Learn From Ram: राम दो अक्षरों से मिलकर बना है, जिसमें पूरे जीवन का सार समाया हुआ है। ‘रा’ का अर्थ है आभा और ‘म’ का अर्थ है मैं मेरा और मैं स्वयं। मतलब राम का अर्थ है मेरे भीतर प्रकाश, मेरे ह्रदय में प्रकाश। यही जीवन का सार है। प्रभु श्रीराम सनातन धर्म की रीढ़ है। इनका व्यक्तित्व और कृतित्व हमें अपने जीवन जीने की सही दिशा दिखाता है। राम नाम सिर्फ जपने मात्र नहीं है, बल्कि इस नाम को जीवन में आत्मसात करने की जरूरत है। प्रभु श्रीराम का पूरा जीवन ही हमारे लिये प्रेरणा है। आईये कुछ प्रसंगों से समझें कि कैसे हम अपने अंदर राम को अपनाकर अपने जीवन को सार्थक बना सकते हैं।
प्रभु श्रीराम के जीवन से हम यह सीख सकते हैं
1. हार कभी मत मानो
प्रसंग: माता सीता को रावण ने बंदी बना लिया था, जिसकी वजह से माता सीता की तलाश में श्रीराम को बहुत अधिक समय लगा था। कई मुश्किलें आईं, लेकिन उन्होंने कभी भी पीछे हटने या हार मानने के बारे में नहीं सोचा, यह उनकी अपने प्रेम की शक्ति और अपने लक्ष्यों के प्रति समर्पण था।
सीख: ठीक इसी तरह से हम जब अपने लिए कोई भी लक्ष्य बनाते है तो इसमें एक दिन, सप्ताह या साल भी लग सकते हैं। हमें कभी भी पीछे नहीं हटना है, बस अपने लक्ष्य की तरफ बढ़ते ही चले जाना है।
2. अहंकार कभी नहीं करना
प्रसंग: श्रीराम तीरंदाज में निपुण थे। उनको बड़े-दिव्य अस्त्रों और शास्त्रों का पूरा ज्ञान था, लेकिन उस सारी शक्ति और ज्ञान ने कभी भी उनके मार्ग में अहंकार नहीं डाला। जिसकी वजह से उनकी विनम्रता अद्वितीय थी। वो हमेशा विनय के ही मार्ग पर चलते रहे।
सीख: हमें अपने जीवन में हमेशा विनम्र रहना चाहिए। योग्यता और पद अहंकार को जन्म देता है, लेकिन असली सफल वही कहलाता है जो विनम्रता के साथ जीवन के लक्ष्यों की ओर बढ़ता है।
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3. स्थिति चाहे जैसी हो हमेशा शांत रहो
प्रसंग: श्रीराम ने अपने जीवनकाल में कई असुरी शक्तियों से लड़ाई लड़ी। उन्हें दर्दनाक अनुभव भी हुए हैं, लेकिन उन्होंने कभी भी अपना आपा नहीं खोया, शांत और विनम्र रहे। अपनी भावनाओं पर एक विशाल स्तर का नियंत्रण किया है।
सीख: स्थिति कैसी भी हो, कोशिश करें कि दिमाग को ठंडा रखें। आपके घबराने से संकट का समाधान नहीं होगा, अगर आप खुद को शांत रखना सीख जाते हो तो आप किसी भी समस्या का समाधान आसानी से निकाल सकते हो।
4. बड़ों का करें सम्मान
प्रसंग: प्रभु श्रीराम ने कभी भी अपने माता-पिता के फैसलों पर सवाल नहीं उठाया। भले ही इसके लिये उन्हें जीवन में कितने ही कष्ट ही क्यों न उठाने पड़े हो। पिता के कहने पर ही थाटाकी जैसे राक्षसों से लड़ें और सौतेली मां कैकई की इच्छा के कारण वनवास गए।
सीख: हो सकता है कि कई बार आपको अपने माता-पिता की बाते बुरी लगे। उन्हें मानने का मन नहीं करे। एक बात हमेशा याद रखे कि आपके माता-पिता आपका कभी भी बुरा नहीं चाहेंगे इसलिए उनकी हर हाल में इज्जत करे। उनकी बातों को मानें।
5. पहले से किसी को लेकर कोई सोच न बनाएं
