सरकार, किसान संगठनों के बीच सातवें दौर की वार्ता में भी नहीं बनी बात, अब 8 जनवरी को फिर होगी बैठक -

सरकार, किसान संगठनों के बीच सातवें दौर की वार्ता में भी नहीं बनी बात, अब 8 जनवरी को फिर होगी बैठक

नयी दिल्ली, चार जनवरी (भाषा) सरकार और किसान संगठनों के बीच तीन नए कृषि कानूनों को लेकर पिछले एक महीने से ज्यादा समय से चला आ रहा गतिरोध सोमवार को सातवें दौर की वार्ता के बाद भी समाप्त नहीं हो सका।

किसान संगठनों के प्रतिनिधि इन कानूनों को निरस्त करने की अपनी मांग पर अड़े रहे जबकि सरकार उन्हें इनके फायदे गिनाती रही। अलबत्ता, कोई बात नहीं बन सकी। अब आठ जनवरी को फिर से वार्ता होगी।

लगभग चार घंटे चली बैठक के बाद केंद्रीय कृषि मंत्री नरेन्द्र सिंह तोमर ने कहा, ‘‘आज की बैठक में कोई निर्णय नहीं हो पाया। सरकार और किसान संगठनों के बीच आठ जून को फिर से वार्ता होगी।’’

तोमर, रेलवे, वाणिज्य और खाद्य मंत्री पीयूष गोयल और वाणिज्य राज्य मंत्री एवं पंजाब से सांसद सोम प्रकाश ने विज्ञान भवन में 40 किसान यूनियनों के प्रतिनिधियों के साथ बातचीत की।

तोमर ने कहा कि किसान संगठनों के कानून निरस्त करने की मांग पर अड़े रहने के कारण कोई रास्ता नहीं निकल पाया जबकि सरकार तीनों कानूनों पर बिंदुवार चर्चा चाहती थी ।

उन्होंने यह कहते हुए कि ‘‘तालियां दोनों हाथों से बजती है’’, उम्मीद जताई कि अगली बैठक में इस मुद्दे का कुछ हल निकलेगा।

हालांकि किसान संगठनों ने आरोप लगाया कि मामले के समाधान में सरकार के ‘‘अहम की समस्या’’ आड़े आ रही है। उन्होंने स्पष्ट किया कि वे तीनों कानूनों को निरस्त करने और न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) को कानूनी रूप देने की अपनी मांग से पीछे नहीं हटेंगे।

यह पूछे जाने पर कि किसान संगठनों को सरकार पर भरोसा नहीं है, तोमर ने कहा कि सरकार और किसान संगठनों की रजामंदी के कारण ही आठ जनवरी की बैठक तय हुई है और इससे जाहिर है कि किसानों को सरकार पर भरोसा है।

उन्होंने कहा, ‘‘सरकार किसानों के प्रति संवेदनशील है। कुल मिलाकर किसानों की मान्यता यह है कि सरकार इसका रास्ता ढूंढे और हमें आंदोलन समाप्त करने का अवसर दे।’’

सातवें दौर की बैठक के बाद भी समाधान ना निकल पाने संबंधी एक सवाल के जवाब में कृषि मंत्री ने कहा कि समस्या के कानूनी पहलुओं के साथ देश का भी ध्यान रखना होता है।

उन्होंने कहा, ‘‘देश में करोड़ों किसान हैं। उनकी अपनी-अपनी भावनाएं हैं। सरकार देशभर के किसानों के प्रति प्रतिबद्ध है। सरकार सारे देश को ध्यान में रखकर निर्णय करेगी।’’

एक अन्य सवाल के जवाब में उन्होंने कहा, ‘‘मुझे लगता है जल्दी समाधान होगा। रास्ता निकालने के लिए तालियां दोनों हाथों से बजती है।’’

किसान नेता बलबीर सिंह राजेवाल ने कहा, ‘‘तीनों कृषि कानूनों को निरस्त किए जाने के अलावा किसानों को कुछ भी मंजूर नहीं। हम केवल एमएसपी मुद्दे और कानूनों को निरस्त किए जाने पर ही चर्चा करेंगे, मुद्दे को सुलझाने की राह में सरकार का अहंकार आड़े आ रहा है।’’

बहरहाल, वार्ता के दौरान दोनों पक्षों ने करीब एक घंटे की बातचीत के बाद लम्बा भोजनावकाश लिया । किसान संगठनों के प्रतिनिधियों ने ‘लंगर’ से आया भोजन किया। हालांकि 30 दिसंबर की तरह आज केंद्रीय नेता लंगर में शामिल नहीं हुए और भोजनावकाश के दौरान अलग से चर्चा करते रहे जो करीब दो घंटे तक चली ।

दोनों पक्षों ने दोबारा सवा पांच बजे फिर से चर्चा शुरू की, लेकिन किसानों के कानूनों को निरस्त करने की मांग पर अड़े होने के कारण इसमें कोई प्रगति नहीं हो सकी ।

किसान संगठनों के नेताओं ने कहा कि सरकार को आंतरिक रूप से और विचार विमर्श करने की जरूरत है और इसके बाद वे (सरकार) किसान संघों के पास आयेंगे ।

किसान नेताओं ने कहा कि वे आगे के कदम के बारे में चर्चा के लिये मंगलवार को अपनी बैठक करेंगे।

बैठक के दौरान दोनों पक्षों के बीच अनाज खरीद से जुड़ी न्यूनतम समर्थन मूल्य की प्रणाली को कानूनी गारंटी देने की किसानों की महत्वपूर्ण मांग के बारे में चर्चा नहीं हुई ।

पंजाब, हरियाणा और पश्चिमी उत्तर प्रदेश से हजारों की संख्या में किसान कृषि संबंधी तीन कानूनों को वापस लेने की मांग को लेकर पिछले एक महीने से अधिक समय से दिल्ली की सीमा पर विरोध प्रदर्शन कर रहे हैं

राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र के आसपास प्रदर्शन स्थल पर भारी बारिश और जलजमाव एवं जबर्दस्त ठंड के बावजूद किसान डटे हुए हैं ।

गौरतलब है कि ये कानून सितंबर 2020 में लागू हुए और सरकार ने इसे महत्वपूर्ण कृषि सुधार के रूप में पेश किया और किसानों की आमदनी बढ़ाने वाला बताया ।

किसान संगठन इन कानूनों को वापस लेने पर जोर देते रहे ताकि नये कानून के बारे में उन आशंकाओं को दूर किया जा सके कि इससे एमएसपी और मंडी प्रणाली कमजोर होगी और वे (किसान) बड़े कारपोरेट घरानों की दया पर होंगे ।

सूत्रों ने बताया कि मौजूदा प्रदर्शन के दौरान जान गंवाने वाले किसानों को श्रद्धांजलि देने के साथ इस बैठक की शुरुआत हुई।

इससे पहले, सरकार और किसान संगठनों के बीच छठे दौर की वार्ता 30 दिसंबर को हुई थी। उस दौरान पराली जलाने को अपराध की श्रेणी से बाहर रखने और बिजली पर रियायत जारी रखने की दो मांगों पर सहमति बनी थी।

कई विपक्षी दलों और विभिन्न क्षेत्रों के लोगों ने भी किसानों का समर्थन किया है, वहीं कुछ किसान संगठनों ने पिछले कुछ हफ्तों में कृषि मंत्री से मुलाकात कर तीनों कानूनों को अपना समर्थन दिया।

भाषा ब्रजेन्द्र ब्रजेन्द्र उमा

उमा

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