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नई दिल्ली। अपने गजल से करोड़ों लोगों के दिलों पर राज करने वाले जगजीत सिंह का आज जन्मदिवस है। आज भी दुनियाभर में उनका नाम सम्मान के साथ लिया जाता है। उनका जन्म 8 फरवरी, 1941 को बीकानेर में हुआ था। बचपन से ही जगजीत को संगीत में गहरी दिलचस्पी थी। उनसे जुड़ी कई ऐसी बेशुमार यादें हैं जिसे लोग आज भी याद करते हैं।
कभी-कभी बिना पैसे दिए चुपचाप निकल जाते थे
कॉलेज के दिनों में हम सब कभी ना कभी उधार की चाय या कॉफी जरूर पीते हैं। जगजीत सिंह भी जब जालंधर के डीएवी कॉलेज में पढ़ते थे तब वे एक कॉफी हाउस में अक्सर दोस्तों के साथ जाया करते थे। वहां बैठकर काफी का लुत्फ उठाते और साथ ही गीतों और गजलों का भी दौर चलता। कॉफी हाउस से निकलते वक्त जगजीत कभी पेमेंट कर देते तो कभी मौका देखकर चुपचाप निकल जाते थे।
उधारी नोट कर लेते थे संतोख सिंह
तब काफी हाउस के मालिक हुआ करते थे संतोख सिंह। उन्हें जगजीत सिंह की गजलें काफी पसंद आती थीं। इसलिए जगजीत जब बिना पैसे दिए चले जाते, तो वो उन्हें कभी नहीं टोकते थे। बस अपनी डायरी में उधारी को नोट कर लते थे। लेकिन जब जगजीत सिंह अपनी गजलों की वजह से मशहूर हो गए और अपनी पुरानी यादों को ताजा करने के लिए जालंधर के उस कॉफी हाउस पर पहुंचे।
जगजीत को लगा था कि संतोख सिंह को कुछ नहीं पता
कॉफी पीने के बाद उन्होंने संतोख सिंह से कहा- मुझे आपके कुछ पुराने पैसे भी चुकाने हैं। उन्हें लगा कि होटल मालिक को उनके पुराने कारनामों का पता नहीं होगा। इसलिए उन्होंने कहा कि शायद आपको पता भी नहीं होगा, मैं कई बार कॉफी पीकर आपके यहां से बिना पैसे दिए चला जाता था। इसपर संतोख सिंह ने मुस्कुराते हुए कहा, मुझे सब पता है।
डायरी देखकर हैरान हो गए जगजीत सिंह
उन्होंने डायरी निकाली और जगजीत सिंह के सामने रख दिया। उसमें कुल 18 कॉफी के हिसाब लिखे हुए थे। इसपर जगजीत सिंह ने हैरान होकर उनसे पूछा कि जब आपको पता था, तो फिर आपने मुझसे कभी पैसे क्यों नहीं मांगे। उन्होंने पैसे देने के लिए जेब में हाथ डाला। लेकिन तभी संतोख सिंह ने उनका हाथ पकड़ लिया और कहा कि जितने की आपने कॉफी पी थी, उतने की हमने भी गाने का लुत्फ उठाया है।
पिता चाहते थे इंजीनियर या आइएएस बनाना
कॉलेज के दिनों से जुड़ा एक किस्सा और है। दरअसल, उनके पिता ने उन्हें इंजीनियर या आइएएस बनाना चाहते थे। यही कारण है कि उन्हें ग्रेजुएशन की पढ़ाई के लिए जालंधर भेजा गया था। लेकिन जगजीत को किताबों से ज्यादा संगीत में मन लगता था। उन्होंने अपनी पढ़ाई बीच में छोड़कर सेनिया घराने के उस्ताद जमाल खान और पंडित छगनलाल शर्मा से शास्त्रीय संगीत में प्रशिक्षण लेने लगे।