रायपुर। Rajim Punni Mela: सीएम विष्णुदेव साय की कैबिनेट की तीसरी बैठक (CG Cabinet meeting) बुधवार यानी आज होने वाली है। ये पहली बैठक होगी जिसमें प्रदेश के सभी नए मंत्री शामिल होंगे। मंत्रिमंडल की इस बैठक में राजिम पुन्नी मेले को फिर कुंभ का दर्जा मिल सकता है। ऐसी संभावना जताई जा रही है। तो चलिए जानते हैं कि आखिर इस राजिम पुन्नी मेला (Rajim Punni Mela) इतना खास क्यों है।
राजिम को क्यों कहते हैं छत्तीसगढ़ का प्रयाग (Prayag of Chhattisgarh Rajim)
छत्तीसगढ़ का “प्रयाग” कहे जाने वाले राजिम की पहचान पहले से ही आस्था, धर्म, संस्कृति की नगरी के नाम से विख्यात है, राजिम नगरी की धार्मिक पौराणिक ऐतिहासिक मान्यता है, राजिम अत्यंत ऐतिहासिक महत्व का स्थान है। यह स्थान इसलिए भी अनुकरणीय है क्योंकि यहां तीन नदियों महानदी, पैरी और सोंढूर का पवित्र संगम है, जिसे त्रिवेणी संगम (Triveni Sangam) कहा जाता है। इसी संगम के पूर्व में बसा राजिम अत्यंत प्राचीन समय से छत्तीसगढ़ का एक प्रमुख सांस्कृतिक केंद्र रहा है।
राजिम नाम से जुड़ी किवदंतियां
राजिम नाम को लेकर बहुत सी किवंदतियां है, जिसमें प्रमुख उल्लेख एक राजिम (Rajim) नाम की तेलिन की कथा है, जिसके नाम से इस नगर का नाम राजिम पड़ा, वैसे बताया यह भी जाता है कि यहां के प्रधान मंदिर राजीवलोचन की ध्वनि भी राजिम शब्द से मिलती है, जो इसके नामकरण का कारण हो सकता है। राजिम का नाम जिस भी तरह पड़ा हो, लेकिन यह प्राचीनकाल से ही पवित्र क्षेत्र माना गया है, जिसे कभी कमलक्षेत्र पदमावतीपुरी के रूप में जाना जाता था।
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छत्तीसगढ़ की पहचान भगवान राम के ननिहाल के रूप में की जाती है। भगवान राम ने अपने वनवास के दौरान काफी समय इसी प्रांत के जंगलों में बिताया था। यहां से भगवान राम का नाता बहुत ही गहरा हैं और उनका छत्तीसगढ़ के लोकसाहित्य, लोककथाओं और आम जीवन पर गहरा प्रभाव है। ऐसा माना जाता है कि माता सीता और लक्ष्मण ने छत्तीसगढ़ में भगवान राम के साथ प्राचीन दंडकारण्य में 12 वर्ष बिताए थे।
पावन नगरी राजिम के त्रिवेणी संगम (Rajim Triveni Sangam) महानदी, पैरी और सोंढूर के मध्य विराजित अद्भुत भगवान कुलेश्वरनाथ महादेव स्थित है, कहा जाता है कि त्रेतायुग (Tretayug) में वनवास काल के दौरान रामचंद्र जी ने रामेश्वर महादेव की स्थापना की, लक्ष्मण ने लक्ष्मणेश्वर नाथ महादेव की स्थापना खरौद में की एवं माता जानकी सीता ने प्रयाग धाम राजिम में कुलेश्वरनाथ महादेव की। राजिम के त्रिवेणी संगम में स्थित कुलेश्वरनाथ पंचमुखी शिवलिंग के रूप में विद्यमान है।
जनश्रुति में है उल्लेख
जनश्रुति के अनुसार यहीं वनवास के समय माता सीता ने अपने आराध्य भगवान शिव को प्रसन्न करने के लिए स्वयं अपने हाथों से बालू ( रेत) से शिवलिंग बनाकर उसकी पूजा अर्चना और आराधना करते समय अंगुलियों से अर्ध्य देने पर इस मूर्ति के पांच स्थानों से जलधारा फूल निकली थी, जिससे शिवलिंग ने पंचमुखी आकार ले लिया।
लोमश ऋषि आश्रम (Lomas Rishi Ashram)
कुलेश्वरनाथ महादेव से कुछ दूरी पर संत लोमश ऋषि का आश्रम है, जहां वनवासकाल के दौरान भगवान राम, माता सीता और लक्ष्मण रुके थे।
राजीवलोचन मंदिर में क्या है खास
राजीवलोचन मंदिर के बारे में कहा जाता है कि राजिमछत्तीसगढ़ की सांस्कृतिक धार्मिक परंपराओं से जुड़ा है। इसके तट पर मोह, माया का त्याग होता है। त्रिवेणी संगम तट पर स्थित राजिम में भगवान राजीवलोचन का प्राचीनतम मंदिर है। जहां चतुर्भुजी विष्णु के रूप विराजमान हैं। जो हाथों में शंख, चक्र, गदा तथा पद्म धारण किए हुए हैं।
मोक्ष हरि अवतार का है रूप
यह प्रतिमा गजेंद्र मोक्ष हरि अवतार की है, जो कमलफुल विष्णु प्रतिमा के हाथ में स्थित है। उसे गज द्वारा अपने सूंड से भगवान को अर्पित करते हुए अंकित किया गया है। राजीवलोचन मंदिर के चारों कोनों में भगवान विष्णु के चार अवतारों के मंदिर–नरसिंह अवतार, बदरी नारायण अवतार, वामन अवतार और वाराह अवतार स्थित है।
