A-to-Z of Ayodhya Ram Mandir: राम मंदिर अयोध्या की धरती पर प्राण प्रतिष्ठा के लिए तैयार है। ये ऐसा दिन है जिसका सदियों से इंतजार किया जा रहा है। कई दशकों की कानूनी लड़ाई के बाद राम मंदिर बना है और अब प्राण प्रतिष्ठा का समय आ गया है। देशभर से हजारों लोग, साधु-संत और धर्माचार्य अयोध्या पहुंच रहे हैं।
आज हम आपको अयोध्या के रामलला की यात्रा पर चलने का निमंत्रण देते हैं, जिसमें आपको मुगल काल के इतिहास से लेकर राम मंदिर बनने की पूरी कहानी बताएंगे। इसके अलावा राम मंदिर की हर एक खासियत, कितना भव्य है, कैसे तैयार हुआ, क्या खास है।
अयोध्या का इतिहास
आइये अब आपको इतिहास में लेकर चलते हैं। किस्सा 1526 से शुरू होता है। ये वो साल था जब मुगल शासक बाबर भारत आया। दो साल बाद बाबर के सूबेदार मीरबाकी ने अयोध्या में एक मस्जिद बनवाई।
यह मस्जिद उसी जगह बनी जहां भगवान राम का जन्म हुआ था। बाबर के सम्मान में मीर बाकी ने इस मस्जिद का नाम बाबरी मस्जिद दिया। ये वो दौर था जब मुगल शासन पूरे देश में फैल रहा था।
मुगलों और नवाबों के शासन के दौरान 1528 से 1853 तक इस मामले में हिंदू बहुत मुखर नहीं हो पाए। 19वीं सदी में मुगलों और नवाबों का शासन कमजोर पड़ने लगा। अंग्रेज हुकूमत प्रभावी हो चुकी थी।
इस दौर में ही हिंदुओं ने यह मामला उठाया और कहा कि भगवान राम के जन्मस्थान मंदिर को तोड़कर मस्जिद बना ली गई। इसके बाद से रामलला के जन्मस्थल को वापस पाने की लड़ाई शुरू हुई।
बाबरी मस्जिद बनने के 330 साल बाद शुरू हुई पहली FIR
मीरबाकी के मस्जिद बनाने के 330 साल बाद 1858 में लड़ाई कानूनी हो गई, जब पहली बार परिसर में हवन, पूजन करने पर एक एफआईआर हुई। अयोध्या रिविजिटेड किताब के मुताबिक एक दिसंबर 1858 को अवध के थानेदार शीतल दुबे ने अपनी रिपोर्ट में बताया कि परिसर में चबूतरा बना है।
ये पहला कानूनी दस्तावेज है जिसमें परिसर के अंदर राम के प्रतीक होने के प्रमाण हैं। इसके बाद तारों की एक बाड़ खड़ी कर विवादित भूमि के आंतरिक और बाहरी परिसर में मुस्लिमों और हिंदुओं को अलग-अलग पूजा और नमाज की इजाजत दी गई।
गिराया गया बाबरी मस्जिद का विवादित ढांचा
विश्व हिंदू परिषद ने विवादित जमीन पर मस्जिद की जगह राम मंदिर बनाने का आंदोलन पहले ही शुरू कर दिया था। 90 के दशक में राम मंदिर का मुद्दा ही राजनेताओं के लिए सर्वोपरि था। 1990 में लाल कृष्ण आडवाणी ने मंदिर निर्माण के लिए रथयात्रा निकाली।
ये आक्रोश इतना ज्यादा बढ़ गया था कि 1992 में वीएचपी समेत तमाम हिंदू संगठनों ने मिलकर विवादित ढांचा गिरा दिया।
इसके बाद देशभर में सांप्रदायिक दंगे भड़क गए। दंगों में 2000 से ज्यादा लोग मारे गए। केस दर्ज हुआ और 49 लोग आरोपी बनाए गए। लालकृष्ण आडवाणी, उमा भारती, मुरली मनोहर जोशी, कल्याण सिंह, चंपत राय, कमलेश त्रिपाठी समेत तमाम बीजेपी और विहिप नेताओं को आरोपी बनाया गया।
