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Batik Print: उज्जैन का ‘बाटिक प्रिंट’ क्या है? जानिए इसे GI Tag मिलने से क्या फायदे होंगे?

उज्जैन के ‘बाटिक प्रिंट’ (Batik Print) को जीआई टैग (GI Tag) दिया गया है। जानिए इससे बाटिक प्रिंट में क्या फर्क आएगा?

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Bansal News
Batik Print: उज्जैन का ‘बाटिक प्रिंट’ क्या है? जानिए इसे GI Tag मिलने से क्या फायदे होंगे?

महाकाल की पवित्र भूमि उज्जैन के ‘बाटिक प्रिंट’ (Batik Print) को जीआई टैग (GI Tag) दिया गया है। सीएम शिवराज सिंह ने अपने ट्विटर हैंडल पर इस गौरवपूर्ण उपलब्धि के लिए समस्त कलाकारों और राज्य के निवासियों को बधाई दी है।

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केन्द्रीय वाणिज्य मंत्रालय के इंडस्ट्री प्रमोशन एडं इंटरनल ट्रेड ने मध्य प्रदेश के 5 उत्पादों को जीआई टैग (GI Tag) दिया है। जिन उत्पादों को यह टैग मिला है, वे हैं: डिंडौरी की गोंड पेंटिंग, ग्वालियर का कालीन, उज्जैन की बाटिक प्रिंट, भेड़ाघाट (जबलपुर) का स्टोन क्राफ्ट, वारासिवनी (बालाघाट) साड़ी और रीवा का सुंदरजा आम।

यह पहला अवसर है, जब राज्य के इतने सारे उत्पादों को एक साथ जीआई टैग दिया गया है। आइए जानते हैं, उज्जैन का ‘बाटिक प्रिंट’ क्या है और इसे GI Tag मिलने से क्या फायदे होंगे?

उज्जैन का ‘बाटिक प्रिंट’ क्या है?

बाटिक प्रिंट (Batik Print) कपडे पर छपाई की एक पारंपरिक तकनीक है, जो धर्म नगरी उज्जैन, विशेष कर भैरवगढ़ (भेरूगढ़), में लगभग 500 सालों से वहां के स्थानीय कलाकारों द्वारा किया पीढ़ी-दर-पीढ़ी किया जाता रहा है।

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बाटिक प्रिंट कपडे पर अपने आकर्षक और सुंदर डिजाइनों के प्रसिद्ध है। इस तकनीक में मोम और रंग के कॉम्बिनेशन से शानदार डिजाइन बनाई जाती है।

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https://twitter.com/ChouhanShivraj/status/1645086939488604162?cxt=HHwWhMDSzd_2wtQtAAAA

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कैसे तैयार होता है बाटिक प्रिंट

  • बाटिक प्रिंट (Batik Print) को टिकाऊ बनाने के लिए रंगाई के दौरान पिघली हुई गर्म मोम से कपड़ों पर लाइनें और डॉट्स बनाए जाते है, ताकि कपड़े पर रंग नहीं फैल सके।
  • छोटे-छोटे डिजाइन के लिए ब्रश और पेन का इस्तेमाल होता है। इस प्रक्रिया को कैंटिंग कहा जाता है। यह वहां किया जाता है, जहां आमतौर पर एक स्पॉटिंग टूल होता है।
  • बड़े-बड़े पैटर्न और डिजाइन बनाने के लिए हार्ड ब्रश का उपयोग होता है। एक दूसरी विधि भी उपयोग में लायी जाती है, जिसमें स्टैम्प का इस्तेमाल होता है।
  • बाटिक प्रिंट के तहत सबसे कपड़े को पहले अच्छे से धोया जाता है। फिर उसे मलेट से पीटा जाता है। इसके बाद पिघले मोम से पैटर्न तैयार किया जाता है और फिर कपड़ों को आकर्षक रंगों में रंगा जाता है।
  • अब बारी आती है, जमे हुए मोम को हटाने की। इसके लिए कपड़ों पर लगे मोम को गर्म पानी का इस्तेमाल होता है।
  • जिन जगहों पर मोम की डिजाइन होती है, वहां कपडे के मूल रंग के विपरीत प्रायः कोई रंग नहीं होता है। चूंकि मोम कपड़े पर रंग को चढ़ने नहीं देता है, इसलिए रंगाई के फ़ाइनल स्टेज में कपड़े पर डिजाइन के मुताबिक एक सुंदर वस्त्र प्राप्त हो जाता है।
  • कभी-कभी इच्छित डिजाइन और रंग नहीं उभरने पर यही प्रक्रिया बार-बार या जरूरत के अनुसार दोहराई जाती है। आपको बता दें, पारंपरिक रूप से बने इस डिजाइन को बाटिक ट्यूलिस कहा जाता है।

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जीआईटैग का फायदा

-- जीआई टैग प्राकृतिक या निर्मित उत्पादों की गुणवत्ता और विशिष्टता को एक लेवल देता है। एक विशिष्ट भौगोलिक क्षेत्र या स्थान से उत्पन्न या निर्मित होने कारण वे विशिष्ट उत्पाद होते हैं, जो कहीं और नहीं होता है या नहीं बनता है।

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-- जीआई टैग को अंतर्राष्ट्रीय मार्केट में एक विश्वसनीय ट्रेडमार्क की तरह मान्यता दी जाती है। यह टैग प्राप्त होने से उत्पाद को इंटरनेशनल मार्केट में सप्लाई कर अपनी पहचान बना सकते हैं, जिससे अच्छी आमदनी हो सकती है।

-- जीआई टैग मिलने से उत्पाद का मूल्य और उससे जुड़े लोगों का अहमियत बढ़ जाती है। नकली यानी फेक उत्पाद (Fake Product) को रोकने में मदद मिलती है।

-- उम्मीद है कि उज्जैन के बाटिक प्रिंट (Batik Print of Ujjain) को जीआई टैग मिलने से न केवल देश में बल्कि उसकी अंतर्राष्ट्रीय पहचान बढ़ेगी। कलाकार और भी बेहतर उत्पाद बनाने के लिए उत्साहित होंगे। वे और अधिक और अच्छी कीमत पर इसे बेच सकेंगे।

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