नई दिल्ली। Chawal Price Hike: देश के प्रमुख खाद्यान्न चावल के निर्यात को लेकर केंद्र सरकार ने एक बड़ा कदम उठाया है। सरकार ने उबले हुए चावल के एक्सपोर्ट (Rice Export) पर एक्सपोर्ट ड्यूटी बढ़ा कर 20 प्रतिशत कर दिया है। इस फैसले को तुरंत प्रभाव से लागू भी कर दिया गया है।
सरकार ने पहले ही गैर-बासमती चावल (Non- White Basmati Rice) और प्रीमियम बासमती चावल (Premium Basmati Rice) की आड़ में सफेद गैर-बासमती चावल के अवैध निर्यात को रोकने के लिए 1200 डॉलर प्रति टन से कम कीमत के बासमती चावल के निर्यात पर रोक लगा रखी है।
सबसे बड़ा अनाज निर्यातक है भारत
भारत दुनिया का सबसे बड़ा अनाज निर्यातक देश है। लेकिन देश के अन्दर बढ़ती कीमतों पर रोक लगाने के लिए सरकार ने घरेलू मार्केट पर पहले कई अनाजों के निर्यात पर रोक लगा दी। इसमें चावल सबसे प्रमुख है।
वर्तमान में की बासमती, गैर-बासमती सफ़ेद चावल सहित उबले यानी उसना चावल कीमत पिछले 12 साल के उच्चतम स्तर है। गौरतलब है कि यह बढ़ोतरी भारत के चावल एक्सपोर्ट पर पाबंदी लगाने के बाद आया है।
80 फीसदी बढ़ी चावल शिपमेंट की लागत
भारत सरकार ने पिछले महीने की 20 जुलाई को गैर-बासमती सफ़ेद चावल के निर्यात पर पूर्ण पाबंदी लगा दी थी। जिसके बाद अमेरिका, यूरोप सहित अन्य देशों में चावल की अंतर्राष्ट्रीय कीमत 12 साल के उच्च स्तर पर पहुंच गयी।
इसका कारण राइस शिपमेंट का लागत का बढ़ जाना था, जो कि 80 फीसदी तक पहुंच गया। अब सरकार ने उबले हुए चावल पर 20 फीसदी की एक्सपोर्ट ड्यूटी आयद की है, जिससे चावल की कीमत में और इजाफा होने की संभावना जताई जा रही है।
इन देशों को होता है बासमती चावल का एक्सपोर्ट
एक आंकड़े के अनुसार, पूरी दुनिया में लगभग कुल 4 मिलियन टन बासमती राइस का इम्पोर्ट-एक्सपोर्ट होता है, जिसमें भारत की भागीदारी लगभग 40 फीसदी है।
भारत से बासमती राइस का एक्सपोर्ट मुख्य तौर पर सउदी अरब, यूएई, अमेरिका, इरान, इराक, ब्रिटेन, ऑस्ट्रेलिया आदि देशों में होता है।
ये देश भी लगा सकते हैं चावल निर्यात पर रोक
भारत की तरह पूर्वी एशिया के कुछ देशों द्वारा चावल के वैश्विक निर्यात पर रोक लगाने पर विचार किया जा रहा है। संभावना जताई जा रही है कि चावल का पांचवां सबसे बड़ा चावल निर्यातक और भारत का पड़ोसी देश म्यांमार राइस एक्सपोर्ट पर प्रतिबंध लगा सकता है।
थाईलैंड भी चावल निर्यात को हतोत्साहित करने पर विचार कर रहा है। केवल यही नहीं, इस देश ने अपने किसानों को पानी बचाने के लिए धान की खेती कम करने की सलाह भी दी है।
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