नई दिल्ली। आज ही के दिन 37 साल पहले राकेश शर्मा अंतरिक्ष में प्रवेश करने वाले पहले भारतीय बने थे। ये दिन भारतीय अंतरिक्ष विज्ञान के लिए सबसे महत्वपूर्ण दिन था। हालांकि, भारत को यह अवसर रूस के सहयोग से मिला था। लेकिन इसी उपलब्धि ने भारत को आत्मनिर्भर होने की प्रेरणा दी थी। इसके बाद ही देश ने स्वदेशी साधनों का तेजी से विकास किया और कई महत्वपूर्ण मुकाम हासिल किए।
भारत के पास आज सबकुछ है
आज भारत के पास चांद और मंगल तक पुहचने के लिए अपने खुद के शक्तिशाली रॉकेट हैं। इतना ही नहीं आज भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन भारी भरकम व्यावसायिक मिशनों को अंजाम दे रहा है। 2017 में पीएसएलवी के जरिये एक साथ 104 उपग्रह प्रक्षेपित करके विश्व रिकॉर्ड भी बनाया था। वहीं भारत के चंद्रयान-1 और मंगलयान मिशन ने पूरी दुनिया की नजरें अपनी ओर आकर्षित किया है।
आसान नहीं था अंतरिक्ष यात्री बनना
हालांकि कुछ लोग भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन के विकास में राकेश शर्मा के योगदान का जिक्र नहीं करते। लेकिन ये भी सच है कि वो राकेश शर्मा ही थे जिनके कारण आज हम अंतरिक्ष में मानव भेजने की बात कर रहे हैं। राकेश शर्मा को अंतरिक्ष यात्री बनने से पहले कई कठिन परीक्षाओं से गुजरना पड़ा था। इसके बाद उनके बेंगलुरू स्थित इंस्टीट्यूट ऑफ एयरोस्पेस मेडिसिन में कई टेस्ट हुए थे। एक बार तो उन्हें एक कमरे में 72 घंटे तक बंद कर दिया गया था। इसके बाद उन्हें मास्को की स्टार सिटी में यूरी गगारिन कॉस्मोनॉट ट्रेनिंग सेंटर में लगभग दो साल तक कठोर ट्रेनिंग दी गई थी।
भारत के दो पायलटों को ट्रेनिंग के लिए चुना गया था
बतादें कि राकेश शर्मा के साथ रवीश मल्होत्र को भी अंतिम ट्रेनिंग के लिए चुना गया था। दोनों भारतीय वायुसेना के पायलट थे। ऐसा इसलिए किया गया था क्योंकि एक अंतरिक्ष यात्री को स्टैंड बाय पर रहना पड़ता है। इसके बाद राकेश शर्मा को अंतिम में अंतरिक्ष यात्री के तौर पर चुना गया था। शर्मा ने सोवियत रॉकेट सोयूज-टी-11 से अंतरिक्ष की उड़ान भरी थी। यह रॉकेट बैकानूर कॉस्मोट्रॉम से रवाना हुआ था।
गौरतलब है कि इस यात्रा के बाद भारत ने राकेश शर्मा को अशोक चक्र से सम्मानित किया था। साथ ही रूस ने भी उन्हें ‘हीरो ऑफ सोवियत यूनियन’ का खिताब दिया था। शर्मा ने साल्यूत अंतरिक्ष स्टेशन पर सात दिन 21 घंटे और 40 मिनट बिताए थे।