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Sarkari Job: 78 साल से नौकरी को तरस रहा ये गांव, सरकारी तो छोड़िए किसी के पास प्राइवेट जॉब भी नहीं, सब करते हैं ये काम

Sarkari Job: 72 साल से नौकरी को तरस रहा ये गांव, सरकारी तो छोड़िए किसी के पास प्राइवेट जॉब भी नहीं, सब करते हैं ये काम

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Manya Jain
Sarkari Job

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Sarkari Job: आजकल बेरोजगारी के चलते कई लोग पेट पालने के लिए मजदूरी करते हैं. लेकिन भारत में एक ऐसा भी गाँव जहां का हर शख्स ही मजदूर है. वैसे तो किसी भी गांव में मजदूरी करने वाले लोग होते हैं लेकिन कोई न कोई नौकरी वाला भी होता है.

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लेकिन आज हम जिस गांव के बारे में बताएंगे (govt job) जहाँ किसी के पास भी नौकरी नहीं है. यहां का हर शख्स मजदूरी करके अपना पालन पोषण करता है. हैरानी की बात तो ये है कि आजादी के बाद भी अबतक इस गांव में किसी भी व्यक्ति के पास सरकारी नौकरी नहीं है.

इतना ही नहीं गांव में सिर्फ दो लोग ही हैं जिन्होंने उच्च शिक्षा के हिसाब से केवल 10 वीं पास की है. गाँव गन्ने का बेल्ट होने के बावजूद भी किसी व्यक्ति के पास एक भी टुकड़ा जमीन का नहीं है.

केवल सिर ढकने की है जगह

इस गांव के लोग बताते है कि नौकरी तो दूर उनके पास केवल सर छिपाने की जगह है. गांव की हालत इतनी खस्ता होने की वजह से यहां के पुरुष महिलाओं के साथ दिहाड़ी मजदूरी करने जाते हैं.

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यहाँ पर किसी भी (govt job) व्यक्ति सरकारी नौकरी तो क्या आम नौकरी (sarkari naukri) भी नहीं करता है. यह गाँव बिहार के पश्चिम चम्पारण जिले के बगहा 02 प्रखंड में आता है. इस गांव का नाम "हरका" है. इस गाँव में करीबन 800 लोग रहते हैं.

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दो लोग ही हैं 10 वीं पास

इस गांव के निवासी राजकुमार सहनी बताते हैं कि पूरे गांव में केवल 2 लोग ऐसे हैं जिन्होंने दसवीं तक की शिक्षा (sarkari naukri)
पूरी की है, और सहनी खुद उनमें से एक हैं. सहनी के अनुसार, हरका गांव ऐसा स्थान है जहां आजादी के 78 वर्षों बाद भी किसी ने सरकारी नौकरी नहीं पाई है.

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हालात इतने खराब हैं कि यहां के युवा, बुजुर्ग और महिलाएं सभी अपने परिवार का गुजारा करने के लिए मजदूरी करने पर मजबूर हैं.

सरकारी योजनाओं तक की जानकारी

चौंकाने वाली बात यह है कि यहां के लोगों को सरकारी योजनाओं की कोई जानकारी ही नहीं है. ग्रामीणों के अनुसार, यहाँ के लोग केवल रोजी-रोटी कमाने में ही व्यस्त हैं। इस कारण वे इससे आगे कुछ सोच ही नहीं पाते.

गांव के युवा, महिलाएं और बुजुर्ग सभी मजदूरी (sarkari job) करते हैं। लीलावती देवी बताती हैं कि उनके पति गोरखपुर में रिक्शा चलाते हैं. उनका बेटा, राजकुमार सहनी, गांव का दूसरा सबसे ज्यादा पढ़ा-लिखा युवा है.

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घर की खराब आर्थिक स्थिति को देखते हुए राजकुमार ने दसवीं के बाद पढ़ाई छोड़कर एक अस्थायी निजी नौकरी करने का निर्णय लिया. सोचने वाली बात यह है कि लीलावती भी गांव के बाहर जाकर दूसरों के घरों में सफाई (sarkari job) का काम करती हैं। गांव के हर परिवार की स्थिति कुछ ऐसी ही है.

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