Train Coach Door: भारतीय रेल का सफर तो हर कोई प्राय: करता ही है सीट मिल जाए गनीमत होती है लेकिन अक्सर लोग ट्रेन की बोगियों मे दरवाजे पर यात्रा करना भी सुखद समझते है। क्या आपने गौर किया है कभी ट्रेन की बोगियों के ये दरवाजे अक्सर बंद क्यों रहते है और अगर किसी यात्री को बाहर से खोलकर ट्रेन में चढ़ना है तो कैसे खोल सकते है। कभी- कभी ट्रेन की बोगियों का यह दरवाजा पीटने के बाद भी खुलता नहीं है, आइए जानते है क्या है इसका कारण।
दो तरीकों से खुलता है ट्रेन में दरवाजा
यहां पर ट्रेन के कोच में दरवाजों के लिए बंद औऱ खोलने के लिए दो तरीके होते है जो रेल यात्री को जानना जरूरी है।
डोर हैंडल :
इसकी बात की जाए तो, यह दरवाजे में नीचे के तरफ ही होता है, इससे दरवाजे को बाहर या अंदर दोनों तरफ से खोला जा सकता है. दरवाजे में यह दोनों ओर होता है. इसीलिए दरवाजा अगर केवल डोर हैंडल से बंद किया गया है तो आप बाहर से भी इसे आसानी से खोल सकते हैं।
डोर लैच :
इसकी बात की जाए तो, यह लॉक दरवाजे में सिर्फ अंदर की तरफ ही होता है. इसे अंदर से ही लगाया जाता है और सिर्फ अंदर से ही इसे खोला जा सकता है. इस लॉक सिस्टम में लोहे की एक मजबूत पट्टी एक खाँचे में जा कर लैच बैठ जाती है. जिसे अंदर से ही कोई खोल सकता है. ऐसी स्थिति में आप दरवाजे को बाहर से नहीं खोल सकते हैं।
जानें ट्रेन में क्यों होते है दो-दो लॉक
आपको जानकारी न हो तो बताते चलें कि, ट्रेन के कोच में दो-दो लॉक होते है इसका क्या होता है फैक्ट, दरअसल इसका कारण यह है कि रेल के डब्बे का दरवाजा लगभग 1 क्विंटल (100 किलो) से भी ज्यादा भारी होता है और बंद रहने की अवस्था मे इस पर काफी झटके लगते हैं. इन्हे सहने के लिए वजनी भारी भरकम डोर हैन्डल का होना जरूरी है. यदि दरवाजे में केवल डोर लैच लगाया जाए तो वह सफर के दौरान लगने वाले ये झटके सह नही आएगा और टेढ़ा हो जाएगा। इसके अलावा दो लॉक होने की वजह आम तौर पर डोर लैच और डोर हैंडल दोनों का प्रयोग एक साथ ही किया जाता है, यहां पर इस स्थिति में बंद दरवाज़े को बाहर से नही खोला नहीं जा सकता है. एसी कोच में यात्रियों की सुविधा के लिए कोच अटेंडेंट होते हैं. जरूरत पड़ने पर ये दरवाजे खोल और बंद कर देते हैं. फिर भी अगर कभी आपके साथ ऐसा होता है तो इसकी जानकारी स्टेशन पर देना चाहिए।