Rescue Operation Rahul : छत्तीसगढ़ के जांजगीर-चांपा जिले में बोरवेल में फंसे राहुल (Rescue Operation Rahul) को 106 घंटे चले रेस्क्यू ऑपरेशन के बाद मंगलवार की देर रात सुरक्षित निकाल लिया गया। रेस्क्यू के बाद राहुल (Rescue Operation Rahul) को तुरंत बिलासपुर के अपोलो हॉस्पिटल भेजा गया। राहुल शुक्रवार को दोपहर करीब 2 बजे 60 फीट गहरे बोरवेल में गिर गया था। राहुल (Rescue Operation Rahul) को बचाने के लिए फोर्स ने धरती को खोदा और चट्टानों को चीरकर बिना थके रूके रेस्क्यू ऑपरेशन (Rescue Operation Rahul) को अंजाम दिया। इस ऑपरेशन को देश का सबसे बड़ा रेस्क्यू ऑपरेशन बताया जा रहा है। बोरबेल से जैसे ही राहुल (Rescue Operation Rahul) को सेना बहार निकालकर लाई वैसे ही लोगों ने तालियों के साथ उसका स्वागत किया। वही जवानों की मेहनत को लोगों ने सलाम किया।
फोर्स की हो रही चाराें ओर तारीफ
राहुल को 106 घंटे की कड़ी मेहनत के बाद फोर्स (Rescue Operation Rahul) ने उसे नया जीवन दिया है। फोर्स की हर तरफ तारीफ हो रही है। लेकिन क्या आपको पता है कि ऐसे हादसों के दौरान फोर्स कैसे रेस्क्यू ऑपरेशन (Rescue Operation Rahul) को अंजाम देती है। कैसे बोरवेल में फंसे बच्चों को पाताल से खोदकर बाहर निकालती है। फोर्स को ऐसे ऑपरेशनों को अंजाम देने के लिए किन-किन चीजों की जरूरत होती है। रेस्क्यू ऑपरेशन (Rescue Operation Rahul) के दौरान कौन-कौन से अधिकारी मौजूद रहते है। क्या आपने कभी सोचा है।
ऐस चलाया जाता है रेस्क्यू ऑपरेशन
दरअसल, जब भी कोई बच्चा बोरवेल या किसी छोटे गड्डों में गिर जाते है तो सबसे पहले स्थानीय प्रशासन उसे निकालने का प्रयास करता है। स्थानीय प्रशासन में कलेक्टर, एसपी, पुलिस फोर्स, एनडीआरएफ, एसडीआरएफ की टीम, नगर निगम के कर्मचारी रेस्क्यू ऑपरेशन (Rescue Operation) चलाते है। अक्सर कभी-कभी ऐसी घटनाओं में देखा जाता है। कि बच्चा बोरवेल या किसी गहरे गड्डे में अधिक नीचे तक चलते जाते है। तो ऐसे में बच्चों को बाहर निकालना मुश्किल होता है। जब स्थानीय प्रशासन को बच्चें को बाहर निकालने में परेशानी होती है तो प्रशासन फोर्स (Rescue Operation) को बुलाता है।
फोर्स करती है ऐसे काम
घटना स्थल पर फोर्स सबसे पहले उस जगह को खाली करती है, जहां बोरवेल होता है। बोरवेल वाली जगह के आसपास को बेरीकैट से कवर कर दिया जाता है। इसके बाद सबसे पहले बोरबेल में फंसे बच्चे की स्थिति को जानने के लिए कैमरे पहुंचाए जाते है। फोर्स मौके पर एक सेटप भी तैयार करता है, जहां से बच्चे को कैमरे के माध्यम से देखा जाता है और बच्चे से बात करने की कोशिश की जाती है। इसके बाद बच्चे को गड्डे में ऑक्सीजन पहुंचाने की व्यवस्था की जाती है। साथ ही बच्चे को खाने के लिए कुछ भेजा भी जाता है।
बनाया जाता है टनल
फोर्स के जवान गड्डे में कितना पानी है उसके हिसाब से पानी के स्तर को कम करने का प्रयास करते है। बोरवेल में फंसे बच्चे के पास पानी का लेबल कंट्रोल करने के लिए आसपास के बोर को चलाया जाता है। इसके साथ ही घटना स्थल के पास अगर कोई डेम या स्टापडेम है तो उसके पानी को छोड़ दिया जाता है, जाकि गड्डे के पानी के स्तर को कम किया जा सके। इसके बाद ड्रिलिंग मशीन द्वारा सुरंग वाले स्थान पर होल किया जाता है। अगर गड्डे के आसपास पत्थर की चट्टान होती है तो उसे काटा जाता है। ड्रिल कर होल बनाया जाता है। इसके लिए ड्रिलिंग मशीन द्वारा पत्थर और चट्टान को काट कर सुरंग बनाई जाती है। वही कुछ कर्मचारियों द्वारा मलबे को बाहर निकालने के लिए काम पर लगाया जाता है। सुरंग बोरवेल के कुछ ही दूरी पर से बनाई जाती है। सुरंग को इस तरीके से बनाया जाता है जाकि बच्चे पर मलवा न गिरे।
इन मशीनों का किया जाता है उपयोग
रेस्क्यू ऑपरेशन (Rescue Operation) के दौरान कई मशीनों का उपयोग किया जाता है। जैसे कि कैमरे, ऑक्सीजन सिलेंडर, ड्रिलिंग मशीन, कटर मशीन, जेसीबी, ट्रेक्टर ट्रॉली, खुदाई करने वाले उपकरण जैसी मशीनों का उपयोग किया जाता है।