापक श्रमण मुनि श्री 108 समय सागर जी महाराज जी को आचार्य पदवी दी जाएगी. आपको बता दें मुनि श्री 108 समय सागर जी महाराज आचार्य विद्यासागर महाराज के भाई और शिष्य हैं.
मुनि श्री 108 समय सागर जी महाराज मूल रूप से कर्नाटक के रहने वाले हैं. साथ मुनि श्री 108 समय सागर जी महाराज आचार्य विद्यासागर महाराज के संघ में ही थे.
आज हम आपको बताएंगे की कौन हैं समयसागर जी महाराज और कब उन्होंने मुनि पद की दीक्षा ली थी.
समयसागर से पहले शांतिनाथ जैन था नाम
मुनि श्री 108 समय सागर जी महाराज का जन्म 27 अक्टूबर 1958 में कर्नाटक के वेलगाम में हुआ था. समय सागर जी महाराज के पिता का नाम मल्लप्पाजी जैन और माता का नाम श्रीमति जैन है. आपको बता दें समय सागर जी महाराज छह भाई बहनों में छठे नंबर पर हैं.
बचपन से ही समयसागर महाराज जी की रूचि धर्म और अध्यात्म में थी. धर्म अध्यात्म में रूचि के कारण ही उनके माता पिता ने उनका नाम शांतिनाथ जैन रखा था. लेकिन दीक्षा लेने के बाद इनका नाम समय सागर महाराज हो गया था.
आचार्य विद्यासागर के पहले शिष्य हैं समयसागर
समयसागर महाराज ने 2 मई 1975 में ब्रह्मचर्य व्रत का पालन किया था. समयसागर महाराज ने इसी वर्ष मध्यप्रदेश के दतिया सोनागिरी क्षेत्र में क्षुल्लक (छोटी दीक्षा) दीक्षा ली थी. आपको बता दें ये जैन समाज के संतों में पहली श्रेणी की दीक्षा ली थी.
इसके बाद उन्होंने एलक दीक्षा 31 अक्टूबर 1978 में ली थी. जानकारी के अनुसार क्षुल्लक दीक्षा के लगभग 5 साल बाद 8 मार्च 1980 को मध्यप्रदेश के छतरपुर में सिद्धक्षेत्र द्रोणगिरी में मुनि दीक्षा ली थी.
मुनि दीक्षा के बाद ही समय सागर जी महाराज आचार्य विद्यासागर जी विद्यासागर जी महाराज के पहले शिष्य बने थे. यहीं से उनका मुनि जीवन शुरू हुआ और तपस्या के कठोर नियमों को उन्होंने अपने जीवन में अपना लिया।
चारों भाई है जैन मुनि
जैन धर्म के गुरु आचार्य श्री विद्यासागर जी महाराज के बाद अगले गुरु उनके सगे भाई समय सागर जी महाराज हैं। इन दोनों के एक और भाई हैं जिनका नाम योगसागर जी महाराज है। इन तीनों के गृहस्थ जीवन के माता-पिता और दो बहनें भी आचार्य धर्मसागर जी से दीक्षित हुए थे.
आचार्य विद्यासागर जी ने समयसागर जी को अपने बाद अगला आचार्य समयसागर महाराज को चुना है। समयसागर जी विद्यासागर जी के पहले शिष्य थे और अब वह उनके बाद सबसे अनुभवी और श्रेष्ठ मुनि हैं.
यह एक परंपरा है जिसका पालन हर आचार्य करते है – वे अपने बाद समाज का उत्तरअधिकारी अपने पहले शिष्य को चुनते हैं. इसलिए विद्यासागर जी महाराज ने अपना पद समयसागर जी को सौंपा है.