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Guru Ravidas Jayanti 2024: खेलने के लिए पुकारा तो जीवित हो उठा मृत दोस्त, ऐसे बनें रविदास संत, कथा में है ये उल्लेख

Agnesh Parashar by Agnesh Parashar
August 10, 2024
in यूटिलिटी
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Guru Ravidas Jayanti 2024: आज पूरे देश में संत रविदास जयंती मनाई जा रही है। रविदास भक्तों में काफी उत्साह भी देखा जा रहा है। आज इस अवसर पर हम आपको बताएंगे कि रविदास जी संत कैसे बनें? इसके पीछे कौनसी कथा प्रचिलत है।

    समाज को एकता के सूत्र में बांधा

वैसे तो रविदास जी राम, कृष्ण भगवान के भक्त थे, लेकिन वे अपने कर्म को ही गुरु मानते थे। जात-पात और ऊंच-नीच के भेदभाव को दूर कर समाज को एकता के सूत्र में बांधने का काम किया था। उन्होंने अपने दोहों के माध्यम से समाज के लोगों को सही मार्ग दिखाया।

संत रविदास जी का जन्म संवत 1433 में माघ महीने की पूर्णिमा तिथि को हुआ था। इसी दिन को रविदास जयंती के रूप में मनाया जाता है। संत रविदास जी के पिता का नाम रग्घु (राघवदास) और माता का नाम करमा बाई था। दास की एक बहन भी थी जिसका नाम रविदासिनी था।

    रविदास जी कैसे बने संत?

कथा के अनुसार, रविदास अपने साथी के साथ खेला करते थे। एक दिन खेलने के बाद अगले दिन वो साथी नहीं आता है, तो रविदास जी उसे ढूंढ़ने चले जाते हैं, लेकिन उन्हे पता चलता था कि उसकी मृत्यु हो गई है।

ये देखकर रविदास जी बहुत दुखी होते हैं और अपने मित्र को बोलते हैं, कि उठो ये समय सोने का नहीं है, मेरे साथ खेलने का है। मेरे साथ खेलो।

इतना सुनकर उनका मृत साथी खड़ा हो जाता है और खेलने लगता है। ऐसा इसलिए होता है, क्योंकि संत रविदास जी को बचपन से ही आलौकिक शक्तियां प्राप्त थी। लेकिन जैसे-जैसे समय निकलता गया उन्होंने अपनी शक्ति भगवान राम और कृष्ण की भक्ति में लगाई। इस तरह धीरे-धीरे लोगों का भला करते हुए वो रविदास से संत रविदास बन गए।

संत रविदास का एक किस्सा

रविदास जी के पिता का व्यवसाय अपना जूते बनाने का था, जो कि पैतृक व्यवसाय था। अपनी आजीविका के लिए संत रविदास ने भी पैतृक कार्य को अपनाया।

अपने काम को लेकर संत रविदास का एक किस्सा बहुत चर्चित है। बता दें, इनके पास एक व्यक्ति अक्सर जूते ठीक करवाने आता था, लेकिन वह काम के बदले में खोटे सिक्के देकर जाया करता था। एक दिन उस व्यक्ति ने संत रविदास के एक शिष्य के साथ भी ऐसा ही किया।

दरअसल रविदास जी एक दिन कहीं बाहर गए हुए थे और उनकी जगह उनका एक शिष्य जूते ठीक करने का काम कर रहा था। खोटे सिक्के देने वाला व्यक्ति उस दिन भी आया और शिष्य से जूते ठीक करवाकर खोटे सिक्के देने लगा। शिष्य उसे पकड़ लिया और डांट लगा दी। जूते ठीक किए बिना ही उसे लौटा दिया।

जब रविदास जी लौटकर आए तो शिष्य ने पूरी घटना सुनाई। संत रविदास ने शिष्य से कहा कि तुम्हें उसे डांटना नहीं था, बल्कि उसके जूते ठीक कर देने चाहिए थे।

मैं तो ऐसा ही करता हूं। मैं ये बात भी जानता हूं कि वो मुझे खोटे सिक्के देकर जाता है। ये बात सुनकर शिष्य चौंक गया और पूछा कि आप ऐसा क्यों करते हैं?

