The Bodhi Tree in MP: VIP व्यक्ति की तरह की जाती है इस पेड़ की सुरक्षा, आता है 12-15 लाख का सालाना खर्च!

The Bodhi Tree in MP: बढ़ते प्रदूषण के बीच सरकार से लेकर पर्यावरणविद तक सभी लोग पेड़ लगाने की अपील करते हैं। क्योंकि पेड़ हमें दिनरात शुद्ध ऑक्सीजन प्रदान करते हैं। खासकर पीपल के पेड़ को काफी लाभकारी माना जाता है। भारतीय संस्कृति में इसे देव वृक्ष भी माना जाता है। अनेक पर्वों पर इसकी पूजा की जाती है। इसके अलावा स्वास्थ्य के लिए भी पीपल को काफी उपयोगी माना जाता है। पीलिया, रतौंधी, मलेरिया, खांसी और दमा आदी में इसके लकड़ी, पत्तियों और कोपलों का इस्तेमाल किया जाता है।
बौध धर्म में भी पीपल की पूजा की जाती है
बौध धर्म में भी पीपल की पूजा की जाती है। माना जाता है कि भगवान बुद्ध को बिहार के बोधगया में पीपल के पेड़ के नीचे ही ज्ञान की प्राप्ती हुई थी। इस पेड़ को बोधि वृक्ष (The Bodhi Tree) के नाम से जाना जाता है। बौध धर्म में बोधि वृक्ष की बड़ी महत्ता है। पेड़ से गिरे पत्ते को श्रद्धालु अपने साथ ले जाते हैं और उसकी पूजा करते हैं। यहां बोधि वृक्ष की कड़ी सरक्षा की जाती है।
मध्य प्रदेश में भी है एक पेड़
बोधगया के बोधी वृक्ष की तरह ही मध्य प्रदेश के रायसेन में भी एक ऐसा ही पेड़ है, जिसकी सुरक्षा वीआईपी व्यक्ति की तरह की जाती है। पेड़ को सुरक्षित रखने के लिए 15 फीट उंची जालियों से इसे घेरा गया है ताकि कोई परिंदा भी यहां पर नहीं मार सके। इसके अलावा पेड़ की सुरक्षा में चारों ओर पुलिस के जवान खड़े रहते हैं। पेड़ को सुरक्षित रखने के लिए उद्यानिक विभाग से लेकर राजस्व विभाग, मध्य प्रदेश पुलिस और सांची नगरपरिषद एक पैरों पर खड़ा रहता है। सभी विभाग पेड़ को लेकर हमेशा अलर्ट मोड़ में रहते हैं।
सालाना 12-15 लाख का आता है खर्च
एक रिपोर्ट के अनुसार, इस पेड़ की सुरक्षा एवं रखरखाव में हर साल करीब 12 से 15 लाख का खर्च आता है। इसकी सुरक्षा में 24 घंटे गार्ड तैनात रहते हैं। पेड़ को पानी देने के लिए स्थानीय प्रशासन टैंकर भेजता है। पेड़ किसी तरह की बीमारी का शिकार न हो जाए। इसके लिए समय-समय पर कृषि अधिकारी यहां का दौरा करते हैं। ऐसे में अब आपके मन में यह सवाल उठ रहा होगा कि इस पेड़ की खासियत क्या है? जिसे ऐसे सुरक्षा घेरे में रखा गया है।
बोधि वृक्ष के परिवार से है संबंध
बता दें कि साधारण सा दिखने वाला यह पेड़ भी बोधि वृक्ष के परिवार का ही है। इसे 21 सितंबर 2012 को तत्कालीन श्रीलंकाई राष्ट्रपति महिंदा राजपक्षे ने खुद रोपित किया था। इस पेड़ को रोपने के लिए राजपक्षे उसे पेड़ की शाखा को लेकर आए थे, जो बोध गया के बोधि वृक्ष की शाखा से लंका में रोपा गया था।