ऐसा है राजीवलोचन मंदिर (Rajiv Lochan Mandir CG)
यह मंदिर एक विशाल आयताकार के प्रकार के मध्य में बनाया गया है। इस मंदिर को 7वीं –8वीं सदी का बताया जाता है। राजीवलोचन मंदिर के महामण्डप की दीवार पर कलचुरी संवत 896 का एक शिलालेख है, जिसे रतनपुर के कलचुरी के अधीनस्थ सामंत जगतपाल ने उत्कीर्ण कराया था। बताया जाता है कि राजिम के देवालय सामान्यतः 8वीं शताब्दी से लेकर 14वीं शताब्दी के बीच के बने हुए हैं। इतिहास से वर्तमान तक के विकासगाथा का एक सोपान है ये मंदिर।
राजीवलोचन मंदिर में कैसी प्रतिमा है
राजिम का राजीवलोचन मंदिर (Rajim Punni Mela) अपने आप में बहुत सी खूबियां समेटे हुई है, इसके चारों परकोटों में चारोधाम के दर्शन किए जा सकते हैं, वहीं बीचों–बीच विष्णु जी की प्रतिमा खड़ी है।
इस चतुर्भुजी मूर्ति का दिन में तीन बार श्रृंगार किया जाता है, जिसमें विष्णु जी के बचपन, युवा अवस्था और वृद्धावस्था की कल्पना की जाती है। प्राचीन बस्तर तथा दक्षिण कोशल के इतिहास की कई परतें खोलने वाले इस मंदिर की भव्यता एक–एक मूर्ति तथा प्रवेशद्वार में नक्काशी (कलाकृति) की गई।
मंदिरों की नगरी है राजिम
राजिम को मंदिरों की नगरी भी कहा जाता है। संगम तट पर पंचेश्वर नाथ महादेव, भूतेश्वरनाथ महादेव का लिंग, मंदिर के द्वितीय परिसर में दान–दानेश्वर महादेव, वहीं राजीवलोचन के ठीक सामने एक ही सीध में राज राजेश्वर नाथ महादेव दिव्य लिंग के रूप में प्रचारित है।
राजिम पुन्नी मेला महोत्सव (Rajim Punni Mela)
राजिम अपनी समृद्ध सांस्कृतिक विरासत और प्राचीन मंदिरों के लिए बेहद प्रसिद्ध है। प्रतिवर्ष यहां पर माघ पूर्णिमा से लेकर महाशिवरात्रि तक विशाल मेला लगता है। वर्ष 2000 में इसका सरकारीकरण हो गया। फिर 2004 में भाजपा की सरकार सत्ता में आने के बाद इसे कुंभ का नाम दे दिया गया।
जिसके बाद वर्ष 2019 से छत्तीसगढ़ में कांग्रेस की सरकार आते ही इसे राजिम पुन्नी मेला महोत्सव मनाने का निर्णय लिया गया।
यह आयोजन छत्तीसगढ़ शासन संस्कृति विभाग एवं स्थानीय आयोजन समिति के सहयोग से होता है। छत्तीसगढ़ सरकार इसे विकसित करने कार्ययोजना तैयार कर उन स्थलों को चिन्हांकित कर रामवनगमन पर्यटन परिपथ की तर्ज पर विकास कार्य किए है।
गरियाबंद जिले (gariyaband news) के धार्मिक नगरी राजिम में भी रामवनगमन के तहत विकास के कार्य हुए। इस तारतम्य में 7 जनवरी 2023 को भगवान श्रीराम जी की विशाल मूर्ति का अनावरण किया गया साथ ही भगवान राजीवलोचन मंदिर के तट से कुलेश्वरनाथ मंदिर तक लक्ष्मण झूला का भी निर्माण किया गया है।
जो पर्यटकों के लिए आकर्षण का केंद्र है, पर्यटकों की सुविधाओं को देखते हुए पेयजल, यात्रियों के ठहरने के लिए यात्री प्रतीक्षालय साथ ही नदी के पूरे तट पर भगवान श्रीराम और माता सीता की मूर्तियां उकेरी गई है।
ऐसी मान्यता है, कि वनवासकाल के दौरान जब भगवान श्री राम, माता सीता और भगवान लक्ष्मण राजिम पहुंचे थे, तभी त्रिवेणी के मध्य माता सीता ने भगवान शिव की आराधना और पूजा कर बालू से शिवलिंग का निर्माण किया। जिसे आज कुलेश्वर नाथ के नाम से जाना जाता है।
सोंढुर, पैरी और महानदी संगम तट में बसा राजिम अत्यंत प्राचीन समय से छत्तीसगढ़ का एक प्रमुख सांस्कृतिक केंद्र रहा है। दक्षिण कोशल के नाम से प्रख्यात क्षेत्र में प्राचीन सभ्यता, सांस्कृतिक एवं कला की अमूल्य निधि संजोए इतिहासकारों, पुरातत्वविदों और कलानुरागियों के लिए आकर्षण का केंद्र बना हुआ है। इसी को लेकर बारहों महीने देशभर से यहां पर्यटक पहुंचते हैं।
राजिम कुंभ (Rajim Kumbh) की विशेषता
राजिम कुंभ (Rajim Kumbh) की विशेषता यह है कि जिस स्थान पर लगता है वहां तीन जिलों की सीमाएं मिलती है, एक तरफ लोमश ऋषि आश्रम धमतरी जिले में है। तो दूसरी तरफ राजीवलोचन मंदिर गरियाबंद जिले में और नयापारा नगर रायपुर (Raipur News) जिले में आता है।
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