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Vandana Kataria: देश की 'हैट्रिक गर्ल', पिता के अंतिम दर्शन में शामिल नहीं हो पाईं थी ताकि पहले उनके सपने पूरे कर सकें

Vandana Kataria: देश की 'हैट्रिक गर्ल', पिता के अंतिम दर्शन में शामिल नहीं हो पाईं थी ताकि पहले उनके सपने पूरे कर सकें Vandana Kataria: The story of the country's 'hat-trick girl', could not attend the last darshan of the father so that he could fulfill his dreams first nkp

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Bansal Digital Desk
Vandana Kataria: देश की 'हैट्रिक गर्ल', पिता के अंतिम दर्शन में शामिल नहीं हो पाईं थी ताकि पहले उनके सपने पूरे कर सकें

नई दिल्ली। टोक्यो ओलंपिक (Tokyo Olympics) में भारतीय हॉकी टीम के साथ-साथ महिला हॉकी टीम भी धूम मचा रही है। शुक्रवार को महिला हॉकी टीम ने करो या मरो मैंच में दक्षिण अफ्रीका को 4-3 से हराकर ओलंपिक क्वार्टर फाइनल में प्रवेश की उम्मीदें कायम रखी हैं। इस मैच की हीरो रहीं हरिद्वार की रहने वाली वंदना कटारिया (Vandana Kataria)। वंदना ने इस मैच में एक के बाद एक तीन गोल कर टीम इंडिया को जीत दिलाई। ओलंपिक में हैट्रिक गोल करने वाली वंदना भारत की पहली महिला खिलाड़ी बन गई हैं। आइए जानते हैं कौन है ये हैट्रिक गर्ल वंदना कटारिया?

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परिवार के लोग उड़ाते थे मजाक

वंदना कटारिया हरिद्वार के रोशनाबाद की रहने वाली हैं। उनके पिता हरिद्वार भेल में कार्यरत थे। पिता की देखरेख में ही वंदना ने अपनी हॉकी की यात्रा शुरू की। वंदना ने जब हॉकी खेलना शुरू किया तो स्थानीय लोगों और परिवार के कुछ सदस्यों ने उनका मजाक उड़ाया। लेकिन उनके पिता नाहर सिंह और मां सोरन देवी ने इस बात को नजरअंदाज कर अपनी बेटी के सपने को साकार करना शुरू कर दिया।

ओलंपिक के कारण पिता के अंतिम दर्शन में नहीं गई

बतादें कि हाल ही में 30 मई को हृदयगति रूकने से वंदना के पिता का निधन हो गया था। पिता के मौत के बाद वंदना उनके अंतिम दर्शन में नहीं जा पाई थीं। क्योंकि उस समय वंदना बंगलुरू में टोक्यो ओलिंपिक की तैयारियों में जुटी थी। दक्षिण अफ्रीका के खिलाफ हुए मैच में शानदार प्रदर्शन करने के बाद वंदना ने पिता को याद करते हुए कहा कि उनका सपना ओलिंपिक में मेडल जीतकर पिता को श्रद्धांजलि देना है।

पिता की इच्छा थी कि बेटी गोल्ड जीते

वंदना के पिता की इच्छा थी कि बेटी ओलंपिक में स्वर्ण पदक विजेता टीम का हिस्सा बनें। इस कारण से वो अंतिम विदाई में घर जाने से अच्छा अपने पिता के सपने को साकार करने के बारे में सोचा। हालांकि, घर न जाने के फैसले पर कायम रहना उनके के लिए आसान नहीं था। ऐसे में उनके भाई पंकज और मां सोरण ने संबल प्रदान किया। मां सोरण देवी ने वंदना से कहा कि जिस काम के लिए मेहनत कर रही हो पहले उसे पूरा करो, पिता का आशीर्वाद सदैव तुम्हारे साथ रहेगा।

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पैसों की कमी के कारण घर नहीं जा पाती थी

वंदना ने प्रोफेशनल तौर पर मेरठ से हॉकी शुरूआत की। इसके बाद वह लखनऊ स्पोट्स हॉस्टल पहुंची। लेकिन घर की आर्थिक स्थिति ठीक ने होने के कारण उन्हें अच्छी किट और हॉकी स्टिक खरीदने में दिक्कत होती थी। वंदना के सामने कई मौके ऐसे भी आए जब हॉस्टल की छुट्टीयों में साथी खिलाड़ी घर चले जाते थे, लेकिन वो पैसों की कमी के कारण घर नहीं जा पाती थीं। ऐसे में उनके कोच मदद के लिए आगे आते थे।

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