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नई दिल्ली। ज्यादातर लोग वीरप्पन (Veerappan) को जानते होगें या उनके बारे में सुना होगा। वीरप्पन एक कुख्यात चंदन तस्कर और डाकू था। साउथ इंडिया में उसकी तूती बोलती थी। पुलिसवाले उसे पकड़ने से बचते थे। इस कुख्यात का आज जन्मदिन है। उसका जन्म 18 जनवरी 1952 को कर्नाटक के गांव गोपिनाथम में हुआ था। एक साधारण परिवार में जन्में कूज मुनिस्वामी वीरप्पन (Koose Munisamy Veerappan) कैसे एक कुख्यात तस्कर बन गया आज हम इसी के बारे में जानेंगे।
फॉरेस्ट विभाग ने स्मगलिंग के लिए उकसाया था
वीरप्पन का जन्म एक गरीब परिवार में हुआ था। उस वक्त कर्नाटक के जंगलो में तस्करी का खेल चरम पर था। फॉरेस्ट विभाग (Forest department) के मिलभगत से कई तस्कर पैसे बना रहे थे और इसका शेयर उन अफसरों तक भी जाता था। कहा जाता है कि वीरप्पन छोटी उम्र में ही इन तस्करों के संपर्क में आ गया और इसके बाद फॉरेस्ट विभाग के लोगों ने उसे स्मगलिंग के लिए उकसाना शुरू कर दिया।
10 साल की उम्र में किया था पहला अपराध
इस उकसावे का नतीजा ये रहा कि वीरप्पन ने मजह 10 साल की उम्र में ही एक तस्कर का कत्ल कर दिया। ये उसका पहला अपराध था। इस हत्या के बाद उसने पिछे मुड़कर कभी नहीं देखा। इसी साल 1962 में उसने फॉरेस्ट विभाग के तीन और लोगों को मार दिया। हालांकि अभी तक वो सुर्खियों में नहीं आया था। लोग उसे बस कर्नाटक के जंगलों में ही जानते थे। लेकिन 1987 में पहली बार उसका नाम तब सुर्खियों में आया जब उसने चिदंबरम नाम के एक फॉरेस्ट अफसर को अगवा कर लिया। इसके बाद राज्य सरकार ने वीरप्पन पर शिकंजा कसना शुरू कर दिया।
एक साथ 22 लोगों को उसने उड़ा दिया था
उसे पकड़ने के लिए पुलिस स्क्वॉड टीम का गठन किया गया और इसकी जिम्मेदारी दी गई लहीम शहीम गोपालकृष्ण को। गोपालकृष्ण काफी फिट अफसर थे। उनके फिटनेस के कारण लोग उन्हें रैम्बो कहकर बुलाते थे। गोपालकृष्ण वीरप्पन को पकड़ने के लिए पुरजोर कोशिश करने लगे। इससे वह परेशान हो गया और 9 अप्रैल 1993 को उसने एक बैनर लगाकर गोपालकृष्ण के खिलाफ भद्दी-भद्दी गालियां लिखी दी और उसने चैलेज किया की दम है तो आकर मझे पकड़े। गोपालकृष्ण बिना कुछ समझे बूझे वीरप्पन को पकड़ने के लिए उसी वक्त निकल गए। लेकिन जैसे ही उनकी टीम वीरप्पन के इलाके में पहुंची उसने पुरी टीम को ही उड़ा दिया। इस हमले में 22 लोग मारे गए थे।
हांथी दांत के लिए विख्यात था वीरप्पन
वीरप्पन उस वक्त चंदन की लकड़ी और हाथी दांत के तस्करी के लिए विख्यात था। उसने ना जाने कितने हाथियों को मारा था। सरकारी आंकड़े के अनुसार उसने 2 हजार से ज्यादा हाथियों को मारा था। साथ ही उसने कई पुलिसवालों को भी शहीद किया था। हालांकि जब उसने दो फोटोग्राफरों को अगवा किया, तो उन्होंने छुटने के बाद दुनिया को बताया था कि वीरप्पन हाथियों को लेकर भावुक है वो इतने हाथियों की हत्या नहीं कर सकता। वीरप्पन ने इन लोगों को बताया था कि हाथियों की हत्या में 20 से 25 गैंग काम करते हैं। लेकिन जितने भी हाथी मारे जाते हैं, पुलिस और फॉरेस्ट विभाग मिलकर इसका इल्जाम वीरप्पन पर मढ़ देती है।
सरकार ने पकड़ने के लिए 100 करोड़ किए थे खर्च
एक आंकड़े के अनुसार सरकार ने उसे पकड़ने के लिए करीब 100 करोड़ रूपये खर्च किए थे। पुलिस उसे कई बार पकड़ने की कोशिश की थी। लेकिन वो हर बार उनके चंगुल से बच निकलता था। आखिकार 18 अक्टूबर 2004 को एसटीएफ (STF) ने उसे एक एनकाउंटर में मार गिराया। जब उसका एनकाउंटर हुआ था तब वह मोतियाबिंद (cataracts) से पीड़ित था। पुलिस ने अपने लोगों को उसकी टीम में शामिल करवाया। इसके बाद उसे इलाज के लिए बहकाया गया। जब वह राजी हो गया तो उसे इलाज के लिए एंबुलेंस से ले जाया जाने लगा और फिर बीच रास्ते में ही उसका एनकाउंटर कर दिया गया। जब वो मारा गया तो लोगों को यकीन ही नहीं हो रहा था। लोग उसे जंगलों में रॉबिन हुड मानते थे। यही कारण है कि जब उसका पोस्टमार्टम हो रहा था तो अस्पताल के बाहर करीब 20 हजार लोग इक्कठा हो गए थे।