भोपाल। श्राप के बारे में तो आपने सुना ही होगा, ऐसा माना जाता है कि श्राप कभी ना कभी अपना प्रकोप जरूर दिखाते हैं। महाभारत काल से ही श्राप को लेकर किन्वंदंतियां चली आ रही हैं। हम फिल्मों में भी देखते हैं कि परिवार के पूर्वजों को मिला श्राप उनकी कई पीढ़ियां सदियों से भुगत रही है। ठीक उसी प्रकार कहा जाता है कि संधिया परिवार को भी एक श्राप मिला था। जिसके कारण माधव राव सिंधिया की मौत हवाई दुर्घटना में हो गई थी।
क्या है श्राप की कहानी?
सिंधिया शाही परिवार के बारे में ग्वालियर में एक कहानी बहुत ही प्रचलित है। यहां के लोग राज परिवार के इतिहास के बारे में बताते हैं कि सिंधिया वंश के संस्थापक ‘राणोजी शिंदे’ के पुत्र ‘महादजी सिंधिया’ को एक बार एक संत मिले, उन्होंने महादजी को एक रोटी उनकी पत्नी को खाने के लिए दी। ताकि उनके घर में सुख और समृद्धि हमेशा बनी रहे। महादजी ने ऐसा ही किया और रोटी लेकर घर आ गए। उन्होंने पत्नी से कहा कि आप इस रोटी को खा जाना। लेकिन उनकी पत्नी ने सिर्फ आधी ही रोटी खाई, बाकी रोटी फेंक दी। इस बात से संत नाराज हो गए। और उन्होंने सिंधिया परिवार को श्राप दे दिया।
संत ने दिया था श्राप
संत ने गुस्से में आकर महादजी सिंधिया से कहा कि उनकी सात पीढियां कभी भी 55 साल से ज्यादा जीवित नहीं रह पाएगी। साथ ही उनके राजवंश का दबदबा भी ग्वालियर से खत्म हो जाएगा। इतना ही नहीं संत ने ये भी कहा कि परिवार में जिस किसी का नाम भी ‘म’ से शुरू होगा, उसकी किसी हादसे में मृत्यु हो जाएगी। इसके अलावा संधिया राजवंश में एक बेटे से अधिक नहीं जन्म लेगा।
हालांकि, इस श्राप में कितनी सच्चाई है ये दावे के साथ तो नहीं कहा जा सकता। लेकिन श्राप की ये कहानी ग्वालियर के लोग दशकों से सुनते आ रहे हैं।
कैसे हुआ माधवराव सिंधिया का निधन?
माधवराव सिंधिया का निधन 30 सितंबर 2001 को हुआ था। जब वे दिल्ली से एक रैली को संबोधित करने विशेष एयरक्राफ्ट से कानपुर जा रहे थे। इसी दौरान उत्तरप्रदेश के भैंसरोली गांव के उपर एयरक्राफ्ट में आग लग गई थी और वह खेतों में जा गिरा था। आग इतनी भयंकर तरीके से लगी थी कि बारिश होने के बावजूद ग्रामीणों ने कीचड़ डालकर आग बुझाई थी। एयरक्राफ्ट से एक भी आदमी जिंदा नहीं निकला था। इसमें माधवराव सिंधिया भी शामिल थे।
हफ्ते भर बंद रखा था ग्वालियर
पुलिस ने जब एयरक्राफ्ट का दरवाजा तोड़ा था, तो सारे शव सीट बेल्ट से ही बंधे मिले थे। हादसा इतनी जल्दी हुआ कि लोगों को सीट बेल्ट खोलने तक का भी मौका नहीं मिला था। बुरी तरह से जल चुके शवों की पहचान करना मुश्किल था। माधव राव सिंधिया के शव की पहचान लॉकेट से हुई थी। जिसपर मां दुर्गा अंकित थीं। माधव राव सिंधिया शाही परिवार में जन्म लेने के बावजूद लोगों से बहुत ज्यादा घुले-मिले थे। उनकी लोकप्रियता का अंदाज इसी से लगाया जा सकता है कि उनके निधन के बाद देश के सभी बड़े नेता ग्वालियर पहुंचे थे। साथ ही ग्वालियर के लोग इतने दुखी थे कि वे अपने लोकप्रिय नेता के निधन पर हफ्ते भर तक ग्वालियर को बंद रखा था और श्रृद्धांजिलि दी थी।