28 साल बाद कोर्ट ने सबूत के अभाव में सभी आरोपियों को बरी कर दिया। फैसले के वक्त 17 आरोपियों का निधन हो गया था।
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आजादी के बाद तेज हुई मुहिम
एक ओर जहां देशभर में अंग्रेजों के खिलाफ आंदोलन चलाकर आजादी लेने की मुहिम जारी रही, वहीं दूसरी ओर राम जन्मभूमि की लड़ाई भी जारी रही। देश के आजाद होने के दो साल बाद 22 दिसंबर 1949 को ढांचे के भीतर गुंबद के नीचे मूर्तियों का प्रकटीकरण हुआ।
आजादी के बाद पहला मुकदमा हिंदू महासभा के सदस्य गोपाल सिंह विशारद ने 16 जनवरी, 1950 को सिविल जज, फैजाबाद की अदालत में दायर किया। विशारद ने ढांचे के मुख्य गुंबद के नीचे स्थित भगवान की प्रतिमाओं की पूजा-अर्चना की मांग की।
करीब 11 महीने बाद 5 दिसंबर 1950 को ऐसी ही मांग करते हुए महंत रामचंद्र परमहंस ने सिविल जज के यहां मुकदमा दाखिल किया। मुकदमे में दूसरे पक्ष को संबंधित स्थल पर पूजा-अर्चना में बाधा डालने से रोकने की मांग रखी गई।
सुप्रीम फैसले ने साफ किया मंदिर निर्माण का रास्ता
6 अगस्त 2019 को सर्वोच्च न्यायालय ने प्रतिदिन सुनवाई शुरू की। 16 अक्तूबर 2019 को सर्वोच्च न्यायालय में सुनवाई पूरी हुआ और कोर्ट ने फैसला सुरक्षित रख लिया। इससे पहले 40 दिन तक लगातार सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई हुई।
9 नवंबर 2019 को 134 साल से चली आ रही लड़ाई में अब वक्त था अंतिम फैसले का। 9 नवंबर 2019 को सर्वोच्च न्यायालय ने संबंधित स्थल को श्रीराम जन्मभूमि माना और 2। 77 एकड़ भूमि रामलला के स्वामित्व की मानी।
वहीं, निर्मोही अखाड़ा और सुन्नी वक्फ बोर्ड के दावों को खारिज कर दिया गया। इसके साथ ही कोर्ट ने निर्देश दिया कि मंदिर निर्माण के लिए केंद्र सरकार तीन महीने में ट्रस्ट बनाए और ट्रस्ट निर्मोही अखाड़े के एक प्रतिनिधि को शामिल करे।
इसके अलावा यह भी आदेश दिया कि उत्तर प्रदेश की सरकार मुस्लिम पक्ष को वैकल्पिक रूप से मस्जिद बनाने के लिए 5 एकड़ भूमि किसी उपयुक्त स्थान पर उपलब्ध कराए।
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2020 में आधारशिला, अब प्राण प्रतिष्ठा की बारी
इसी के साथ दशकों से चली आ रही लंबी कानूनी लड़ाई समाप्त हो गई। अब बारी थी निर्माण की 5 फरवरी 2020 को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अयोध्या में मंदिर निर्माण के लिए राम जन्मभूमि तीर्थ क्षेत्र ट्रस्ट की घोषणा की।
ठीक छह महीने बाद 5 अगस्त 2020 को अयोध्या में राम मंदिर की आधारशिला रखी गई, जिसमें पीएम मोदी शामिल हुए। अब 22 जनवरी 2024 को मंदिर में भगवान राम की प्राण प्रतिष्ठा होगी जिसके बाद मंदिर लोगों के लिए खुल जाएगा।
प्राण प्रतिष्ठा कैसे होगी?
