नई दिल्ली। दुनिया में कई ऐसी जगहें हैं जहां खनिज भंडारों का अंबार है। सरकार से लेकर आम नागरिकों तक की नजर इन जगहों पर होती है। इसी कड़ी में आज हम आपको भारत के एक ऐसे जगह के बारे में बताएंगे जिसे ‘हीरे की धरती’ कहा जाता है। लोग यहां खुले मैदान में हीरा तलाशते नजर आ जाते हैं। आइये जानते हैं, क्या है इस जगह की पूरी कहानी।
इस क्षेत्र को कहा जाता है हीरे की धरती
मीडिया रिपोर्ट के अनुसार, आंध्र प्रदेश के रायलसीमा क्षेत्र को हीरे की धरती कहा जाता है। इस क्षेत्र में काफी मात्रा में खनिज भंडार है। यही कारण है कि लोग यहां दैनिक मजदूरी छोड़ कर हीरा तलाशते हैं। हालांकि, लोग यहां हीरा तलाशने के लिए कोई विशेष तकनीक का इस्तेमाल नहीं करते हैं। उन्हें जो पत्थर सबसे अलग लगता है वो उसे उठा लेते हैं और सुरज की किरणों के तरह करके देखते हैं कि पत्थर से प्रतिबिंब बनता है या नहीं। अगर उन्हें लगता है कि पत्थर से प्रतिबिंब बन रहा है तो वे इसे लेकर बिचौलियों के पास जाते हैं, जो इनसे हीरा खरीदते हैं।
अपनी किस्मत के दम पर खोजते हैं हीरा
आमतौर पर हीरा खोजना एक कड़ी मेहनत वाला काम है। लेकिन, यहां के लोग अपनी किस्मत के दम पर दिन रात हीरा खोजने में लगे रहते हैं। आपको बता दें कि यहां हीरा मिलने को लेकर कई कहानियां प्रचलित हैं। स्थानीय लोग बताते हैं कि यहां अंग्रेज़ों ने भी हीरे की तलाश की है और पत्थरों के आधार पर ही उनके द्वारा यहां खुदाई की जाती थी। इसके अलावा, राजा कृष्णदेव राय के समय व्यापारी हीरों और बेशक़ीमती पत्थरों को खुले बाज़ार में बेचा करते थे।
बारिश के मौसम में जमीन के उपर दिखाई देते हैं हीरे
वहीं, साम्राज्य के पतन, प्राकृतिक आपदा और लड़ाइयों की वजह से यहां मौज़ूद संसाधन खो गए, लेकिन बारिश के मौसम में ज़मीन के उपर हीरे दिखाई देते हैं। इसलिए, मानसून के वक़्त हीरे की तलाश ज़ोर पकड़ लेती है। Geological Survey of India के उप-निदेशक राजा बाबू कहते हैं कि आंध्र प्रदेश के दो ज़िले करनूल और अनंतपुर के साथ तेलंगाना का महबूबनगर खनीज भंडार के लिए जाने जाते हैं। उनके अनुसार, जब ज़मीन के अंदर कुछ प्राकृतिक बदलाव होता है, तो ज़मीने के अंदर मौजूद हीरे ज़मीन की सतह पर आ जाते हैं।
जीएसआई ने क्या कहा?
जीएसआई के अनुसार, इस क्षेत्र में हीरों का ज़मीन की सतह पर आने का एक मुख्य कारण 5 हज़ार सालों में हुआ मृदा क्षरण यानी Soil Erosion भी है। जीएसआई ऑफ़िसर बताते हैं कि धरती की 140-190 फीट की गहराई में मौजूद कार्बन परमाणु दवाब और अधिक तापमान के कारण हीरे में बदल जाते हैं। वहीं, जब धरती में विस्फ़ोट होकर लावा लिकलता है, तो यही लावा काले पत्थर में बदल जाता है, जिसे किम्बरलाइट और लैम्प्रोइट पाइप कहा जाता है। ये पाइप हीरों के लिए स्टोर हाउस का काम करते हैं। वहीं, हीरा निकालने वाली खनन कंपनियां इन्हीं पाइपों की मौजूदगी के आधार पर हीरे की खुदाई करती हैं।