14 अप्रैल 1891 को जन्मे एक बालक ने, सामाजिक अन्याय के अंधकार को चीरते हुए भारत को नया संविधान दिया…
वो बालक थे डॉ. भीमराव रामजी अंबेडकर।
जातिवाद के साए में पले उस बच्चे ने ठान लिया था – कि वो सिर्फ़ अपनी क़िस्मत नहीं बदलेगा, बल्कि करोड़ों दबे-कुचले लोगों की ज़िंदगी का रुख़ बदल देगा।
“मुंबई से लेकर न्यूयॉर्क और लंदन तक की उनकी शिक्षा ने उन्हें वो दृष्टि दी, जिसने उन्हें भारत का सबसे बड़ा विधिवेत्ता और समाज सुधारक बनाया। भारत लौटते ही उन्होंने ‘मूकनायक’ और ‘बहिष्कृत भारत’ जैसे पत्रों के ज़रिए आवाज़ उठाई।
और फिर आया महाड़ सत्याग्रह और कलाराम मंदिर आंदोलन, जहाँ उन्होंने जातिगत व्यवस्था को खुली चुनौती दी।डॉ. अंबेडकर का सबसे बड़ा योगदान था भारत का संविधान।
एक ऐसा संविधान जिसमें न्याय, समानता और बंधुत्व की बुनियाद रखी गई।स्वतंत्र भारत के पहले विधि मंत्री यानी की Law Minister के रूप में उन्होंने महिलाओं और कमजोर वर्गों के अधिकारों को सुनिश्चित करने के लिए हिंदू कोड बिल लाया, हालाँकि वो पारित न हो सका। 6 दिसंबर 1956 को उनका देहांत हुआ, लेकिन उससे पहले 14 अक्टूबर को उन्होंने लाखों अनुयायियों के साथ बौद्ध धर्म स्वीकार कर लिया।
आज भी, बाबासाहेब सिर्फ एक नाम नहीं, एक आंदोलन हैं… जो हर उस व्यक्ति के दिल में बसते हैं जो समानता और न्याय में विश्वास रखता है।