भोपाल। आज बाबूलाल गौर की द्वितीय पुण्यतिथि है इस मौके पर प्रदेश के मुखिया शिवराज सिंह चौहान, गृह मंत्री- नरोत्तम मिश्रा, केंद्रीय नागर विमानन मंत्री- ज्योतिरादित्य सिंधिया सहित तमाम नेताओं ने श्रद्धांजलि दी है। आइए आज हम आपको इस मौके पर बाबूलाल यादव के बाबूलाल गौर बनने की कहानी बताते हैं।
असली नाम बाबूलाल यादव
2 जून 1930 को यूपी के प्रतापगढ़ के नौगीर गांव में गौर का जन्म हुआ था। उनका असली नाम बाबूलाल यादव था। बाबूलाल यादव जिस स्कूल में पढ़ते थे उस स्कूल में बाबूलाल यादव नाम के दो बच्चे थे। दोनों एक ही क्लास में पढ़ते थे। टीचर को इससे काफी दुविधा होती थी। ऐसे में एक दिन टीचर ने कहा कि दोनों में से जो मेरी बात ‘गौर’ से सुनेगा और सवाल का सही जवाब देगा, उसका नाम बाबूलाल गौर कर दिया जाएगा।
ऐसे आए भोपाल
बाबूलाल ने सही जवाब दिया तो उनका नाम बाबूलाल गौर हो गया। भोपाल आने पर भी लोगों ने बाबूलाल गौर ही कहा और इस तरह से बाबूलाल यादव से वे बाबूलाल गौर हो गए। यूपी के प्रतापगढ़ से निकलकर मप्र के भोपाल तक पहुंचने की कहानी भी काफी दिलचस्प है। दरअसल, ब्रिटिश शासन के दौरान उनके गांव में दंगल करवाए जाते थे। उनके पिता पहलवानी करते थे। एक दिन दंगल में उनके पिताजी जीत गए। ऐसे में एक शराब कंपनी ने उन्हें भोपाल में नौकरी करने का ऑफर दिया। तब बाबूलाल गौर महज 8 साल के थे। उसके पिता को लगा कि बच्चे बड़े हो रहे हैं। नौकरी कर लेनी चाहिए। फिर क्या था परिवार समेत बाबूलाल गौर के पिता भोपाल आ गए।
पिता के साथ शराब बेचते थे
भोपाल में कुछ दिनों की नौकरी के बाद शराब कंपनी ने उन्हें एक दुकान दे दी। इस दुकान से तब रोजाना 35 रूपये की आमदनी होने लगी। बाबूलाल गौर भी अब अपने पिता के साथ शराब की दुकान पर काम करने लगे। हालांकि उन्होंने इस दौरान संघ की शाखा भी ज्वाइन कर ली थी। शाखा में उन्हें शराब बेचने से मना किया गया। इसके बाद बाबूलाल गौर ने शराब की दुकान को बंद कर दिया और वापस अपने गांव चले गए। गांव जाकर उन्होंने खेती करने की सोची, लेकिन वो नहीं कर पाए। ऐसे में वो वापस भोपाल आ गए। यहां आकर कपड़ा मिल में मजदूरी करने लगे। यहां उन्हें एक रूपए मजदूरी मिलती थी।
सबसे ज्यादा बार विधायक चुने जाने का रिकॉर्ड
संघ से मिले ज्ञान और नेतृत्व क्षमता के कारण बाबलाल गौर कपड़ा मिल में मजदूर नेता बन गए। वे छोट मोटे आंदोलनों में भाग लेने लगे। इसके बाद उन्होंने भारतीय मजदूर संघ को ज्वाइन किया। यही से जनसंघ में उनकी जान पहचान बढ़ी। जनसंघ ने उन्हें पहली बार 1972 में भोपाल से विधानसभा का टिकट दिया। हालांकि वो इस चुनाव में हार गए। 1977 में, वह जनता पार्टी के टिकट पर भोपाल की गोविंदपुरा सीट से जीतने में सफल रहे। इस जीत के बाद उन्होनें कभी पीछे मुड़कर नहीं देखा। मध्य प्रदेश के सीएम तक बने। हालांकि गौर अपने बयानों को लकेर अक्सर विवादों में रहे। लेकिन फिर भी उनके नाम सबसे ज्यादा बार विधायक चुने जाने का रिकॉर्ड है।