संत रविदास ने उसे समझाया कि मैं ये बात नहीं जानता कि वो व्यक्ति ऐसा क्यों करता है, लेकिन जब वो खोटे सिक्के देता है, तो मैं रख लेता हूं और मेरा काम ईमानदारी से कर देता हूं।

    शिष्य ने पूछा कि आप उन खोटे सिक्कों का क्या करते हैं?

संत रविदास ने कहा कि मैं उन सिक्कों को जमीन में गाढ़ देता हूं, ताकि वह व्यक्ति इन खोटे सिक्कों से किसी दूसरे व्यक्ति को न ठग सके। दूसरों को ठगी से बचाना भी एक सेवा है। अगर कोई व्यक्ति गलत काम करता है तो हमें उसे देखकर अपनी अच्छाई नहीं छोड़नी चाहिए।

इससे सीख मिलती है, कि संत रविदास जी ने संदेश दिया कि बुरे लोग तो गलत काम ही करेंगे, लेकिन उनकी वजह से हमें अपनी अच्छाई नहीं छोड़नी चाहिए। हमें अपना काम हमेशा ईमानदारी से ही करना चाहिए।

पूरी लगन के साथ कार्य किया। संत जी अपना कार्य करते समय भगवान की भक्ति भी करते रहते थे। भगवान की भक्ति उनके मन में रम गई थी। उन्होंने अपने कार्य को संत सेवा का माध्यम बना लिया।

कहते हैं, कि संत रविदास के पास कुछ आलौकिक शक्तियां भी थीं। उनके चमत्कारों की वजह से कुष्ठ रोगी ठीक हो जाते थे।

संत रविदास लोगों को दोहे सुनाया करते थे। उनके दोहों में ऐसी शिक्षाएं छिपी थीं, जो समाज में जात-पात के भेद को दूर करती थीं।

    MP के सागर में बन रहा भव्य मंदिर

मध्यप्रदेश के सागर में (बड़तूमा) में संत रविदास जी का भव्य मंदिर बनाया जा रहा है। जिसका भूमिपूजन प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अगस्त 2023 में किया था। जिसमें करीब 500 से ज्यादा संत शामिल हुए थे।

मंदिर का लगभग 25 प्रतिशत काम पूरा हो चुका है। अभी मंदिर के पत्थरों को तराशने का काम चल रहा है। हालांकि, बेसमेंट का काम पूरा हो चुका है।

मंदिर के अलावा म्यूजियम और परिसर भी बनाए जा रहे हैं। जिनका का काम तेजी से चल रहा है। माना जा रहा है, कि अगले साल अगस्त महीने में मंदिर बनकर तैयार हो सकता है।

    मंदिर की खासियत

मंदिर निर्माण 11 एकड़ जमीन में किया जा रहा है। इस मंदिर को नागर शैली में तैयार किया जा रहा है। मंदिर की दीवारों में सिर्फ लाल पत्थर इस्तेमाल किए जा रहे हैं।

मंदिर की खासियत यह है, कि मंदिर के निर्माण में लोहे के सामान का उपयोग नहीं किया जा रहा है। बगैर लोहे के मंदिर को बनाया जा रहा है। लोहे की एक कील भी इस्तेमाल में नहीं ली जा रही है।

साथ ही मंदिर में कोई भी कोना नहीं बनाया जा रहा है। मंदिर को गोलाकार आकृति में बनाया जा रहा है। आगरा और राजस्थान के कारीगरों के द्वारा इस भव्य मंदिर तैयार किया जा रहा है।

Agnesh Parashar

Agnesh Parashar

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