सुप्रीम कोर्ट के चीफ जस्टिस डी.वाई. चंद्रचूड़ ने सीलबंद लिफाफों के मुद्देनजर एक टिपण्णी की है। उनका कहना है कि सीलबंद लिफाफे मूल रूप से न्यायिक प्रक्रिया के उलट है, क्योंकि अदालत में गोपनीयता नहीं हो सकती है।
उन्होंने यह भी कहा, ‘मैं व्यक्तिगत रूप से सीलबंद लिफाफों के खिलाफ हूं। होता ये है कि हम वो देखते हैं, जो मामले से जुड़ा दूसरा पक्ष नहीं देख पाता और हम उसे दिखाए बिना मामले का फैसला करते हैं।’ आइए जानते हैं, सीलबंद रिपोर्ट या लिफाफा क्या होता है?
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सीलबंद लिफाफे की उपादेयता
सीलबंद लिफाफा वास्तव में अदालती कार्रवाई की प्रक्रिया का व्यावहारिक पहलू है। यह एक ऐसा दस्तावेज है, जो गोपनीय होता है और सरकार उसे दूसरे पक्ष के साथ शेयर नहीं करना चाहती है। अक्सर सरकारी एजेंसियां अपनी रिपोर्ट सीलबंद लिफाफों में अदालत को सुपुर्द करती हैं। कई बार ऐसा भी हुआ है कि कुछ मामलों में खुद कोर्ट ने सीलबंद कवर में रिपोर्ट की मांग की है।
आपको बता दें, सीलबंद लिफाफे से जुड़ी यह हालिया चर्चा मलयाली न्यूज चैनल मीडिया वन मामले की सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट में हुई। सुनवाई के दौरान कोर्ट ने कहा कि सीलबंद लिफाफे में सूचना देने से प्राकृतिक न्याय के सिद्धांतों का उल्लंघन हुआ है। यह के प्रकार से याचिकाकर्ता को अंधेरे में रखने जैसा है।
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क्यों पेश किया जाता सीलबंद लिफाफा
दरअसल, सीलबंद लिफाफा वैसी अदालती कार्रवाई का अंग है, जिसमें राष्ट्र की सुरक्षा से जुड़े मुद्दों पर विचार किया जाता है। ये मुद्दे अक्सर गोपनीय होते हैं। ये जानकारियां सार्वजनिक रूप से उजागर होने से देश की सुरक्षा को खतरा हो सकता है।
इससे जुड़ा एक पहलू यह भी है कि सीलबंद लिफाफे के रिपोर्ट तब तक गोपनीय रखी जाती है, जब तक कि संबंधित अदालत उसे मामले में शामिल दूसरे पक्ष देने के लिए नहीं कह देती हैं।
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मीडिया वन मामले सुप्रीम कोर्ट ने क्या कहा है?
मलयाली चैनल मीडिया वन मामले की सुनवाई सुप्रीम कोर्ट में 5 अप्रैल हुई। इसकी सुनवाई के बाद फैसला सुनाते हुए सुप्रीम कोर्ट ने सीलबंद लिफाफे को लेकर दो बड़ी समस्याएं बताईं। पहला, इस प्रकार बंद लिफाफे में पेश रिपोर्ट के कारण पीड़ित पक्ष को उनके खिलाफ आए आदेश को प्रभावी ढंग से चुनौती देने के उनके कानूनी अधिकार से वंचित करता है। दूसरा, इसमें पारदर्शिता का अभाव होता है, जो गोपनीयता की संस्कृति को कायम रखता है।
आपको बता दें, साल 2019 में पी. गोपालकृष्णन बनाम केरल राज्य के मामले में सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि भले ही जांच जारी हो, लेकिन संवैधानिक रूप से आरोपी द्वारा दस्तावेजों का खुलासा करना जरुरी है। क्योंकि, दस्तावेजों से मामले की जांच में सफलता मिल सकती है।
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हालिया मामले जब कोर्ट ने लौटा दिए सीलबंद लिफाफे
वन रैंक वन पेंशन मामला: वन रैंक वन पेंशन यानी OROP के बकाए का जो भुगतान है उस मामले की सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट जब केंद्र सरकार के अटॉर्नी जनरल एन। वेंकटरमानी ने सीलबंद लिफाफा पेश किया, तो इस पर CJI ने सीलबंद लिफाफे में जवाब लेने से मना कर दिया था। यह घटना इसी साल की है।
अडाणी-हिंडनबर्ग मामला: इसी साल 17 फरवरी को सुप्रीम कोर्ट में मुख्य न्यायाधीश की अगुवाई वाली बेंच ने अडाणी-हिंडनबर्ग से जुड़े मामले केंद्र सरकार से वह सीलबंद लिफाफा लेने से इनकार कर दिया था, जिसमें उन एक्सपर्ट के नाम थे जो अडाणी-हिंडनबर्ग मामले की जांच कमेटी में थे।
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