18 जनवरी को रामलला की मूर्ति को गर्भगृह में स्थापित कर दिया गया है। 22 जनवरी को दोपहर 12 बजकर 20 मिनट पर रामलला की प्राण प्रतिष्ठा की जाएगी। विग्रह की आंखों से पट्टी हटायी जाएगी और उन्हें दर्पण दिखाया जाएगा। मंदिर के गर्भगृह में भगवान राम की मूर्ति उनके बाल रूप की है।
प्राण प्रतिष्ठा समारोह में अनुष्ठान की सभी प्रक्रियाओं को देशभर के 121 आचार्य संपन्न करेंगे। इस दौरान प्रधानमंत्री मोदी, मोहन भागवत, यूपी राज्यपाल आनंदीबेन पटेल, सीएम योगी आदित्यानाथ और अन्य गणमान्य भी उपस्थित रहेंगे।
प्राण प्रतिष्ठा की पूजा के लिए 9 हवन कुंड और 2 मंडप तैयार किए गए हैं। आठ दिशाओं के लिए आठ हवन कुंड बनाए गए। एक हवन कुंड आचार्य के लिए बनाया गया है। हवन कुंड बनाने के लिए ईंट, बालू, मिट्टी, गोबर, पंचगव्य और सीमेंट का इस्तेमाल किया गया है। आकार, लंबाई, चौड़ाई, ऊंचाई और गहराई का खास ध्यान रखा गया है।
मुख्य मंदिर के सामने पूजा के लिए 45-45 हाथ के 2 मंडप बनाए गए हैं। एक मंडप में भगवान श्रीगणेश और श्रीराम जी के पूजन से लेकर समस्त पूजन कार्य होंगे। दूसरे मंडप में श्रीराम जी के विग्रह से जुड़े संस्कार होंगे।
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कैसे दिखेंगे रामलला?
गर्भगृह में स्थापित हुए 5 वर्षीय बाल रामलला की मूर्ति अद्भुत होगी। ये श्यामल रंग के पत्थर से तैयार की गई है। रामचरितमानस और वाल्मीकि रामायण में जिस तरह से बाल रामलला का वर्णन किया गया है ठीक वैसा ही स्वरूप होगा। धनुष-बाण मूर्ति का हिस्सा नहीं होंगे।
मूर्ति अत्यंत जीवंत और मन को भा लेने वाली होगी। ऐसी मूर्ति जिसे एकटक देखने के बाद भी आंखें तृप्त होने के बजाय प्यासी ही रहेंगी। आंखें नीलकमल जैसी, चेहरा चांद जैसा, लंबे बाल, होठों पर प्यारी मुस्कान।
मूर्ति का वजन करीब डेढ़ टन है। 51 इंच ऊंची है। खास बात ये है कि मूर्ति को जल या दूध से स्नान कराने पर पत्थर का उस जल और दूध पर कोई प्रभाव नहीं पड़ना चाहिए। यानी कि वो जल और दूध पीने योग्य होगा, मानवीय शरीर पर कोई दुष्परिणाम नहीं होगा।
किस शैली से तैयार किया गया राम मंदिर
राम मंदिर का डिजाइन गुजरात की सोमपुरा फैमिली ने तैयार किया है और मंदिर का पूरा नक्शा परंपरागत नागर शैली पर आधारित है। नागर शैली वाले अधिकतर मंदिरों का निर्माण एक पत्थर के चबूतरे पर किया जाता है। ऊपर तक जाने के लिए सीढ़ियां होती हैं। गर्भगृह हमेशा सबसे ऊंचे टावर के नीचे स्थित होता है। चौकोर आधारों वाले सरल शिखर होते हैं।
भारत में नागर शैली में बनाए गए कुछ खास मंदिर- कोणार्क का सूर्य मंदिर, गुजरात में सूर्य मंदिर, ओसियां मंदिर, खजुराहो का कंदरिया महादेव मंदिर, भुवनेश्वर का लिंगराज मंदिर, पुरी का जगन्नाथ मंदिर।
