पीएम मोदी संसद में राष्ट्रपति के अभिभाषण पर धन्यवाद प्रस्ताव का जवाब दे रहे थे जब उन्होंने कांग्रेस पर निशाना साधते हुए कहा कि देश का सबसे पुराना राजनीतिक दल ‘कैंसल कल्चर’ में फंस गया है.
उन्होंने लोकसभा में कहा, ‘कांग्रेस कैंसल कल्चर में फंस गई है. हम कहते हैं मेक इन इंडिया, वे कहते हैं कैंसल, हम कहते हैं आत्मनिर्भर भारत, कांग्रेस कहती है कैंसल. हम कहते हैं वोकल फॉर लोकल, कांग्रेस कहती है कैंसल… कब तक आप इतनी नफरत पालते रहोगे, कि आप देश की उपलब्धि को भी कैंसल करने की कोशिश कर रहे हैं?’
आइए जानते हैं वास्तव में ‘कैंसल कल्चर’ है क्या और यह भारत में और भारतीयों के विरुद्ध कब-कब सामने आया है?
‘कैंसल कल्चर‘ का मतलब
ऑक्सफोर्ड डिक्शनरी के अनुसार, कैंसल कल्चर ‘सामाजिक या व्यावसायिक जीवन में किसी का बहिष्कार करना है, क्योंकि उसने कुछ ऐसा कहा या किया है जिससे अन्य लोग सहमत नहीं थे’.
पीएम मोदी ने कांग्रेस पर आरोप लगाया कि वह भाजपा सरकार की हर योजना का बहिष्कार करने की कोशिश कर रही है, चाहे वह कितनी भी फायदेमंद क्यों न हो.
बहिष्कृत करने का एक तरीका
कैंसल कल्चर, मूल रूप से उन व्यक्तियों या संस्थाओं को बहिष्कृत करने का एक तरीका है, जिनके बारे में माना जाता है कि उन्होंने सामाजिक मानकों द्वारा अस्वीकार्य समझे जाने वाले तरीकों से कार्य किया है.
कैंसल कल्चर है बेहद खतरनाक
अगर हम थोड़ा पीछे जाकर देखें तो हाल ही में एक डॉक्युमेंट्री को लेकर विवाद हुआ. यूपीए के समय में तो और कमाल हुआ. अश्विन कुमार नामक फिल्मकार हैं. उनकी फिल्म ‘इंशाल्लाह फुटबॉल’ को राष्ट्रीय पुरस्कार मिला, राष्ट्रपति ने पुरस्कृत किया, देश-विदेश में कई पुरस्कार जीते, लेकिन सेंसर बोर्ड ने उनकी फिल्म दिखाने की अनुमति नहीं दी.
कश्मीर में एक बच्चे की मार्मिक कहानी है, यह फिल्म. इसको भी रोक दिया गया. हालांकि, यह कोई राजनीतिक फिल्म भी नहीं थी. तो, हर पार्टी, हर सरकार में ये होता ही रहता है.