भोपाल। आपने कभी मूर्ति को चाय दूध, लड्डू और फ्रूटी पीते नहीं देखा होगा। क्या कोई प्रतिमा बच्चों के जैसे दूध पी सकती है। क्या किसी मूर्ति का आकार हर साल बढ़ सकता है। शायद नहीं, पर ऐसा हो रहा है। उज्जैन में इन दिनों लड्डू गोपाल की एक मूर्ति काफी चर्चा में है। लोगों का मानना है कि उन्होंने इस मूर्ति का आकार बढ़ते हुए देखा है। इतना ही नहीं इस मूर्ति को बच्चे की तरह दुलार दे रहे लोगों ने बताया कि यह लड्डू गोपाल अनोखे हैं। बच्चे की तरह सुबह-सुबह दूध पीते देते हैं और बढ़ों की तरह चाय सुड़क कर पी जाते हैं। ईश्वर के कई रूप हैं। ऐसे ही बाल-गोपाल हैं सिवनी सरकार, जो महाकाल की नगरी में मेहमानी पर आए हैं।
भक्तों की गोद में सिवनी सरकार इतराते है
हर कोई सिवनी सरकार को दुलार करना चाहता है उन्हें गोदी में लेकर खिलाना चाहता है। सिवनी सरकार है ही ऐसे की जो भी एक बार देखता है बस देखता ही रह जाता है। सिवनी सरकार कभी दूध पीते हैं, कभी मक्खन को ललचाते हैं तो कभी फ्रूटी को चट कर जाते हैं। अपने भक्तों की गोद में सिवनी सरकार इतराते ये हैं । कोई लल्ला-लल्ला कहकर झुलाता है तो कोई कन्हैया कहकर चूमता है। वहीं सिवनी सरकार भी अपने भक्तों को निराश नहीं करते। अभी सिवनी सरकार उज्जैन में मेहमानी पर आए हैं। इनके नखरे कम नहीं है। भक्त कहते हैं कि बच्चों की तरह दूध पीने में ये भी आनाकानी करते हैं लेकिन चाय झट से पी जाते हैं। इन्हें चॉकलेट और कढ़ी तो बेहद पसंद है
पूरी दिनचर्या आम इंसानों की तरह
लोग कहते हैं कि 14 साल के लड्डू गणेश की प्रतिमा चमत्कारी है। दूध-चाय बच्चों की तरह पीते हैं। प्रतिमा हर साल एक इंच बढ़ती है जो अब ढाई फीट की हो चुकी है। लड्डू गोपाल किसी मंदिर में स्थापित नहीं होते बल्कि ये देशभर में घूमते रहते हैं। श्रद्धालु सिवनी में माताजी के यहां अर्जी लगाते हैं और नंबर आने पर अपने घर लाकर इनकी खातिरदारी करते हैं।
लड्डू गोपाल के कई चमत्कार
लड्डू गोपाल को लेकर कई तरह के किस्से हैं। कई चमत्कार बताए जाते हैं। लेकिन जिस घर भी सिवनी सरकार पहुंचते हैं घर खुशियों से भर जाता है क्योंकि नन्हें कन्हैया की अठखेलियां हर किसी को रोमांचित कर देती है। उज्जैन के नयापुरा में उपाध्याय परिवार के घर में श्रद्धालुओं का तांता लगा हुआ है। नयापुरा में दिलीप उपाध्याय के घर लड्डू गोपाल की यह मूर्ति मेहमान बनकर आई है। 14 साल की ढाई फीट की चमत्कारिक प्रतिमा है। लड्डू गोपाल का आकर्षण इतना है कि इन्हें घर ले जाने वालों की तांता लगा रहता है। लड्डू गोपाल को पालने में दुलारने के लिए भी श्रद्धालुओं की भीड़ लग गई है। पूरे वर्ष भर गोपालजी को ले जाने के लिए भक्त सिवनी में माता के पास नंबर लगवाते है।
तीन से चार सालों में लगता भक्तों का नंबर
यह लड्डू गोपाल दही, दूध मक्खन, मिश्री और बच्चों की तरह फ्रूटी और चॉकलेट का सेवन करते है। भगवान को बेसन के लड्डू भी खिलाया जाता है। यह प्रतिमा एक के बाद एक भक्तों के निवास पर मेहमान बनकर पहुंचती है। कई भक्तों का नंबर तीन से चार सालों में लगता है। दिलीप उपाध्याय के मुताबिक लड़्डू गोपाल की यह मूर्ति उत्तरप्रदेश, बिहार, छत्तीसगढ़ और मध्यप्रदेश के कई जिलों में भक्तों के निवास पर जा चुकी है। चार दिन के लिए उज्जैन आए थे, चार दिनों तक भजन संध्या में भक्तों ने खूब आनंद लिए। भक्तों का कहना है कि कई धातुओं से मिलकर यह मूर्ति बनी है। इसका आकार भी लगातार बढ़ रहा है। लड्डू गोपाल के साथ उनके भक्त एक बच्चे के समान ही व्यवहार करते हैं। बच्चे की तरह उन्हें खिलाया और पिलाया जाता है। लोरी सुनाकर उन्हें सुलाया जाता है।
चाय बहुत पसंद
लड्डू गोपाल के भक्त इस मूर्ति को चमत्कारिक मानते हैं। उनका कहना है कि जब सुबह-सुबह लड्डू गोपाल को उठाया जाता है और उन्हें बच्चों की तरह दूध पिलाया जाता है तो वह दूध उगल देते हैं। इसके बाद जब चाय पिलाई जाती है तो वह बडे़ ही शोक से पी जाते हैं। इसके बाद इन्हें दिन में नहलाया जाता है। मुकुट, मोरपंख, बांसुरी लगाकर उनका श्रंगार किया जाता है। शाम के बाद लोरिया गाकर बच्चे की तरह उन्हें सुलाया जाता है। लड्डू गोपाल के कानों में भक्त अपनी मुराद बताते हैं। लोगों का मानना है कि यह मुराद कुछ ही दिनों में पूरी हो जाती है। जो भी इच्छाएं उनके कानों में बोली जाती है, वह पूरी हो जाती है।
क्या है मूर्ति की कहानी
सिवनी के राजेश अर्चना जलज परिवार की है यह मूर्ति। सिवनी के जलज दंपति के साथ यह किस्सा बताया जाता है कि उनकी पत्नी अर्चना संतान नहीं होने पर लड्डू गोपाल की आराधना करती रहती थी। एक बार जब भाव-विभोर होकर भगवान से प्रार्थना करने लगी तो सपने में भगवान ने कहा कि मैं हूं। उसके बाद बाल रूप में जो लड्डू गोपाल स्वप्न में दिखते थे वही मूर्ति एक महात्मा ने उन्हें दे दी। इसके बाद जब वह मूर्ति स्थापित करने के प्रयास किए गए तो स्वप्न में दोबारा लड्डू गोपाल ने स्थापित करने से मना कर दिया। उसके बाद यह सिलसिला चल पड़ा। अब हर भक्त दो-चार दिनों के लिए लड्डू गोपाल को अपने घर ले जाता है और बच्चों की तरह देखभाल करता है।