हमारे इतिहास का भयानक कांड भोपाल गैस त्रासदी जिसने कई मासूमों को मौत की नींद सुला दिया, आज भी लोगों के दिलों मे जख्म बना हुआ है। वह काली रात जिसको याद करके आज भी डर महसुस होता है। इसी हादसे के एक पीड़ित अब्दुल जब्बार जिसने अपने माता पिता को खो दिया और इस हादसे का असर उनपर भी पड़ा जिसकी वजह से उनके फेफड़ों और आंखों पर भी गंभीर असर हुआ था। जब्बार 'भोपाल गैस पीड़ित महिला उद्योग संगठन' के संयोजक थे। जब्बार द्वारा बनाया गया गैर सरकारी'भोपाल संगठन गैस पीड़ित महिला उद्योग संगठन’ लगभग तीन दशक से भोपाल गैस कांड के जीवित बचे लोगों के हित में काम कर रहा है।
आपको बता दें कि 2 दिसंबर 1984 की रात भोपाल की यूनियन कार्बाइड की फैक्ट्री से जहरीली मिथाइल आइसोसाएनेट गैस लीक हुई जिसने हजारों लोगों की जान ले ली थी। तबाही ऐसी थी कि हवा जिस ओर भी बहती थी लोगों की मौत होती चली जाती थी। कुछ ही घंटों में वहां तीन हजार लोगों की मौत हो गई। लोगों का मानना है कि वहां 10 हजार के करीब लोग मारे गए थे। इस त्रासदी का प्रभाव अब भी देखा जा सकता है। इस दर्दनाक हादसे के बाद अब्दुल जब्बार आगे आए और पीड़ितों की आवाज बन गए। उन्होनें अपने एनजीओ के माध्यम से पीड़ितों के परिवार की मदद करने लगे और पीड़ितो की बात को सरकार तक पहुंचाने का भी काम करने लगे।
दूसरों के हक़ के लिए संघर्ष में अपनी ज़िंदगी का सुख-चैन भूलने वाले अब्दुल जब्बार ने कभी अपनी सेहत की भी परवाह नहीं की। ज़िंदगी के इसी संघर्ष के बीच उनके बाएं पैर में एक चोट लगी, जिसने गैंगरीन का रूप ले लिया और अपने सीमित साधनों के कारण वो इसका इलाज कराते कराते आर्थिक तंगी में पहुंच गए थे। कुछ सामाजिक कार्यकर्ताओं और मित्रों ने उनके इलाज के लिए फंड जुटाने की सोशल मीडिया पर मुहिम शुरू की. उसके बाद सरकार जागी और अब्दुल जब्बार के इलाज का एलान किया लेकिन तब तक बहुत देर हो चुकी थी और 14 नवंबर को जब्बार ने दुनिया को अलविदा कह दिया।