प्रसंग: जब रावण के भाई विभीषण श्रीराम के पास आए तो श्रीराम ने पहले से ही उनको लेकर कोई सोच नहीं बनाई, जबकि वे रावण के भाई थे। विभीषण ने रावण वध में श्रीराम की सहायता की।
सीख: पहले से किसी को जज नहीं करें। इसे लेकर जल्दबाजी न करें। ऐसा न हो कि आप किसी को लेकर पहले से ही कोई सोच बना लो और बाद में फिर इसके लिये आपको पछताना पड़े।
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6. जीवन में दोस्तों का महत्व
प्रसंग: श्रीराम के लिये हनुमान भाई से बढ़कर थे। उन्होंने इसे बार-बार साबित भी किया। वहीं जब भरत श्रीराम को वन में लेने के लिये आ रहे थे तो युद्ध की आशंका देखते हुए केवट भरत के सामने खड़े हो गए थे। श्रीराम-केवट प्रसंग से हमें सच्ची मित्रता की सीख मिलती है।
सीख: दोस्तों का हमेशा साथ निभाएं। उनके बुरे वक्त में साथ खड़े रहें। जरूरी नहीं कि आपके सहपाठी या सहकर्मी ही आपके मित्र हों। आपका परिवार और भाई-बहन आपके जीवन में अब तक के सबसे अच्छे दोस्त होते हैं।
7. सबके साथ समान व्यवहार करें
प्रसंग: श्रीराम सभी के साथ समान व्यवहार किया, उन्होंने किसी तरह का भेदभाव नहीं किया। साबरी ने उन्हें पहले खुद चखकर बेर खिलाए। प्रभू श्रीराम ने बिना कुछ सोचे-समझे उन्हें खा लिया। वह हमेशा लोगों के प्रति दयालु और विनम्र थे।
सीख: हमें हमेशा सबके साथ समानता का व्यवहार करना चाहिए और हैसियत, उम्र या जाति के आधार पर भेदभाव नहीं करना चाहिए। सच्चा इंसान वही है जो जानता है कि हर कोई समान व्यवहार का हकदार है।
500 साल बाद मंदिर में रामलला की प्राण-प्रतिष्ठा
बता दें कि 500 साल के लंबे इंतजार के बाद आज भारत के प्राण यानी प्रभु श्रीराम की प्रतिष्ठा हो रही है। वर्ष 1526 में बाबर ने यहां मंदिर तोड़कर मस्जिद बना दी थी। अंग्रेजों ने 1859 में परिसर को बांटने का काम किया। 1885 में ये मामला पहली बार अदालत में पहुंचा। 1949 में बाबरी मस्जिद के भीतर रामलला की मूर्ति पाई गई। 1984 रामजन्मभूमि मुक्ति समिति का गठन हुआ। 1990 में बीजेपी के तत्कालीन अध्यक्ष लालकृष्ण आडवाणी ने सोमनाथ से अयोध्या तक रथ यात्रा निकाली। 1990 में अयोध्या में हजारों कारसेवक पहुंचे। वर्ष 2002 में विश्व हिंदू परिषद की तरफ से मंदिर निर्माण का ऐलान किया गया। 2017 में सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि इस विवाद को हिंदू-मुस्लिम पक्ष आपसी सहमति के साथ सुलझा सकते हैं। 2019 में अगस्त महीने तक जब दोनों पक्षों के बीच समझौता नहीं हुआ तो सुप्रीम कोर्ट में मामले की सुनवाई शुरू हुई। वर्ष 2019 में सुप्रीम कोर्ट ने 9 नवंबर को विवादित जगह को रामलला को सौंपने का आदेश सुनाया. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 5 अगस्त 2020 को अयोध्या में राम मंदिर की नींव रखी. इस तरह रामभक्तों को अब उम्मीद हो गई कि जल्द ही रामलला टेंट से निकलकर भव्य मंदिर में विराजमान होंगे और आज उनकी प्राण प्रतिष्ठा होने जा रही है।
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