श्रीराम जन्मभूमि तीर्थक्षेत्र ट्रस्ट की क्या है भूमिका
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 5 फरवरी 2020 को लोकसभा में राम मंदिर के लिए ट्रस्ट के नाम की घोषणा की थी जिसका नाम ‘श्री रामजन्मभूमि तीर्थ क्षेत्र’ रखा गया। इस ट्रस्ट में कुल 15 सदस्य हैं। मंदिर के निर्माण और प्रशासनिक काम की देखरेख करना इसी ट्रस्ट का है।
ट्रस्ट के सदस्यों में पद्मश्री ऐडवोकेट के परासरण, कामेश्वर चौपाल, स्वामी वासुदेवानंद सरस्वती, स्वामी विश्वप्रशत्रतीर्थ, युगपुरुष परमानंद गिरी, महंत दिनेंद्र दास जैसे नाम प्रमुख हैं।
श्रद्धालुओं की सुविधाओं-सुरक्षा का ध्यान रखना, भीड़ नियंत्रण करना, बजट का प्रबंधन, पूजा-पाठ, अनुष्ठान और धार्मिक आयोजन करना सब ट्रस्ट का काम है। इन सब कामों में सरकार का कोई हस्तक्षेप नहीं होगा।
ट्रस्ट को दान में अब तक कितना पैसा मिला
राम मंदिर ट्रस्ट को देश विदेश से करोड़ों रुपये का दान मिला है। शुरुआत में ट्रस्ट का लक्ष्य 11 करोड़ लोगों से 900 करोड़ रुपये का चंदा जुटाना था। मगर, मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार अब तक 5000 करोड़ रुपये से ज्यादा का दान मिल चुका है।
श्रीराम जन्मभूमि तीर्थ क्षेत्र ने मार्च 2023 में बताया था कि उनके तीन बैंक खातों में 3000 करोड़ रुपया आ चुका था। बताया जा रहा है कई भक्तों ने सोने के सिक्के और बिस्किट तक दान दिए हैं। रिपोर्ट के अनुसार, राम मंदिर बनने की अनुमानित लागत करीब 1800 करोड़ है।
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पहले से कितनी बदली अयोध्या?
अयोध्या में चारों ओर विकास ही विकास है। यूपी सरकार ने अयोध्या को विश्व स्तरीय शहर बनाने के लिए 30 हजार करोड़ रुपये का बजट रखा है। यूपी सरकार का उद्देश्य अयोध्या को भारत की सांस्कृतिक राजधानी में बदलना है। ज्यादातर प्रस्तावित परियोजनाओं 2024 में पूरी हो रही हैं।
रामनगरी में विकास कार्यों की फेहरिस्त बहुत लंबी है। इनमें से अयोध्या धाम रेलवे स्टेशन और अंतरराष्ट्रीय हवाई अड्डे का लोकार्पण हो चुका है। सबसे बड़ा तोहफा इसी साल मार्च तक सोलर सिटी के रूप में मिलने वाला है। इसके अलावा कुछ इन परियोजनाओं पर काम हो चुका है।
4 लेन अयोध्या अकबरपुर बसखारी मार्ग
NH-27 से रामपथ तक रेलवे समपार
रेलवे क्रॉसिंग पर ओवर ब्रिज
पयर्टन स्थलों और कुंडों का विकास
सड़कों का चौड़ीकरण
सड़क पर हेरिटेज लाइट
ग्रीन फील्ड टाउनशिप परियोजना
राजघाट पर पक्के घाटों का निर्माण
पुराने घाटों का जीर्णोद्धार
राम की पैड़ी पर दर्शक दीर्घा
श्रद्धालु भ्रमण पथ का सौंदर्यीकरण
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